अमेरिका में छात्र वीज़ा को लेकर एक नया बदलाव देखने को मिल रहा है, जहाँ वीज़ा इंटरव्यू के लिए नई नियुक्तियाँ शुरू हो चुकी हैं। ये नियुक्तियाँ एक विस्तारित जाँच प्रणाली (Extended Vetting Programme) के अंतर्गत हो रही हैं, जिसमें आवेदकों की सोशल मीडिया गतिविधियों की भी गहन जांच की जा रही है। यह प्रक्रिया काफी कड़ी और समय लेने वाली है। इससे बड़ी संख्या में वीज़ा आवेदनों की प्रक्रिया अभी भी लंबित पड़ी है, जबकि छात्र अगस्त के अंत या सितंबर की शुरुआत तक अपनी कक्षाओं के लिए अमेरिका रवाना होने की तैयारी कर रहे हैं।
इस विस्तारित जांच प्रणाली की शुरुआत के चलते लगभग एक महीने तक वीज़ा इंटरव्यू की नई नियुक्तियाँ रोक दी गई थीं। अब जबकि प्रक्रिया दोबारा शुरू हो गई है, वीज़ा अपॉइंटमेंट की प्रतीक्षा अवधि एक महीने से अधिक हो गई है, जिससे यह संभावना बन रही है कि कई छात्रों को वीज़ा समय पर मिलने में मुश्किल हो सकती है।
हालाँकि, यह केवल एक कारण नहीं है जो भारतीय छात्रों के अमेरिका जाने में बाधा उत्पन्न कर रहा है। ट्रंप प्रशासन की अन्य नीतियाँ भी इस प्रवाह को प्रभावित कर रही हैं। अमेरिका की नागरिकता और आप्रवासन सेवा (USCIS) के लिए ट्रंप प्रशासन द्वारा नामित प्रमुख अधिकारी ने “ऑप्शनल प्रैक्टिकल ट्रेनिंग” (OPT) कार्यक्रम को समाप्त करने की बात कही है। यह कार्यक्रम छात्रों को पढ़ाई पूरी करने के बाद अमेरिका में कुछ समय तक कार्य करने की अनुमति देता है, और वहीं से उन्हें नौकरी, वर्क वीज़ा और ग्रीन कार्ड की ओर बढ़ने का अवसर मिलता है। यदि OPT कार्यक्रम बंद कर दिया गया, तो अमेरिका में शिक्षा ग्रहण करने का आकर्षण काफी हद तक कम हो जाएगा।
इसके साथ ही ट्रंप प्रशासन ने यह भी घोषणा की है कि अब केवल सीमित अवधि के छात्र वीज़ा (Fixed-tenure student visas) ही जारी किए जाएंगे। इसके अतिरिक्त, अमेरिका सरकार द्वारा उच्च शिक्षा संस्थानों को मिलने वाले अनुसंधान और अन्य शैक्षणिक कार्यों के लिए अनुदान में भारी कटौती की गई है। इसका असर यह हुआ है कि कुछ अमेरिकी विश्वविद्यालयों ने भारतीय छात्रों को दिए गए पीएचडी दाख़िले वापस ले लिए हैं।
इसके अलावा कई जगहों से ऐसी सूचनाएं मिली हैं कि वीज़ा जारी करने की दर में भारी गिरावट आई है और छात्रों को प्रवेश देने वाले संस्थानों की रैंकिंग की भी अधिक बारीकी से जांच की जा रही है। उल्लेखनीय है कि इस वर्ष आवेदन करने वाले कई छात्रों ने यह प्रक्रिया 2024 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव से पहले शुरू की थी, और वे इस अनिश्चितता के बावजूद इसे पूरा करने की कोशिश कर रहे हैं। हालांकि, असली स्थिति अगले साल स्पष्ट होगी जब देखा जाएगा कि अमेरिकी शिक्षा प्रणाली भारतीय छात्रों के लिए कितनी आकर्षक बनी रहती है।
जब ट्रंप प्रशासन सत्ता में आया था, तब ऐसा अनुमान लगाया गया था कि तकनीकी क्षेत्र के अरबपति, जो ट्रंप का समर्थन कर रहे थे, उनकी अप्रवासी विरोधी नीतियों को कुछ हद तक संतुलित करेंगे। अतीत में भी बड़े व्यापारिक समूहों ने ऐसी नीतियों को बढ़ावा दिया है जिनसे प्रतिभाशाली विदेशी छात्र और कामगार अमेरिका आ सकें। मगर अब, जैसे एलन मस्क जैसे तकनीकी दिग्गज ट्रंप के साथ अपने रिश्ते समाप्त कर रहे हैं, यह स्पष्ट हो रहा है कि यह केवल एक अपवाद नहीं बल्कि एक व्यापक प्रवृत्ति है।
ट्रंप प्रशासन द्वारा पारित “Big Beautiful Bill” में हरित ऊर्जा अनुसंधान (Green Energy Research) के लिए फंड में कटौती की गई है, जिससे यह संकेत मिलता है कि प्रशासन में अब दक्षिणपंथी कट्टरपंथी विचारधारा पूरी तरह हावी हो चुकी है। इसके प्रमुख चेहरे जैसे कि व्हाइट हाउस के डिप्टी चीफ ऑफ स्टाफ स्टीफन मिलर, इसी सोच के प्रतिनिधि हैं।
भारत के लिए यह संकेत है कि अमेरिका का उच्च शिक्षा और तकनीकी क्षेत्र अब पहले जैसा आकर्षण नहीं रखता, और यह केवल शिक्षा तक सीमित नहीं रहेगा — भारत को भविष्य में अन्य क्षेत्रों में भी अमेरिका से दूरी बनाने की आवश्यकता हो सकती है।
Source: The Hindu