क्या नया वक्फ़ कानून पारदर्शिता लाएगा या उलझन बढ़ाएगा?

5 अप्रैल 2025 को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2025 को अपनी मंजूरी दे दी। यह बिल संसद में बहुत लंबी बहस के बाद पास हुआ और अब यह कानून बन चुका है। सरकार का दावा है कि यह कानून वक्फ संपत्तियों में पारदर्शिता और जवाबदेही लाने के लिए जरूरी था, लेकिन कुछ जानकार और विपक्षी नेता इसे समुदाय की धार्मिक आज़ादी में दखल मानते हैं।

वक्फ़ क्या होता है?

वक्फ़ एक इस्लामी व्यवस्था है जिसमें कोई व्यक्ति अपनी संपत्ति अल्लाह के नाम पर धार्मिक या समाजसेवा के काम के लिए समर्पित कर देता है। जैसे:

  • मस्जिदों की देखभाल
  • मदरसों का खर्च
  • गरीबों की मदद

जब कोई संपत्ति वक्फ़ हो जाती है, तो उसे बेचा नहीं जा सकता, न ही वह किसी की निजी मिल्कियत रह जाती है। भारत में इस तरह की हज़ारों संपत्तियाँ हैं और उनके लिए अलग-अलग राज्य वक्फ़ बोर्ड बनाए गए हैं जो इनका प्रबंधन करते हैं।

नए कानून में क्या बदला गया है?

1. अब हर कोई वक्फ़ नहीं कर सकता

पहले कोई भी व्यक्ति, चाहे वह किसी भी धर्म का हो, वक्फ़ कर सकता था। अब यह अधिकार सिर्फ उन्हीं लोगों को मिलेगा जो कम से कम 5 साल से मुसलमान हों।

इसका मतलब यह हुआ कि अगर कोई नया मुस्लिम धर्म अपना लेता है, तो वह तुरंत वक्फ़ नहीं कर सकता।
आलोचना: कई विशेषज्ञों का कहना है कि यह संविधान के खिलाफ है क्योंकि धर्म अपनाने के साथ ही सभी अधिकार मिलने चाहिए। 5 साल की शर्त भेदभाव करती है।

2. ‘वक्फ़ बाय यूज़र’ पर रोक

‘वक्फ़ बाय यूज़र’ का मतलब है — कोई ज़मीन अगर लंबे समय से मस्जिद या कब्रिस्तान के रूप में इस्तेमाल हो रही है, तो उसे वक्फ़ मान लिया जाता था, भले ही कागज़ न हों।

अब नया कानून कहता है कि:

  • जो ज़मीनें पहले से दर्ज हैं, वो तो वक्फ़ मानी जाएँगी।
  • लेकिन अब से बिना दस्तावेज़ के नई ज़मीनों पर दावा नहीं किया जा सकेगा।

यह निर्णय पुराने विवादों को रोकने के लिए लिया गया है, लेकिन इससे ग़रीब समुदायों की परंपरागत जगहें खतरे में आ सकती हैं।

3. सरकारी निगरानी बढ़ी, मगर सवाल भी उठे

अब वक्फ़ संपत्तियों का सर्वे डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर जैसे बड़े सरकारी अफसर करेंगे। पहले यह काम वक्फ़ विशेषज्ञों द्वारा किया जाता था।

सवाल यह उठता है कि:

  • क्या पहले से व्यस्त सरकारी अफसर ये काम सही तरीके से कर पाएँगे?
  • क्या इससे वक्फ़ बोर्ड की स्वतंत्रता घटेगी?

डॉ. फैज़ान मुस्तफा जैसे कानून के जानकार कहते हैं कि इससे पारदर्शिता नहीं, बल्कि प्रशासनिक बोझ और भ्रम बढ़ सकता है।

4. गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति

अब वक्फ़ बोर्डों में कम से कम दो गैर-मुस्लिम सदस्य अनिवार्य कर दिए गए हैं। साथ ही, अब वक्फ़ बोर्ड का CEO भी गैर-मुस्लिम हो सकता है।

विवाद: कुछ लोग कहते हैं कि धार्मिक संस्थाओं में बाहरी लोगों की नियुक्ति से धार्मिक अधिकारों में दखल हो सकता है।
लेकिन समर्थन करने वाले कहते हैं कि इससे विविधता और समावेश बढ़ेगा — महिलाओं, OBC समुदाय और अल्पसंख्यकों की भागीदारी भी सुनिश्चित होगी।

5. पैसे और ज़मीन की निगरानी मजबूत करने की कोशिश

अब हर वक्फ़ संपत्ति का विवरण एक केंद्रीकृत ऑनलाइन पोर्टल पर अपलोड करना अनिवार्य होगा। इससे पारदर्शिता बढ़ेगी और गड़बड़ियाँ पकड़ में आ सकेंगी।

लेकिन एक और बड़ा बदलाव है — अब वक्फ़ संपत्तियों पर “Limitation Act” लागू होगा
पहले वक्फ़ बोर्ड 20-30 साल बाद भी किसी ज़मीन पर दावा कर सकता था। अब अगर कोई व्यक्ति किसी वक्फ़ ज़मीन पर 12 साल से कब्ज़ा किए बैठा है, तो वह उसे अपनी बना सकता है।

इससे डर है कि कई वक्फ़ ज़मीनें स्थायी रूप से छिन सकती हैं।

अब आगे क्या होगा?

इस कानून को लेकर सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएँ दायर हो चुकी हैं। कांग्रेस, AIMIM और सामाजिक संगठनों ने इसे धार्मिक आज़ादी और संपत्ति के अधिकार का उल्लंघन बताया है।

अदालत में जब कोई कानून चुनौती दी जाती है, तो कानून को सही मानते हुए सुनवाई शुरू होती है। इसलिए जो लोग इसके खिलाफ हैं, उन्हें बहुत मजबूत तर्क पेश करने होंगे।

निष्कर्ष: सुधार या हस्तक्षेप?

नए वक्फ़ कानून में कुछ अच्छी बातें हैं —
✅ पारदर्शिता लाने की कोशिश
✅ डिजिटल रजिस्ट्रेशन
✅ सामाजिक समावेश

लेकिन कई प्रावधान अल्पसंख्यक अधिकारों, धार्मिक स्वतंत्रता और वक्फ़ बोर्ड की स्वायत्तता पर असर डाल सकते हैं।

यह कानून असली मायने में सफल तभी होगा जब:

  • इसे निष्पक्षता से लागू किया जाए,
  • समुदाय को भरोसे में लिया जाए,
  • और कानून सब धर्मों के लिए समान हो।

Source: The Hindu