2022 और 2023 में भारत में 150 सफाई कर्मचारियों की खतरनाक परिस्थितियों में मौतें हुईं, जिनके पीछे एक बेहद हानिकारक और अपारदर्शी व्यावसायिक मॉडल छिपा है। सामाजिक न्याय मंत्रालय द्वारा संसद में प्रस्तुत 54 मामलों के सामाजिक ऑडिट में यह स्पष्ट हुआ है कि इनमें से 38 कर्मचारियों को ठेकेदारों द्वारा रखा गया था, केवल 5 ही सरकारी पेरोल पर थे, जबकि शेष सार्वजनिक क्षेत्र के कर्मचारी थे जिन्हें ‘उधार’ के रूप में निजी ठेकेदारों को सौंपा गया था — इस व्यवस्था ने जिम्मेदारी और जवाबदेही को धुंधला कर दिया।
कानून और योजनाएं — लेकिन ज़मीनी प्रगति धीमी
हालांकि भारत में “हाथ से मैला उठाने का निषेध और पुनर्वास अधिनियम 2013”, सुप्रीम कोर्ट के आदेश, स्वच्छ भारत मिशन की सलाहें, और 2023 की NAMASTE योजना (National Action for Mechanised Sanitation Ecosystem) लागू हैं, फिर भी सुधार की रफ्तार बेहद धीमी रही है:
- 2024 में संसद को दी गई जानकारी के अनुसार, देश भर में 57,758 सफाईकर्मी खतरनाक सफाई कार्य में लगे हैं, लेकिन केवल 16,791 PPE किट ही वितरित की गईं।
- केवल 13,900 से कम कर्मचारियों को हेल्थ कार्ड जारी किए गए।
- 4,800 शहरी निकायों में केवल 837 सुरक्षा कार्यशालाएं आयोजित की गईं।
कुछ सफल उदाहरण: तकनीक और राजनीतिक इच्छाशक्ति की मिसाल
इस निराशाजनक परिदृश्य में दो राज्य उदाहरण बनकर उभरे हैं:
- ओडिशा: यहाँ पहचाने गए कर्मचारियों को PPE किट और मशीनीकरण युक्त desludging वाहन उपलब्ध कराए गए हैं।
- तमिलनाडु: चेन्नई में पाइलेट प्रोजेक्ट के तहत सीवर सफाई के लिए रोबोट (Sewer Robot) इस्तेमाल कर 5,000 से अधिक मैनहोल साफ किए गए।
इन उदाहरणों से यह स्पष्ट होता है कि तकनीक और मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति के जरिए यह संकट दूर किया जा सकता है, लेकिन ऐसी प्रगति अब भी अधिकांश जिलों तक नहीं पहुंची है।
प्रमुख समस्याएं: नीति विफलता और सामाजिक भेदभाव
1. क्रियान्वयन की कमी (Enforcement Deficit):
- उद्योग के विशेषज्ञों का कहना है कि अधिकांश अंडरग्राउंड सीवेज नेटवर्क रोबोटिक तकनीक से साफ किए जा सकते हैं, बशर्ते सरकार पूंजी सब्सिडी और ऑपरेटर ट्रेनिंग मुहैया कराए।
- लेकिन सरकारी टेंडर अब भी हाथ से सफाई के लिए ही निकाले जाते हैं।
- NAMASTE योजना के तहत अभी तक केवल ₹14 करोड़ ही खर्च हुए हैं, जो एक बड़े शहर में भी सीवर मशीनीकरण के लिए अपर्याप्त है।
2. जवाबदेही का अभाव:
- किसी सफाईकर्मी की मृत्यु के बाद पुलिस आमतौर पर निचले स्तर के सुपरवाइज़र पर मुकदमा दर्ज कर देती है या इसे दुर्घटना मान लेती है।
- सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट आदेश दिया है कि अवैध ठेके रद्द किए जाएं और मूल नियोक्ताओं पर आर्थिक ज़िम्मेदारी डाली जाए, लेकिन अधिकतर स्थानीय निकायों ने अब तक इन नियमों को अधिसूचित नहीं किया है।
3. दलित समुदाय और महिलाओं की उपेक्षा:
- सत्यापित सफाई कर्मचारियों में दो-तिहाई से अधिक दलित हैं।
- लेकिन पुनर्वास पैकेज में न तो आवास, न ही छात्रवृत्ति जैसी योजनाएं शामिल हैं जिससे वे इस अपमानजनक पेशे से बाहर आ सकें।
- महिलाएं, जो अब भी सूखे शौचालय साफ करने का काम करती हैं, नीतिगत चर्चा से लगभग बाहर हैं।
आगे का रास्ता: समाधान और सिफारिशें
- सीवर सफाई को तत्काल मशीनीकृत करें और इसे लाइसेंस प्राप्त पेशा घोषित करें। बिना प्रमाणपत्र के सफाई करना दंडनीय अपराध बनाया जाए।
- सफाईकर्मियों को मशीनें संचालित करने के लिए रिण सहायता (loan support) दी जाए, और यह नगरपालिकाओं के साथ सेवा अनुबंधों से जोड़ा जाए।
- ग्रामीण भारत में सेप्टिक टैंक desludging को स्वच्छ भारत ग्रामीण बजट में शामिल किया जाए।
- NAMASTE योजना का दायरा ग्राम पंचायतों तक बढ़ाया जाए और सफाईकर्मियों की पहचान ग्रामीण क्षेत्रों में भी की जाए।
- हर जिले में स्वास्थ्य सुरक्षा, प्रशिक्षण और पुनर्वास कार्यक्रम अनिवार्य हों।
Source: The Hindu