विद्युत यात्री कारों के निर्माण को बढ़ावा देने के लिए केंद्र सरकार द्वारा नीति अधिसूचित की गई।
आयात शुल्क में कटौती: विदेश निर्माताओं के लिए पूरी तरह से तैयार EV कारों पर कस्टम ड्यूटी 70-100% से घटाकर 15% कर दी गई।
शर्तें:
₹4,150 करोड़ का निवेश अगले तीन वर्षों में करना होगा।
3 वर्षों में 25% घरेलू मूल्य वर्धन (Domestic Value Addition) और 5 वर्षों में 50% DVA अनिवार्य।
हर साल अधिकतम 8,000 गाड़ियाँ ही इस छूट के तहत आयात की जा सकेंगी।
सरकार की अधिकतम ड्यूटी छूट सीमा ₹6,484 करोड़ तय की गई है।
क्या Tesla इस योजना में दिलचस्पी रखता है?
मंत्री एच.डी. कुमारस्वामी ने संकेत दिए कि Tesla भारत में निर्माण करने के इच्छुक नहीं हैं। इससे योजना की सफलता पर सवाल खड़े हुए हैं।
नीति का प्रभाव और चुनौतियाँ
नीति से आयातित EV सस्ती होंगी — $35,000 की कार पर कस्टम ड्यूटी घटकर ₹4.6 लाख रह गई, पहले यह ₹20.8 लाख थी।
लेकिन तकनीक स्थानांतरण (Technology Transfer) की संभावना कम है क्योंकि विदेशी कंपनियाँ अपना तकनीकी लाभ साझा नहीं करतीं।
विशेषज्ञों का मानना है कि भारत को केवल असेंबली हब नहीं बनना चाहिए, बल्कि R&D और नवाचार में निवेश करना चाहिए।
EV पारिस्थितिकी तंत्र (Ecosystem) की स्थिति
2025 में भारत में बिके सभी वाहनों में से 7.8% EV थे:
ई-तीन-चक्का: 57% (श्रेणी में सबसे अधिक)
ई-दो-चक्का: 6.1%
ई-कारें (पैसेंजर): 2.6%
वाणिज्यिक वाहन: 0.9%
भारत ई-तीन-चक्कों के लिए दुनिया का सबसे बड़ा बाजार बन चुका है (IEA रिपोर्ट, 2024)।
नीति से जुड़े अन्य जोखिम
सार्वजनिक परिवहन और लास्ट माइल कनेक्टिविटी पर नीति में कम ध्यान।
EV की लागत अभी भी ज्यादा: पेट्रोल वाहनों से 20-30% महंगी, आयातित बैटरियों और पुर्जों पर निर्भरता।
स्थानीयकरण (Localisation) की गति अपेक्षा से धीमी।
घरेलू उद्योग पर प्रभाव
Tata Motors और अन्य घरेलू कंपनियों ने आयात शुल्क कम करने का विरोध किया।
उनकी दलील: इससे विदेशी कंपनियाँ सस्ती कारें बेच पाएंगी, जिससे घरेलू निवेश माहौल प्रभावित होगा।
2024 में देश में बनी EV कारों का 80% घरेलू कंपनियों द्वारा निर्माण, केवल 15% आयातित (मुख्यतः चीन से)।
विशेषज्ञों की राय
नीति का झुकाव विदेशी पूंजी और निर्यात पर केंद्रित है।
भारत को स्थानीय आपूर्ति श्रृंखला, स्किलिंग, R&D और नवाचार पर ध्यान देना चाहिए।
EVs में पुर्जे कम होते हैं, रोजगार अवसर सीमित हो सकते हैं — इसलिए यह देखना जरूरी है कि कितने रोजगार बनेंगे और कितने खत्म होंगे।
Source: The Hindu