जनगणना में देरी: भारत की अगली दशक की जनगणना, जो 2021 में होनी थी, COVID-19 महामारी के कारण स्थगित हुई और अब इसे मार्च 2027 तक पूरा करने की योजना है। इसमें और देरी राजनीतिक कारणों से भी जुड़ी मानी जा रही है।
प्रभावित योजनाएं: जनगणना की देरी से समाजिक सुरक्षा योजनाएं प्रभावित हुई हैं, क्योंकि ये योजनाएं अद्यतन जनसांख्यिकीय आंकड़ों पर निर्भर होती हैं।
डिजिटल जनगणना: पहली बार यह जनगणना डिजिटल तरीके से की जाएगी, जिससे डेटा एकत्र करना और विश्लेषण करना आसान होगा। हालांकि, इससे डेटा सुरक्षा और गोपनीयता की चिंताएं भी बढ़ गई हैं।
पारदर्शिता की आवश्यकता: लोगों का विश्वास बनाए रखने के लिए जनगणना प्रक्रिया में पारदर्शिता बेहद जरूरी है।
जनसंख्या की चुनौतियां: भारत युवा और वृद्ध आबादी की चुनौतियों के साथ-साथ क्षेत्रीय असमानताओं से भी जूझ रहा है, जिन्हें सटीक डेटा से बेहतर तरीके से संबोधित किया जा सकता है।
जाति आधारित गणना: 1931 के बाद पहली बार जातियों की गणना होगी, जिससे सामाजिक-आर्थिक स्थिति को समझने में मदद मिलेगी, लेकिन इससे सामाजिक विभाजन भी गहरा सकता है।
सीमा पुनर्निर्धारण (Delimitation): 2026 के बाद होने वाली पहली जनगणना के आंकड़ों के आधार पर लोकसभा और विधानसभा क्षेत्रों का पुनर्निर्धारण होना है। वर्तमान में यह 1971 की जनसंख्या पर आधारित है।
क्षेत्रीय चिंता: दक्षिण भारत के राज्यों ने चिंता जताई है कि यदि केवल जनसंख्या को आधार बनाया गया तो उनकी संसदीय सीटें कम हो सकती हैं।
केंद्र की जिम्मेदारी: केंद्र सरकार को सभी पक्षों से संवाद कर सहमति बनानी चाहिए ताकि यह न लगे कि यह देरी राजनीतिक लाभ के लिए की गई है, विशेष रूप से हिंदी भाषी राज्यों के लिए।
Source: The Hindu