अप्रैल महीने में खुदरा (रिटेल) मुद्रास्फीति 69 महीनों के निचले स्तर पर पहुंच गई है और थोक (व्होलसेल) मुद्रास्फीति भी 13 महीनों के न्यूनतम स्तर पर रही है। यह दोनों आंकड़े न केवल आम जनता के लिए राहत देने वाले हैं, बल्कि नीति-निर्माताओं के लिए भी संतोषजनक हैं।
जनता के लिए क्या मायने हैं?
आम जनता के लिए इसका सीधा अर्थ है कि साल के शुरुआती महीनों में जो कीमतों में गिरावट देखी गई थी, वह अभी भी जारी है। सब्जियों और दालों की कीमतों में भारी गिरावट इसका प्रमुख कारण है।
विशेष रूप से: सब्जियों की कीमतों में करीब 11% की गिरावट दर्ज की गई है। दालों की कीमतें 5.2% तक घटी हैं।
हालांकि, यहां एक महत्वपूर्ण बात यह है कि यह गिरावट “बेस इफेक्ट” के कारण भी है। दरअसल, पिछले वर्ष फरवरी से अप्रैल के बीच सब्जियों की मुद्रास्फीति 27% से 30% के बीच थी, यानी उस समय कीमतें बहुत अधिक थीं। इसलिए अब जब कीमतें तुलनात्मक रूप से कम हुई हैं, तो वह गिरावट ज्यादा प्रतीत हो रही है।
नीति निर्माताओं के लिए संदेश
यह आंकड़े इस बात की पुष्टि करते हैं कि पिछले वर्ष जो मुद्रास्फीति अत्यधिक चिंता का विषय बन गई थी, अब वह पूरी तरह से नियंत्रण में है। इसके साथ ही, यह भी दर्शाता है कि भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा लगातार दो बार ब्याज दरों में कटौती करना सही कदम था।
थोक स्तर पर स्थिति
थोक मूल्य सूचकांक (WPI) के अनुसार भी मुद्रास्फीति में गिरावट का प्रमुख कारण सब्जियों की कीमतों में 18.26% की गिरावट है। यह भी पिछले वर्ष के उच्च बेस इफेक्ट (लगभग 12% अप्रैल 2024 में) के कारण आंशिक रूप से है।
सरकारी उपायों की भूमिका
सरकार द्वारा उठाए गए विभिन्न कदमों ने भी इस गिरावट में योगदान दिया है:
- आवश्यक खाद्य वस्तुओं के बफर स्टॉक को बढ़ाना
- ओपन मार्केट रिलीज करना
- आपूर्ति संकट के समय आयात में छूट देना
ये सभी प्रयास मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने में सहायक रहे हैं।
एक अन्य कारण: नकदी संकट
हाल के महीनों में बैंकों को नकदी की कमी का सामना करना पड़ा। जब बैंकों के पास कम धन होता है, तो वे कम ऋण देते हैं, जिससे बाजार में नकदी की आपूर्ति घटती है और मुद्रास्फीति में गिरावट आ सकती है। हालांकि यह कारण सकारात्मक नहीं है, परंतु इसका प्रभाव अवश्य पड़ा है।
भविष्य की स्थिति क्या होगी?
भविष्य में मुद्रास्फीति की स्थिति दो प्रमुख कारकों पर निर्भर करेगी:
1. मानसून की स्थिति – अच्छी बारिश खाद्य उत्पादन को बढ़ावा दे सकती है, जिससे कीमतें और नियंत्रित रहेंगी।
2. टैरिफ से जुड़ी अनिश्चितताएं – यदि भारत और अन्य देशों के बीच व्यापारिक तनाव बढ़ता है, तो उसका असर महंगाई पर पड़ सकता है।
नीतिगत प्रभाव: अब क्या किया जाना चाहिए?
1. RBI की अगली दरों में कटौती संभव: मुद्रास्फीति के इन आंकड़ों को देखकर संभावना है कि भारतीय रिज़र्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति (Monetary Policy Committee) जून में ब्याज दरों में एक और कटौती कर सकती है।
हालांकि, इसके लिए मई के अंत में जारी होने वाला ताजा GDP डेटा भी महत्वपूर्ण रहेगा।
2. ईंधन की कीमतों में कटौती:
अब जबकि थोक मुद्रास्फीति के आंकड़ों में कच्चे तेल की महंगाई 22 महीनों के निचले स्तर पर है, सरकारी तेल विपणन कंपनियों को ईंधन की कीमतें घटानी चाहिए।
यदि ऐसा नहीं होता है, तो सरकार को अपने तथाकथित ‘डायनामिक प्राइसिंग’ पॉलिसी को औपचारिक रूप से समाप्त कर देना चाहिए, जिसमें यह दावा किया जाता है कि कीमतें रोज़ाना अपडेट होती हैं।
हकीकत यह है कि पिछले तीन वर्षों से पेट्रोल और डीजल की कीमतें लगभग स्थिर हैं, जबकि इसी अवधि में कच्चे तेल की कीमतों में 42% तक की गिरावट आई है। ऐसे में यह नीति महज़ दिखावा बनकर रह गई है।
Source: The Hindu