युद्ध के बदलते आयामों की वास्तविकता

मैकियावेली का मानना था कि राजनीति में मनुष्य केवल सत्ता और अस्तित्व की संघर्षपूर्ण वास्तविकताओं द्वारा संचालित होता है। आज हम इतिहास के उस मोड़ पर खड़े हैं जहां अंतरराष्ट्रीय राजनीति के पुराने नियम जो कभी वैश्विक व्यवस्था को दिशा देते थे, अब समाप्ति की कगार पर हैं। इसके साथ ही, सत्ता प्राप्ति के साधनों में भी मौलिक परिवर्तन आ रहे हैं। आज के शक्ति के केंद्रों के लिए 1648 की वेस्टफेलिया की संधि (जिसने राष्ट्र-राज्य की अवधारणा को मान्यता दी) और 1814-15 की वियना कांग्रेस का कोई विशेष महत्व नहीं रह गया है। अधिकांश के लिए, नए हथियार ही आधुनिक राजनीति की चरम अभिव्यक्ति बन चुके हैं।

वर्ष 2025, द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के आठ दशकों के सापेक्षिक शांति की भी स्मृति लेकर आया है। हालांकि इन वर्षों के बीच अनेक युद्ध और संघर्ष हुए, परंतु वे द्वितीय विश्व युद्ध की विशालता और विनाशकारी स्तर तक नहीं पहुंचे। कई लोगों के लिए, नाज़ी जर्मनी की हार और पतन से भी अधिक, ऐसा प्रतीत हुआ कि संयुक्त राज्य अमेरिका की अजेयता (जिसने 1945 में जापान के हिरोशिमा और नागासाकी पर दो परमाणु बम गिराए) ही एक नए शांतिपूर्ण युग की शुरुआत का संकेत था। इस समय ‘नियम आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था’ जैसी अवधारणाएं भी लोकप्रिय होने लगीं।

हालांकि, यह शांति का एक भ्रम मात्र था — एक ऐसा रहस्य जिसमें यथार्थ छिपा हुआ था। कोरिया, वियतनाम, उत्तरी अफ्रीका और यहां तक कि यूरोप के कुछ हिस्सों में हुए छोटे स्तर के युद्धों की एक श्रृंखला इस बात की पुष्टि करती है। इससे ब्रिटेन में तैनात राजनयिकों को दी जाने वाली एक पुरानी सलाह का महत्व सामने आया — “जब तक स्वयं जांच न कर लें, किसी की बात पर विश्वास न करें।”

1990 के दशक तक, इस व्यवस्था की मूल अवधारणाओं पर सवाल उठने लगे थे। शीत युद्ध का अंत, वास्तव में संघर्ष के एक नए युग की शुरुआत की तरह प्रतीत हुआ। कई नए संघर्ष उभरने लगे जिन्होंने शांति की किसी भी झूठी आशा को चकनाचूर कर दिया। साथ ही, यह भी स्पष्ट होने लगा कि वैश्विक युद्ध की एक नई परिभाषा सामने आ रही है। हालांकि, बहुत कम लोग स्वीकार कर रहे थे कि दुनिया अब एक नए प्रकार के युद्ध के युग में प्रवेश कर चुकी है।

9/11 का प्रभाव

हाल ही में प्रकाशित एक लोकप्रिय लेख “आधुनिकता का अंत” (End of Modernity) की बात करता है और वर्तमान वैश्विक स्थिति की विस्तृत व्याख्या करता है। उसके अनुसार, 1989 में बर्लिन की दीवार का गिरना वैश्विक राजनीति के एक नए युग की शुरुआत थी। परंतु कई अन्य लोगों के लिए यह 11 सितंबर 2001 था, जब न्यूयॉर्क के ट्विन टावर्स पर आतंकी हमला हुआ — जिसने वैश्विक राजनीति को एक नई दिशा दी।

हालांकि 9/11 ने वैश्विक मामलों में एक नया अध्याय अवश्य खोला, पर यह भविष्य के मौलिक परिवर्तनों का संकेतक नहीं था। 9/11 ने संभवतः अमेरिका और कुछ अन्य देशों को अपने दृष्टिकोण के आधार पर अन्य राज्यों पर आक्रमण करने का अवसर प्रदान किया। हालांकि यह स्पष्ट नहीं था कि संघर्ष की मूलभूत प्रकृति में कोई क्रांतिकारी परिवर्तन होगा या नहीं, और इसका भविष्य की पीढ़ियों पर क्या प्रभाव पड़ेगा। इस परिवर्तन के विनाशकारी परिणाम अभी भी पूरी तरह समझे नहीं जा सके हैं।

इसके लिए हमें 1991 के ऑपरेशन डेजर्ट स्टॉर्म की ओर लौटना होगा — जो अमेरिका के नेतृत्व में हुआ था। यह आधुनिक युग का पहला युद्ध था, जिसने युद्ध संचालन के रणनीतिक, सामरिक और क्रियात्मक तत्वों का नाटकीय रूप से संश्लेषण किया। यह युद्ध ‘पसंदीदा’ दुश्मन पर तीन-आयामी हमले का पहला उदाहरण भी था। हालांकि रणनीतिक योजनाकारों ने इसकी महत्ता को हाल के वर्षों में ही पूरी तरह पहचाना है।

यूक्रेन, पश्चिम एशिया और ऑपरेशन सिंदूर

उस समय दुनिया अमेरिका की अप्रतिस्पर्धात्मक शक्ति से मोहित थी — आर्थिक, राजनीतिक और सैन्य रूप से। लेकिन 2022 से चल रहे रूस और नाटो समर्थित यूक्रेन के बीच युद्ध ने युद्ध के योजनाकारों की सोच को पूरी तरह बदल दिया है। यूक्रेन और पश्चिम एशिया के युद्धों ने कई नई सैन्य अवधारणाएं प्रस्तुत की हैं, जो अतीत के युद्धों से बिल्कुल अलग हैं।

आज के युद्ध भूतकाल की छवि से बहुत अलग हैं। स्वचालन (Automation) आधुनिक संघर्षों की एक अनिवार्य विशेषता बन चुका है। ड्रोन तकनीक ने युद्ध की प्रकृति को पूरी तरह बदल दिया है — निगरानी करने वाले ड्रोन, अत्यंत सटीक हमला करने वाले ड्रोन, छवि पहचान एल्गोरिदम से सुसज्जित अर्ध-स्वायत्त ड्रोन, और ‘लोइटरिंग म्यूनिशन’ वाले ड्रोन युद्धभूमि की नई पहचान बन चुके हैं।

मई 2025 में भारत-पाकिस्तान संघर्ष में आधुनिक युद्ध की इन नई प्रवृत्तियों की झलक देखने को मिली। इस बार के संघर्ष में फिक्स्ड विंग ड्रोन, लोइटरिंग म्यूनिशन, और फाइटर जेट्स का प्रमुखता से उपयोग हुआ। हवाई वर्चस्व और सटीक हमलों के लिए उन्नत एयर-टू-एयर मिसाइलें, GPS-गाइडेड बम, और लेज़र-गाइडेड हथियार उपयोग किए गए। भारत ने ब्रह्मोस मिसाइल का उपयोग भी कम-से-कम एक बार किया। पाकिस्तान ने चीन से प्राप्त PL-15 मिसाइलों और तुर्की से प्राप्त Songar ड्रोन का इस्तेमाल किया।

आधुनिक युद्ध की नई रणनीति

आधुनिक युद्ध केवल हथियारों की बात नहीं है — रणनीतियों में भी बड़ा बदलाव आया है। सेनाएं अब पारंपरिक पदानुक्रम से हटकर नेटवर्क-केंद्रित युद्ध प्रणाली की ओर बढ़ रही हैं। साइबर और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) ने युद्ध को बहु-क्षेत्रीय (multi-domain) बना दिया है, जिसमें AI और साइबर युद्ध निर्णायक भूमिका निभा रहे हैं।

हाइपरसोनिक हथियार — जो Mach-5 से अधिक गति से चलते हैं — ने नई हथियारों की दौड़ को और भयावह बना दिया है। डिजिटल रणनीतियां और स्वायत्त प्रणालियाँ पारंपरिक “बल प्रयोग से विजय” की अवधारणा को अप्रासंगिक बना रही हैं। भविष्य का युद्ध स्वचालित और आपस में जुड़ा हुआ (interconnected) होता जा रहा है।

भारत को बदलाव के साथ चलना होगा

इसलिए संदेश स्पष्ट है — हम तकनीकी युद्ध के नए युग में प्रवेश कर रहे हैं। भारत को चाहिए कि वह तेजी से खुद को इन बदलावों के अनुरूप ढाले। इससे भारत की वर्तमान सैन्य आधुनिकीकरण योजनाओं पर भी सवाल उठते हैं। इन्हें पूरी तरह से पुनःनिर्धारित और पुनर्निर्मित करना पड़ सकता है। कई हथियार श्रेणियों के लिए जारी निविदाओं की प्रासंगिकता पर पुनर्विचार आवश्यक हो सकता है।

चीन पहले ही स्थानीय रूप से बनाए गए अत्याधुनिक प्लेटफॉर्म (जैसे J-10, J-20 और पांचवीं पीढ़ी के फाइटर) के बड़े स्टॉक तैयार कर चुका है, और अब छठी पीढ़ी के फाइटर का उत्पादन करने की ओर बढ़ रहा है।

भारत, मौजूदा जानकारी के अनुसार, स्थानीय निर्माण पर भरोसा कर रहा है और फ्रांस से अधिक राफेल खरीदने की योजना बना रहा है। लेकिन स्वदेशी मिसाइल और विमान निर्माण अभी भी तय समय से पीछे है।

आज की स्थिति में उच्च ऊंचाई पर लंबी अवधि तक उड़ान भरने वाले मानव रहित विमानों (UAVs) की अत्यधिक आवश्यकता है। भारत को चाहिए कि वह अपने सैन्य आधुनिकीकरण की रणनीति का पुनर्मूल्यांकन करे। सैन्य हार्डवेयर में विविधता लाना अब अनिवार्य हो गया है। इससे भारत की भविष्य में पाकिस्तान या चीन — या दोनों के विरुद्ध एक साथ युद्ध लड़ने की क्षमता पर प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ेगा।

एम. के. नारायणन, भारत के पूर्व खुफिया ब्यूरो प्रमुख, पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार, तथा पश्चिम बंगाल के पूर्व राज्यपाल हैं।

Source: The Hindu

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