तीन वर्षों से भी अधिक समय तक 190 से अधिक देशों के बीच गहन वार्ताओं के बाद, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने भविष्य की वैश्विक स्वास्थ्य आपात स्थितियों से निपटने और उन्हें रोकने के लिए एक ऐतिहासिक महामारी समझौते को अंतिम रूप दे दिया है। यह समझौता जिनेवा में WHO मुख्यालय पर 16 अप्रैल 2025 की तड़के समाप्त हुए एक मैराथन सत्र के दौरान हुआ।
इसकी आवश्यकता क्यों थी?
WHO के महानिदेशक टेड्रोस एडनॉम घेब्रेयेसस ने इसे “दुनिया को अधिक सुरक्षित बनाने की हमारी साझा यात्रा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर” कहा। उन्होंने स्वास्थ्य आपातकालीन स्थितियों का सामना करने के लिए वैश्विक एकजुटता के महत्व को रेखांकित किया।
यह समझौता COVID-19 महामारी के पाँच साल बाद आया है, जिसने अंतरराष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रणालियों की कमजोरियों को उजागर कर दिया था। साथ ही, बर्ड फ्लू (H5N1), मंकीपॉक्स (mpox), खसरा (measles) और इबोला (Ebola) जैसी बीमारियों के बढ़ते खतरे के बीच इस समझौते की तत्काल आवश्यकता महसूस की गई।
नए समझौते का मुख्य केंद्र बिंदु:
पैथोजन एक्सेस एंड बेनिफिट-शेयरिंग सिस्टम (PABS) नामक एक नई प्रणाली प्रस्तावित की गई है। इसका उद्देश्य देशों और दवा कंपनियों के बीच पैथोजन डेटा (रोगाणु से संबंधित जानकारी) का त्वरित आदान-प्रदान सुनिश्चित करना है।
इस डेटा-साझाकरण तंत्र से भविष्य में टीके, निदान और उपचार विकसित करने की गति काफी तेज होगी।
इसके साथ ही, समझौता महामारी से संबंधित स्वास्थ्य उत्पादों (जैसे टीके, दवाएं) तक सभी देशों — खासकर निम्न और मध्यम आय वाले देशों — की निष्पक्ष और समान पहुंच सुनिश्चित करने के लिए भी प्रावधान करता है।
COVID-19 के दौरान अमीर देशों ने भारी मात्रा में टीके, टेस्ट किट और सुरक्षात्मक उपकरण जुटा लिए थे, जबकि गरीब देश इनकी कमी से जूझते रहे। यह नया समझौता इन असमानताओं को दोहराने से रोकने के लिए बनाया गया है।
तकनीकी स्थानांतरण पर बहस:
तकनीकी स्थानांतरण (Technology Transfer) समझौते का सबसे विवादास्पद पहलू रहा।
विकासशील देशों ने महामारी के समय महत्वपूर्ण स्वास्थ्य तकनीकों को अनिवार्य रूप से साझा करने की मांग की।
लेकिन जिन देशों में मजबूत फार्मास्युटिकल उद्योग हैं (जैसे यूरोपीय देश), उन्होंने बौद्धिक संपदा अधिकार (Intellectual Property Rights) और नवाचार प्रोत्साहनों के नुकसान की चिंता जताते हुए इसका विरोध किया।
अंततः एक समझौता हुआ: तकनीकी स्थानांतरण “आपसी सहमति” (mutually agreed) के आधार पर होगा।
यह संतुलन बिठाने का प्रयास था — वैश्विक न्याय के साथ-साथ दवा उद्योग के व्यावसायिक हितों की रक्षा करना।
32 पेज के इस दस्तावेज़ को पूरी तरह से हरे रंग में चिह्नित किया गया था, जिसका अर्थ है कि इसमें सभी देशों की पूर्ण सहमति थी।
महामारी ने किन खामियों को उजागर किया?
COVID-19 महामारी ने वैश्विक स्वास्थ्य आपात स्थितियों के प्रति दुनिया की समन्वित प्रतिक्रिया में गंभीर कमजोरियों को उजागर किया, जैसे:
- डेटा साझा करने में देरी और असंगठित प्रयास
- टीकों और अन्य चिकित्सा उपकरणों तक असमान पहुंच
- मानकीकृत प्रोटोकॉल की कमी
- अंतरराष्ट्रीय जवाबदेही का अभाव
अक्सर देशों ने अकेले ही कार्य किया — संसाधनों को जमा करना, सीमाओं को बंद करना — जिससे महामारी का प्रभाव और बढ़ गया।
हालांकि, COVAX जैसी पहलों ने वैक्सीन तक समान पहुंच बनाने का प्रयास किया, लेकिन वे भी फंडिंग और सहयोग की कमी से जूझती रहीं।
विशेषज्ञों ने चेताया था कि अगर एक वैश्विक, कानूनी ढांचे को स्वीकृति नहीं मिली, तो भविष्य में भी वही गलतियां दोहराई जाएंगी।
मुख्य चुनौतियाँ क्या थीं?
वार्ताएं बेहद जटिल रहीं और अक्सर राष्ट्रीय हितों के टकराव के कारण रुकती रहीं।
अनुच्छेद 11, जो महामारी से संबंधित तकनीकों के हस्तांतरण से जुड़ा है, प्रमुख विवाद का विषय था।
विकासशील देशों ने जीवन रक्षक तकनीकों की अनिवार्य साझेदारी की मांग की।
विकसित देशों ने इसका विरोध किया, यह कहते हुए कि इससे नवाचार के लिए आवश्यक वित्तीय प्रोत्साहनों को खतरा होगा और यह अंतरराष्ट्रीय व्यापार कानूनों का उल्लंघन कर सकता है।
अंत में, “आपसी सहमति” के आधार पर तकनीकी हस्तांतरण का समझौता हुआ — जो कि एक कूटनीतिक मध्य मार्ग था।
हालांकि आलोचकों का कहना है कि इसमें प्रवर्तन क्षमता (enforceability) की कमी है और यह कमजोर देशों की रक्षा नहीं कर सकता।
क्या यह वैश्विक सहयोग को आकार देगा?
समझौते का एक प्रमुख पहलू “समानता” (Equity) पर जोर देना है।
WHO प्रमुख ने कहा कि यह पाठ विशेष रूप से उन देशों के लिए न्यायपूर्ण पहुंच की प्रतिबद्धता को दर्शाता है जो स्वास्थ्य संकटों के दौरान सबसे अधिक प्रभावित होते हैं।
समझौते में निम्न-आय वाले देशों के लिए क्षमता निर्माण (Capacity Building) और स्वास्थ्य अवसंरचना को मजबूत करने के लिए अंतरराष्ट्रीय समर्थन का वादा भी किया गया है।
हालांकि, इसकी वास्तविक सफलता राजनीतिक इच्छाशक्ति और व्यावहारिक कार्यान्वयन पर निर्भर करेगी।
हेलन क्लार्क (न्यूजीलैंड की पूर्व प्रधानमंत्री) ने कहा कि यह समझौता दिखाता है कि विभाजित वैश्विक परिदृश्य में भी बहुपक्षीय सहयोग संभव है।
डेविड रेड्डी, (International Federation of Pharmaceutical Manufacturers and Associations के महानिदेशक) ने चेताया कि अगर उद्योगों के अधिकारों और निवेश सुरक्षा का ध्यान नहीं रखा गया तो नवाचार बाधित हो सकता है।
आगे क्या होगा?
हालाँकि समझौते को अंतिम रूप दे दिया गया है, लेकिन सदस्य देशों को अब इसकी सिद्धांतों को अपने राष्ट्रीय कानूनों में शामिल करना होगा, वित्त पोषण तंत्र विकसित करना होगा और निगरानी प्रणालियाँ बनानी होंगी ताकि अनुपालन सुनिश्चित किया जा सके।
यह समझौता WHO की वार्षिक महासभा में औपचारिक रूप से अपनाया जाएगा।
Source: The Hindu