भारत निर्वाचन आयोग (EC) ने बिहार में मतदाता सूचियों की विशेष गहन पुनरीक्षण प्रक्रिया (Special Intensive Revision – SIR) शुरू की है। इस प्रक्रिया ने ‘सामान्य निवासी’ (Ordinarily Resident) शब्द की परिभाषा और उसकी व्याख्या को लेकर एक नई बहस को जन्म दिया है। विशेष रूप से प्रवासी श्रमिकों के संदर्भ में यह विषय और अधिक जटिल हो जाता है। आइए इसे विस्तृत रूप से समझें:
‘सामान्य निवासी’ कौन होता है?
भारत में मतदाता सूचियाँ जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 (Representation of the People Act, 1950) की धारा 19 और 20 के अनुसार तैयार की जाती हैं।
धारा 19 (Section 19):
इसमें यह प्रावधान है कि किसी भी व्यक्ति को किसी निर्वाचन क्षेत्र की मतदाता सूची में शामिल होने के लिए उस क्षेत्र का ‘सामान्य निवासी’ होना अनिवार्य है।
धारा 20 (Section 20):
यह धारा ‘सामान्य निवासी’ की परिभाषा को स्पष्ट करती है:
- केवल किसी घर का मालिक होना या उसे किराए पर लेना किसी व्यक्ति को उस निर्वाचन क्षेत्र का सामान्य निवासी नहीं बनाता।
- यदि कोई व्यक्ति अस्थायी रूप से कहीं और गया हो, फिर भी वह अपने निवास स्थान का ‘सामान्य निवासी’ बना रहता है।
- कुछ विशेष श्रेणियों के लोगों को विशेष दर्जा दिया गया है:
- केंद्रीय सशस्त्र बलों के सदस्य
- किसी राज्य की सशस्त्र पुलिस जो राज्य के बाहर तैनात है
- भारत सरकार के विदेशों में कार्यरत कर्मचारी
- राष्ट्रपति द्वारा घोषित संवैधानिक पदधारक (Election Commission से परामर्श के बाद)
इन सभी को, तथा उनके जीवनसाथी को, उसी निर्वाचन क्षेत्र का सामान्य निवासी माना जाता है जहाँ वे तैनाती के पहले रहते थे।
धारा 20A (Section 20A):
साल 2010 में जोड़ी गई इस धारा में प्रवासी भारतीयों (NRIs) को मतदाता सूची में नाम दर्ज कराने की अनुमति दी गई। भले ही वे लंबे समय से भारत के बाहर रह रहे हों, फिर भी उनके पासपोर्ट में दर्ज भारतीय पते के आधार पर वे अपने निर्वाचन क्षेत्र में पंजीकृत हो सकते हैं।
मतदाता सूची में नाम दर्ज करने की प्रक्रिया:
1950 के जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के अनुरूप, 1960 के मतदाता पंजीकरण नियम (Registration of Electors Rules, 1960), केंद्र सरकार द्वारा निर्वाचन आयोग से परामर्श करके अधिसूचित किए गए हैं। इन नियमों के तहत:
- नाम जोड़ना, हटाना, या परिवर्तित करना
- पते में बदलाव के आधार पर स्थानांतरण
- दोहरे पंजीकरण से बचाव
जैसी प्रक्रियाएँ संचालित होती हैं।
संभावित समस्याएँ क्या हैं?
‘सामान्य निवासी’ की शर्त का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि व्यक्ति उस निर्वाचन क्षेत्र से वास्तविक रूप से जुड़ा हो और प्रतिनिधित्व प्रणाली में उत्तरदायित्व बना रहे। साथ ही, यह धोखाधड़ी से बचाव हेतु भी आवश्यक है।
गुवाहाटी उच्च न्यायालय (1999 – मनमोहन सिंह मामला) ने स्पष्ट किया कि:
‘सामान्य निवास’ का अर्थ उस स्थान से है जहाँ व्यक्ति स्थायी रूप से रहने का इरादा रखता हो। यह स्थान स्थायी, नियमित और वास्तविक होना चाहिए – न कि आकस्मिक या अस्थायी।
प्रवासी श्रमिकों की स्थिति:
2020-21 की आवधिक श्रम शक्ति सर्वेक्षण (PLFS) के अनुसार:
- भारत की लगभग 11% आबादी रोजगार के कारण प्रवास करती है।
- यह लगभग 15 करोड़ मतदाताओं की संख्या के बराबर है।
इनमें से कई श्रमिक मौसमी होते हैं जो साल के कुछ महीनों के लिए ही अपने कामकाजी स्थान पर जाते हैं और फिर अपने स्थायी निवास लौट आते हैं। वे अस्थायी झोपड़ियों या श्रमिक शिविरों में रहते हैं, लेकिन उनका परिवार, बच्चे और संपत्ति उनके मूल निवास स्थान पर होती है।
वे अपने स्थायी पते पर ही मतदान करना पसंद करते हैं क्योंकि वहाँ से उनका सामाजिक और भावनात्मक जुड़ाव बना रहता है।
➡️ यदि ऐसे श्रमिकों को केवल इस आधार पर मतदाता सूची से हटा दिया जाए कि वे “वर्तमान में” वहाँ निवास नहीं कर रहे हैं, तो यह उनके मताधिकार का उल्लंघन होगा।
➡️ इसके अतिरिक्त, उन्हें उनके अस्थायी कार्यस्थल पर मतदाता सूची में पंजीकरण के लिए बाध्य करना भी व्यावहारिक नहीं है – क्योंकि वे वहाँ स्थायी रूप से नहीं रहना चाहते।
क्या किया जा सकता है? (समाधान / Way Forward)
- जनप्रतिनिधित्व अधिनियम में सर्विस वोटर, संवैधानिक पदधारी और प्रवासी भारतीयों को विशेष प्रावधान दिया गया है कि वे अपने मूल निर्वाचन क्षेत्र में मतदाता बने रह सकते हैं, भले ही वे वहाँ स्थायी रूप से न रह रहे हों।
- इसी तर्ज पर, प्रवासी श्रमिकों के लिए भी वैधानिक संशोधन की आवश्यकता है ताकि वे अपने चयनित मूल निवास क्षेत्र में मतदाता बने रह सकें।
- एक उचित और व्यावहारिक तंत्र बनाया जाए जिससे श्रमिकों को:
- बिना कठिन प्रक्रिया के अपना मताधिकार बनाए रखने का अधिकार मिले,
- अस्थायी प्रवास के कारण मतदाता सूची से नाम हटने का डर न रहे।
- दोहरी प्रविष्टियों से निपटने के लिए आधार सीडिंग (Aadhaar Linking) एक महत्वपूर्ण समाधान हो सकता है।