IIT गांधीनगर (IITGN) के शोधकर्ताओं ने IIT कानपुर (IITK), IUAC दिल्ली और PRL अहमदाबाद के विशेषज्ञों के साथ मिलकर कच्छ के ग्रेट रन में हड़प्पा सभ्यता से कम से कम 5,000 साल पहले मानव समुदायों की उपस्थिति के प्रमाण पाए हैं।
यह निष्कर्ष 19वीं शताब्दी के अंत में जियोलॉजिस्ट आर्थर बीवर विन द्वारा पहली बार पाए गए शंखों के अवशेषों के विश्लेषण और कार्बन डेटिंग पर आधारित है। ये अवशेष कच्छ के उत्तरी हिस्से में मिले थे, जो प्राचीन शिकार-संग्राहक समुदायों की उपस्थिति को दर्शाते हैं।
अध्ययन कच्छ मिडन स्थल (जहां समुद्री शंख, हड्डियाँ, औजार और मिट्टी के बर्तन मिलते हैं) को ओमान और पाकिस्तान के तटीय स्थलों से जोड़ता है, जहां हड़प्पा से पहले के समुदाय रहते थे।
खादीर बेत (द्वीप) पर धोलेवीरा के हड़प्पा स्थल से लगभग 1 किलोमीटर दूर नए पुरातात्विक अवशेष मिले हैं, जिनमें घरों के अवशेष, टूटे हुए बर्तन और शंख के अवशेष शामिल हैं।
अध्ययन से यह संकेत मिलता है कि ये समुदाय मँग्रोव पर्यावरण में रहते थे और शंखों को इकट्ठा कर उनका मांस निकालते थे, जिसे संभवतः उन्होंने पकाया भी होगा।
खादीर द्वीप पर कई स्थलों जैसे लाउंगवाली, कुंडुवारी और गणेशपर में basalt, limestone और quartzite से बने औजार पाए गए हैं। कुछ छोटे पत्थर बाणों के सिरों के रूप में उपयोग किए गए होंगे। ये पत्थर स्थानीय रूप से उपलब्ध नहीं थे, जो व्यापार की संभावना को दर्शाते हैं।
खादीर द्वीप से 15 नमूनों की कार्बन डेटिंग से यह पता चलता है कि ये अवशेष लगभग 5,500 से 5,000 साल पहले के हैं, जो हड़प्पा सभ्यता से पहले के हैं। ये निष्कर्ष दर्शाते हैं कि हड़प्पा काल से पहले और बाद में इस क्षेत्र में छोटे बसे हुए समुदाय थे।
अतिरिक्त नमूनों की डेटिंग की जाएगी और IIT कानपुर के साथ मिलकर आगे के अध्ययन किए जाएंगे ताकि इन प्राचीन मानव समुदायों के बारे में और जानकारी प्राप्त की जा सके।
Source: Indian Express