यह कल्पना करना मुश्किल नहीं है कि अगर अमेरिका में भी भारत या ब्रिटेन की तरह संसदीय प्रणाली होती, जहाँ प्रधानमंत्री (या राष्ट्रपति) पर अविश्वास प्रस्ताव लाकर उन्हें हटाया जा सकता है, तो शायद डोनाल्ड ट्रंप को पहले ही पद छोड़ना पड़ता। इसका कारण है उनकी टैरिफ नीति (आयात शुल्क लगाने की जिद) और उसके कारण अमेरिकी डॉलर की गिरती साख।
यह पूरी स्थिति ब्रिटेन की पूर्व ओपी लिज़ ट्रस के पतन जैसी है। आपको याद होगा कि 20 अक्टूबर 2022 को ट्रस को अपनी ही पार्टी (कंजरवेटिव) के भीतर विरोध के कारण इस्तीफा देना पड़ा था। वह ब्रिटेन की सबसे कम समय तक रहने वाली प्रधानमंत्री बनीं — केवल 45 दिन के लिए।
लिज़ ट्रस की असफलता की वजह: पाउंड का गिरना
को ट्रस उस समय पीएम बनीं जब रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण ब्रिटेन में महंगाई चरम पर थी — खासकर ऊर्जा और पेट्रोलियम की कीमतें बहुत बढ़ चुकी थीं। साथ ही, 2008 की वैश्विक मंदी के बाद से ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था जूझ रही थी और ब्रेक्ज़िट (EU से बाहर होने) ने इसे और बिगाड़ दिया।
ट्रस और उनके वित्त मंत्री क्वासी क्वार्टेंग ने एक महत्वाकांक्षी योजना पेश की:
“कम टैक्स, ज़्यादा तनख्वाह, तेज़ विकास।”
इस योजना के तहत:
सरकार ने ख़र्च बढ़ाया (डिमांड बढ़ाने के लिए)
टैक्स घटाए गए (p00 सेक्टर को प्रोत्साहन देने के लिए)
लेकिन यह योजना उलटी पड़ गई। उनके मुख्य प्रतिद्वंद्वी ऋषि सुनक ने पहले ही चेतावनी दी थी कि यह योजना अर्थव्यवस्था को तबाह कर देगी — और वही हुआ।
बाजार का विश्वास हिल गया
स्टॉक मार्केट 2% कोगिर गया।
लेकिन बॉन्ड मार्केट ने असली झटका दिया।
ब्रिटिश पाउंड अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 37 साल के निचले स्तर पर चला गया।
बॉन्ड मार्केट क्या होता है?
बॉन्ड मार्केट वह जगह है जहाँ सरकार या कंपनियाँ पैसे उधार लेती हैं।
सरकारें सबसे बड़ी उधारकर्ता होती हैं क्योंकि उनके खर्च उनकी आय से ज़्यादा होते हैं। सरकार बॉन्ड जारी करती है, जिसमें लिखा होता है कि वह कुछ समय बाद (जैसे 10 साल में) एक निश्चित राशि और ब्याज के साथ पैसे लौटाएगी।
सरकारी बॉन्ड को सबसे सुरक्षित निवेश माना जाता है और जो ब्याज इससे मिलता है, उसे रिस्क-फ्री रिटर्न कहा जाता है।
लेकिन बॉन्ड की कीमतें मार्केट में घटती-बढ़ती रहती हैं। जब बॉन्ड की कीमत गिरती है, तो उसका यील्ड (ब्याज दर) बढ़ जाता है।
अगर सरकार के बॉन्ड का यील्ड बहुत बढ़ जाता है, तो:
सरकार को अगली बार उधार लेने पर ज़्यादा ब्याज देना पड़ेगा।
यह स्थिति सरकार के लिए वित्तीय संकट ला सकती है।
ट्रस के साथ यही हुआ
उनकी योजना ने महंगाई को और बढ़ा दिया:
ज़्यादा सरकारी खर्च = ज़्यादा पैसा मार्केट में
कम टैक्स = लोगों के पास ज़्यादा पैसा
इससे महंगाई और बढ़ी, जिससे पाउंड की वैल्यू गिरी और निवेशकों ने ब्रिटिश बॉन्ड को बेचना शुरू कर दिया।
जब मुद्रा (करंसी) की वैल्यू गिरती है, तो निवेशक उस देश की मुद्रा और संपत्तियाँ छोड़ देते हैं।
पाउंड में इतनी तेज़ गिरावट ने ये संकेत दिया कि दुनिया ब्रिटेन को अब एक उभरती अर्थव्यवस्था (जैसे भारत, ब्राज़ील या दक्षिण अफ्रीका) की तरह देखने लगी है।
अब अमेरिका की स्थिति और ट्रंप का मामला
अमेरिका की अर्थव्यवस्था पिछले आठ दशकों से दुनिया में सबसे बड़ी और सबसे भरोसेमंद रही है:
अमेरिका का GDP लगभग 30 ट्रिलियन डॉलर है।
वहाँ की मौद्रिक नीति (monetary policy) स्वतंत्र होती है, जिसमें राष्ट्रपति का हस्तक्षेप नहीं होता — इससे निवेशकों को भरोसा रहता है।
लेकिन डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ नीति (दूसरे देशों पर भारी आयात शुल्क लगाना) ने इस संतुलन को बिगाड़ दिया।
ट्रंप की नीतियों की समस्याएँ:
उन्होंने बगैर स्पष्ट उद्देश्य के दुनिया के लगभग हर देश पर टैरिफ लगा दिया।
किस देश पर कितना टैरिफ और क्यों — यह नीति अस्पष्ट रही।
इससे अमेरिका के व्यापारिक रिश्तों में अनिश्चितता फैल गई।
निवेशकों की प्रतिक्रिया:
अमेरिकी डॉलर में विश्वास घटा
निवेशक अमेरिकी बॉन्ड और डॉलर छोड़ने लगे
डॉलर की कीमत गिरी और यील्ड बढ़ गया — एक खतरनाक संकेत
पहले, जब किसी देश की अर्थव्यवस्था अस्थिर होती थी, तो निवेशक “सेफ हेवन” की तलाश में अमेरिकी बॉन्ड और डॉलर खरीदते थे।
जैसे 2022 में जब ब्रिटेन में संकट हुआ, तो वहाँ के निवेशक भी अमेरिकी बॉन्ड खरीदने लगे।
लेकिन अब जब अमेरिका खुद संशयपूर्ण नीतियाँ अपनाने लगा, तो निवेशक उससे दूर होने लगे हैं।
निष्कर्ष
लिज़ ट्रस की तरह डोनाल्ड ट्रंप ने भी बाजारों का भरोसा खोया है।
जिस तरह ट्रस की नीति ने ब्रिटिश पाउंड को गिरा दिया और उन्हें पीएम पद से हटना पड़ा, और उसी तरह ट्रंप की टैरिफ नीतियों ने अमेरिकी डॉलर की स्थिति को कमजोर किया है।
अगर यह गिरावट जारी रहती है, तो:
अमेरिकी डॉलर की वैश्विक स्थिति को झटका लगेगा
अमेरिका की वैश्विक नेतृत्व भूमिका पर असर पड़ेगा
यह “ट्रस मोमेंट” जैसा है — जब बाजार यह संकेत देते हैं कि आप जो कर रहे हैं, वह आर्थिक रूप से टिकाऊ नहीं है।
Source: Indian express