UPI (Unified Payments Interface) भुगतान प्रणाली IMPS (Immediate Payment Service) से विकसित एक संरचना पर आधारित है। किसी भी बैंक को UPI प्रणाली से जुड़ने के लिए अपने ग्राहकों को उनके बैंक खातों को उनके मोबाइल नंबर से लिंक कर PSP (Payment Service Provider) ऐप जैसे कि GPay, PhonePe आदि के माध्यम से सेवाएं प्रदान करनी होती हैं। आज लगभग हर व्यावसायिक बैंक (सरकारी और निजी दोनों) UPI प्रणाली का हिस्सा है।
UPI एक इंटरऑपरेबल सिस्टम है, यानी कोई भी बैंक खाता धारक किसी भी UPI ऐप पर अपना खाता जोड़ सकता है और एक ही समय में कई ऐप्स का उपयोग कर सकता है। देखने में यह एक peer-to-peer (व्यक्ति से व्यक्ति) सिस्टम जैसा लगता है, लेकिन वास्तव में, लगभग हर लेनदेन NPCI (National Payments Corporation of India) के सिस्टम के माध्यम से गुजरता है।
NPCI की भूमिका: NPCI UPI लेनदेन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह भुगतान जानकारी को सुरक्षित एन्क्रिप्ट करता है (विशेष रूप से ग्राहक का PIN), जिसे फिर भुगतानकर्ता के बैंक को भेजा जाता है जो अंततः लेनदेन को पूरा करता है। यदि NPCI में कोई डाउनटाइम होता है, तो आपका बैंक आपके PIN को प्राप्त नहीं कर सकता — इसीलिए इसे UPI प्रणाली का एकल बिंदु विफलता (Single Point of Failure) कहा जाता है।
NPCI में बार-बार आउटेज क्यों हुआ?
NPCI एक ऐसा संगठन है जिसे बैंकों के एक समूह के रूप में संरचित किया गया है, जहां सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के पास बहुलांश हिस्सेदारी है। ऐसा इसलिए है क्योंकि Payment and Settlement Systems Act, 2007 के तहत, उन संस्थाओं को जो थोक में लेनदेन का निपटान करती हैं, सार्वजनिक बैंकों के स्वामित्व में रहना अनिवार्य है।
हाल के सप्ताहों में, कई बैंकों ने UPI प्रणाली पर अत्यधिक मात्रा में “चेक ट्रांजैक्शन” अनुरोध भेजे। ये अनुरोध भुगतान सत्यापित करने के लिए भेजे जाते हैं। जब ये अनुरोध अत्यधिक बढ़ गए, तो NPCI का सर्वर लोड नहीं संभाल सका और सिस्टम डाउन हो गया।
UPI Lite: NPCI ने डाउनटाइम के प्रभाव को कम करने के लिए “UPI Lite” नामक सेवा शुरू की है, जिसमें उपयोगकर्ता बिना PIN डाले ₹2,000 तक के भुगतान कर सकते हैं। हालांकि, लेनदेन की कुछ मूलभूत जानकारी अब भी NPCI के माध्यम से ही जाती है, यानी NPCI इसमें भी बीच में बना रहता है।
बैंक क्यों नाराज़ हैं?
बैंकों और UPI के बीच संबंध हमेशा से चुनौतीपूर्ण रहे हैं। हालांकि UPI ने भारत में डिजिटल भुगतान को क्रांति की तरह बढ़ावा दिया है — उदाहरण के लिए, एक दिन में 58 करोड़ से अधिक लेनदेन, जिनकी कुल राशि ₹73,000 करोड़ से अधिक होती है — लेकिन बैंक इन लेनदेन से कोई विशेष शुल्क नहीं वसूल सकते।
बैंकों का खर्चा:
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के अनुसार, हर UPI लेनदेन पर बैंकों को लगभग ₹0.80 का खर्च आता है। यह खर्च SMS सूचनाओं (जिसके लिए टेलीकॉम कंपनियाँ शुल्क लेती हैं) और भुगतान रिकॉर्ड को बनाए रखने के खर्चों में होता है। लेकिन बैंक व्यापारी छूट दर (Merchant Discount Rate – MDR) नहीं वसूल सकते, जिससे उन्हें उच्च सेवा मानक बनाए रखने के लिए आर्थिक प्रोत्साहन नहीं मिलते।
अन्य भुगतान नेटवर्क की तुलना:
Visa और MasterCard जैसे कार्ड नेटवर्क पर सिस्टम डाउनटाइम काफी कम और छोटा होता है, क्योंकि वहां सख्त निगरानी और सेवा स्तर समझौते (Service Level Agreements – SLA) लागू होते हैं। वहीं, बैंकों के अपने स्वयं के सिस्टम UPI में अक्सर नीचे गिर जाते हैं, जिससे असफल भुगतान की दर बढ़ती है।
सरकार की भूमिका:
इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) ने बैंकों के प्रदर्शन को सुधारने के लिए “गाजर और डंडा” (Carrot and Stick) नीति अपनाई है। इसके तहत सालाना UPI प्रोत्साहन योजना चलाई जाती है, जिसमें अच्छा प्रदर्शन करने वाले बैंकों को सब्सिडी दी जाती है। लेकिन जो बैंक सबसे खराब प्रदर्शन करते हैं, उन्हें कोई प्रोत्साहन नहीं मिलता।
Source: The Hindu