पिरामिड से आवरग्लास तक: भारतीय कार्यस्थलों में एआई (AI) कैसे बदलाव ला रहा है – विस्तृत विश्लेषण

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) अब केवल कार्यों को स्वचालित करने वाला एक औज़ार नहीं रहा। यह भारतीय कंपनियों के निर्माण और संचालन के तरीके को ही बदल रहा है। परंपरागत “पिरामिड” मॉडल — जिसमें शीर्ष पर कुछ वरिष्ठ अधिकारी, बीच में प्रबंधकों की मोटी परत और नीचे श्रमिकों की एक बड़ी संख्या होती है — अब धीरे-धीरे “आवरग्लास” (Hourglass – रेतघड़ी) मॉडल में बदल रहा है। इस नए मॉडल में AI बीच के स्तर यानी मध्य प्रबंधन को काफी हद तक कम कर रहा है, जिससे शीर्ष स्तर की रणनीतिक सोच और नीचे कार्यान्वयन के लिए इंसानों और स्मार्ट टूल्स का मिश्रण सामने आता है।

आवरग्लास मॉडल क्या है?

इस मॉडल की कल्पना ऐसे की जा सकती है कि कंपनी के शीर्ष अधिकारी दीर्घकालिक रणनीति पर ध्यान केंद्रित करते हैं, जबकि रोजमर्रा के कार्य जैसे शेड्यूलिंग, परफॉर्मेंस ट्रैकिंग और डेटा विश्लेषण का काम AI संभालता है।

बीच का प्रबंधन स्तर अब उतना बड़ा नहीं रहा — AI निगरानी और निर्णय-निर्माण में मदद कर रहा है, जिससे प्रबंधकों की आवश्यकता कम हो रही है।

नीचे का आधार स्तर अब फ्रंटलाइन कर्मचारियों, तकनीकी विशेषज्ञों और AI सिस्टम्स का मिश्रण है, जो मिलकर वास्तविक समय में काम को और अधिक कुशलता से अंजाम देते हैं।

McKinsey का अनुमान है कि AI वैश्विक अर्थव्यवस्था में ट्रिलियन डॉलर जोड़ सकता है और उत्पादकता में 25% तक की वृद्धि कर सकता है, खासकर अगर कंपनियां इसे सही तरीके से अपनाएं।

भारत की अर्थव्यवस्था में SMEs (छोटे और मंझोले उद्योग) रीढ़ की हड्डी हैं, और उनके लिए यह उत्पादकता वृद्धि बेहद फायदेमंद हो सकती है।

दुनिया के दूसरे देशों में क्या हो रहा है?

यूरोप और अमेरिका में आवरग्लास मॉडल तेज़ी से अपनाया जा रहा है।

Gartner की रिपोर्ट के अनुसार, 2026 तक 20% कंपनियां अपने आधे से अधिक मिडल मैनेजर को हटाने के लिए AI का प्रयोग करेंगी।

अमेरिका जैसे देशों में, जहां औसतन मजदूरी $35 प्रति घंटा है (भारत में यह $1-$2 है), वहां ऑटोमेशन अधिक आकर्षक विकल्प बन गया है।

बड़ी कंपनियां AI का उपयोग करके कर्मचारियों की निगरानी, भर्ती प्रक्रिया का सरलीकरण, और उत्पादन को तकनीक-आधारित बनाने में जुटी हैं।

क्या भारत इसके लिए तैयार है?

भारत का रास्ता अलग है। बेंगलुरु और हैदराबाद जैसे शहर AI नवाचार के केंद्र बन चुके हैं।

लेकिन IMF के AI तैयारियों के सूचकांक में भारत 72वें स्थान पर है (स्कोर: 0.49), जबकि अमेरिका (0.77) और सिंगापुर (0.80) भारत से बहुत आगे हैं।

भारत में बाधाएं:

1. असमान अवसंरचना: ग्रामीण भारत अभी भी कमजोर इंटरनेट कनेक्टिविटी से जूझ रहा है।

2. संस्कृति में पदानुक्रम की गहराई: भारत की सामाजिक और व्यावसायिक संरचना में “बॉस की बात मानना” और “अधीनता” जैसी परंपराएं हैं, जो फ्लैट स्ट्रक्चर की राह में बाधा बनती हैं।

इसलिए भारतीय कंपनियां पूरी तरह से आवरग्लास मॉडल नहीं अपना रही हैं, बल्कि एक हाइब्रिड मॉडल को अपनाकर चल रही हैं।

उदाहरण:

फ्लिपकार्ट और रिलायंस जिओ AI का उपयोग ग्राहक की मांग की भविष्यवाणी और डिलीवरी प्रणाली सुधारने में कर रहे हैं, लेकिन विभिन्न भाषाओं और उपभोक्ता व्यवहार को देखते हुए अभी भी मानव प्रबंधन की आवश्यकता बनी हुई है।

AI के लाभ:

1. प्रभावशीलता (Efficiency):

जैसे, सूरत का एक कपड़ा व्यापारी AI की मदद से मांग का पूर्वानुमान लगा सकता है, जिससे स्टॉक का दुरुपयोग कम होगा और मुनाफा बढ़ेगा।

2. नवाचार (Innovation):

तकनीकी कंपनियां AI का उपयोग कोडिंग को गति देने के लिए कर रही हैं, जिससे इनोवेशन के लिए समय मिलता है।

NNG समूह के अनुसार, जनरेटिव AI 66% तक टास्क प्रदर्शन बढ़ाता है।

3. लचीलापन (Flexibility):

फार्मास्युटिकल कंपनियों ने महामारी के दौरान सप्लाई चेन को बनाए रखने के लिए AI का सहारा लिया।

4. बेहतर ग्राहक और कर्मचारी अनुभव:

बैंकों में 24/7 चैटबॉट,

कंपनियों में पेरोल ऑटोमेशन,

और नए अवसर जैसे AI विशेषज्ञ, डेटा नैतिकशास्त्री आदि का उभरना — जो 2027 तक 1.25 मिलियन की मांग तक पहुंच सकता है (Deloitte और Nasscom के अनुसार)।

चुनौतियां:

1. रोजगार पर खतरा:

मिडल मैनेजमेंट और कम-कुशल श्रमिक सबसे अधिक प्रभावित होंगे।

Pew Research के अनुसार, वैश्विक स्तर पर 2030 तक 800 मिलियन नौकरियों में बदलाव संभव है।

भारत जैसे देश में, जहां करोड़ों लोग इसी कार्य पर निर्भर हैं, असर गहरा हो सकता है।

2. नैतिकता और पारदर्शिता:

खराब डेटा से गलत निर्णय जैसे कि पक्षपाती लोन या नौकरी चयन संभव हैं।

ISACA के अनुसार, 79% भारतीयों को अपने डेटा की बिक्री पर आपत्ति है।

डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन एक्ट, 2023 लागू है, लेकिन यह अभी प्रारंभिक चरण में है।

3. इन्फ्रास्ट्रक्चर और लागत:

भारत की 65% आबादी ग्रामीण है, जहां तकनीक पहुंचाना मुश्किल है।

AI इन्फ्रास्ट्रक्चर महंगा है — हर कंपनी इसे वहन नहीं कर सकती।

4. संस्कृति की बाधाएं:

पारिवारिक व्यवसायों में पुराने ढांचे से चिपके रहना आम है।

पिरामिड मॉडल से हटकर AI आधारित कार्यसंस्कृति अपनाना मानसिक और सामाजिक बदलाव की मांग करता है।

क्या किया जाना चाहिए?

1. पुनः कौशल विकास (Reskilling):

कर्मचारियों को AI, डेटा एनालिटिक्स, और समस्या समाधान में प्रशिक्षित करना।

Skill India जैसी योजनाएं अच्छी शुरुआत हो सकती हैं।

2. हाइब्रिड मॉडल अपनाएं:

ग्राहक सेवा और विश्लेषण के लिए AI का उपयोग करें,

लेकिन रणनीतिक निर्णयों के लिए मानव हस्तक्षेप बना रहे।

3. नैतिक दिशा-निर्देश तय करें:

OECD के सुझावों के अनुसार पारदर्शी, निष्पक्ष और उत्तरदायी AI नीति लागू की जाए।

4. वैश्विक साझेदारियों से सीखें:

पश्चिमी देशों के अनुभव से सीखकर भारतीय आवश्यकताओं के अनुसार किफायती और व्यावसायिक मॉडल अपनाना।

5. AI को “समाधान” नहीं, “यात्रा” मानें:

लगातार साइबर जोखिमों और नियामकीय बदलावों पर नजर रखें।

निष्कर्ष:

भारत का आवरग्लास मॉडल पश्चिम की नकल नहीं होगा — यह AI की शक्ति और भारत की सामाजिक-आर्थिक वास्तविकताओं का संयोजन होगा।

अगर भारत इस संतुलन को ठीक से साध लेता है, तो AI आधारित व्यापार जगत में अगुवाई कर सकता है।

जैसे जापान में AI के कारण उत्पादकता में 0.5-0.6% की वृद्धि देखी गई, वैसा ही भारत में भी संभव है।

1.4 अरब लोगों वाले इस देश में, यह केवल तकनीकी बदलाव नहीं, बल्कि काम, मूल्य और भविष्य की परिभाषा को फिर से गढ़ने का एक अवसर है।

लेखक: वेंकट राम रेड्डी गणुथुला और कृष्ण कुमार बालारामन — IIT जोधपुर के प्रोफेसर।

Source: The Hindu