कांडला बंदरगाह पर भीड़भाड़ के कारण खाद्य तेल की कमी हो सकती है: व्यापारियों ने सरकार से कहा

खाद्य तेल की संभावित कमी:

    • व्यापारियों ने चेतावनी दी है कि स्थानीय बाजारों में खाद्य तेल की आपूर्ति में बाधा आ सकती है, क्योंकि कांडला बंदरगाह पर इंडोनेशियाई कच्चे पाम तेल ले जाने वाले कई जहाज फंसे हुए हैं

भारत की स्थिति:

    • भारत दुनिया का सबसे बड़ा पाम तेल आयातक है, जो प्रति माह लगभग 7.5 लाख टन पाम तेल आयात करता है।

कांडला बंदरगाह की भूमिका:

    • यह बंदरगाह पश्चिमी और उत्तरी भारत की प्रमुख रिफाइनरियों को तेल की आपूर्ति करता है।

SEA की चेतावनी:

    • सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (SEA) ने बताया कि फिलहाल सिर्फ दो जहाज माल उतार रहे हैं (45,000 टन) जबकि आठ जहाज (1,57,000 टन) बर्थ मिलने का इंतजार कर रहे हैं।
    • आने वाले सप्ताह में पांच और जहाज (1,59,000 टन) पहुंचने वाले हैं।

बंदरगाह पर भीड़ का कारण:

    • मई में आयात शुल्क में कटौती के कारण अचानक खाद्य तेल के जहाजों की संख्या बढ़ गई है।
    • औसतन 8-10 दिन का इंतजार करना पड़ रहा है, और आगे यह 15-20 दिन तक हो सकता है।

भावों पर असर:

    • पाम तेल के दामों में तेजी आई है, जो अमेरिका में बायोफ्यूल मिक्सिंग नीति में बदलाव के कारण है।
    • देरी के कारण डिमरेज शुल्क (demurrage charges) बढ़ रहे हैं, जिससे आयात लागत बढ़ रही है और उपभोक्ताओं को अधिक कीमत चुकानी पड़ रही है

बंदरगाह प्रशासन की प्रतिक्रिया:

    • बंदरगाह प्रमुख ने बताया कि 6 खाद्य तेल और 6 रसायन के जहाज इंतजार में हैं। प्रोटोकॉल सख्त किए गए हैं और समाधान के प्रयास जारी हैं।

ट्रांसपोर्ट विशेषज्ञ की टिप्पणी:

    • त्राइटन लॉजिस्टिक्स के CEO जितेंद्र श्रीवास्तव ने कहा कि बंदरगाह अवसंरचना और लॉजिस्टिक्स को आधुनिक बनाना जरूरी है।
    • समाधान के लिए स्मार्ट तकनीक, बेहतर ट्रैफिक कंट्रोल, टर्मिनल और वेयरहाउसिंग का उन्नयन जैसे उपाय सुझाए।

खराब प्रथाएं:

    • SEA ने बताया कि बंदरगाह प्रशासन द्वारा माल उतरते समय ही जहाजों को हटा देना (mid-discharge withdrawal) स्थिति को और बिगाड़ रहा है।
    • ऐसे मामलों में जहाजों को दोबारा बर्थ मिलने में 3-5 दिन लगते हैं और अतिरिक्त शुल्क भी देना पड़ता है।

आयात में गिरावट:

  • नवंबर 2024 से मई 2025 तक भारत का कुल वनस्पति तेल आयात 9% घटकर 78.84 लाख टन रहा, जबकि पिछले साल इसी अवधि में यह 86.78 लाख टन था।

यह संकट बढ़ती मांग, अप्रस्तुत बंदरगाह व्यवस्था, और नीतिगत बदलावों के कारण उत्पन्न हुआ है, जो अगर शीघ्र समाधान नहीं हुआ तो देशव्यापी खाद्य तेल संकट का रूप ले सकता है