प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने गुरुवार (भारत में शुक्रवार तड़के) को द्विपक्षीय व्यापार समझौते (Bilateral Trade Agreement – BTA) की दिशा में कदम बढ़ाने की घोषणा की। इस समझौते के जरिए दोनों देश वर्तमान 200 अरब डॉलर के द्विपक्षीय व्यापार को 2030 तक 500 अरब डॉलर तक पहुंचाने का लक्ष्य बना रहे हैं।
1. द्विपक्षीय व्यापार समझौता (BTA) क्या है?
- BTA कोई फ्री ट्रेड एग्रीमेंट (FTA) नहीं है, बल्कि यह केवल कुछ चुनिंदा वस्तुओं और सेवाओं पर केंद्रित होता है।
- इसमें व्यापार उदारीकरण (Trade Liberalization) का व्यापक दायरा नहीं होता, बल्कि केवल कुछ विशिष्ट वस्तुओं और सेवाओं की पहुंच को लेकर समझौता होता है।
- भारत और अमेरिका के वरिष्ठ प्रतिनिधियों को नियुक्त कर व्यापार वार्ता को आगे बढ़ाने की योजना बनाई गई है।
- दोनों देश “बाजार पहुंच बढ़ाने”, “टैरिफ और गैर-टैरिफ बाधाओं को कम करने” जैसे मुद्दों पर बातचीत करेंगे।
2. ट्रंप के बयान और व्यापार प्रतिबंध
- बैठक से कुछ घंटे पहले डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका के सभी व्यापारिक भागीदारों (जिसमें भारत भी शामिल है) पर पारस्परिक टैरिफ (Reciprocal Tariffs) लगाने की घोषणा की।
- ट्रंप का दावा है कि अमेरिका के व्यापार संबंधों में वर्षों से असंतुलन रहा है, जिसे सुधारने के लिए यह कदम उठाया गया।
- अमेरिका पहले ही भारतीय स्टील और एल्युमिनियम पर 25% टैरिफ लगा चुका है, जिससे भारत का निर्यात प्रभावित हुआ है।
- ट्रंप ने भारत के ऊँचे टैरिफ को लेकर शिकायत की, खासकर अमेरिकी कारों के लिए भारतीय बाजार में सीमित पहुंच को “बड़ी समस्या” बताया।
3. भारत के लिए संभावित प्रभाव
(i) पहले भी हो चुकी हैं व्यापार समझौते की कोशिशें
- अमेरिका और भारत इससे पहले भी व्यापार समझौते को लेकर बातचीत कर चुके हैं, लेकिन कोई ठोस समझौता नहीं हुआ।
- 2022 में इंडो-पैसिफिक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क (IPEF) के तहत अमेरिका ने भारत को अपने बाजार तक अधिक पहुंच नहीं दी, जिससे भारत सहमत नहीं हुआ।
- ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल में भारत को दिए गए GSP (Generalized System of Preferences) लाभ को भी समाप्त कर दिया, जिससे भारतीय उत्पादों को अमेरिकी बाजार में ड्यूटी-फ्री प्रवेश मिलता था।
(ii) अमेरिका में व्यापार संतुलन को लेकर दबाव
- चीन के WTO में शामिल होने के बाद अमेरिका की औद्योगिक नौकरियों में गिरावट आई, जिससे अमेरिकी नेताओं में विदेशी व्यापार को लेकर संदेह बढ़ा।
- अमेरिकी थिंक टैंक National Bureau of Economic Research की रिपोर्ट (2017) के अनुसार, चीन से बढ़ती व्यापार प्रतिस्पर्धा के कारण अमेरिकी जनता का झुकाव दक्षिणपंथी राजनीति की ओर बढ़ा।
- 2016 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में, व्यापार घाटे से प्रभावित इलाकों में ट्रंप की जीत की संभावना अधिक थी।
(iii) भारत के लिए चुनौतियाँ
- भारत को अपने टैरिफ को कम करना पड़ सकता है, जिससे अमेरिकी उत्पादों को भारतीय बाजार में अधिक पहुंच मिलेगी।
- अमेरिका में पहले से ही औसत टैरिफ काफी कम है, इसलिए अमेरिका शायद ही अपने टैरिफ में ज्यादा कटौती करेगा।
- Global Trade Research Institute (GTRI) के अनुसार, यह व्यापार समझौते का सही समय नहीं है, क्योंकि अमेरिका की मौजूदा नीति फ्री ट्रेड एग्रीमेंट (FTA) को महत्व नहीं देती।
- ट्रंप प्रशासन ने USMCA (United States-Mexico-Canada Agreement) के प्रावधानों का उल्लंघन कर मेक्सिको और कनाडा पर भी स्टील-एल्युमिनियम पर टैरिफ लगा दिए।
(iv) भारत की उच्च टैरिफ नीति और एफटीए की कमी
- भारत के टैरिफ दरें अन्य प्रतिस्पर्धी देशों की तुलना में अधिक हैं और भारत ने कम देशों के साथ FTA (Free Trade Agreement) किया है।
- ASEAN देशों को भारत से ज्यादा व्यापार लाभ मिलता है, क्योंकि उनकी टैरिफ नीति अधिक उदार है।
- IIM अहमदाबाद की 2023 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत की विनिर्माण (Manufacturing) क्षमता कमजोर है, जिससे हमारा निर्यात अधिकतर लो-टेक और मिड-टेक उत्पादों तक सीमित है।
- भारत को उच्च तकनीक और उच्च कौशल वाले उत्पादों पर ध्यान देना होगा, क्योंकि सस्ते उत्पादों में एशियाई प्रतिस्पर्धियों से मुकाबला करना कठिन है।
4. अमेरिका पर व्यापार घाटा कम करने का दबाव
(i) भारत के कृषि और मोटरसाइकिल टैरिफ पर अमेरिका की आपत्ति
- भारत का औसत MFN (Most Favoured Nation) टैरिफ 39% है, जबकि अमेरिका का केवल 5%।
- भारत अमेरिकी मोटरसाइकिलों पर 100% टैरिफ लगाता है, जबकि अमेरिका भारतीय मोटरसाइकिलों पर सिर्फ 2.4% टैरिफ लगाता है।
(ii) अमेरिका को ऊर्जा निर्यात से व्यापार घाटे की भरपाई
- भारत अमेरिकी ऊर्जा का एक बड़ा खरीदार बन रहा है।
- 2023-24 में भारत ने अमेरिका से 15 अरब डॉलर की ऊर्जा खरीदी, और यह 25 अरब डॉलर तक बढ़ने की संभावना है।
- विदेश सचिव विक्रम मिसरी के अनुसार, यह अमेरिका-भारत व्यापार असंतुलन को कम करने में मदद करेगा।
5. भारत-अमेरिका व्यापार संतुलन में बदलाव
(i) भारत का व्यापार अधिशेष (Trade Surplus) बढ़ा
- कोविड-19 महामारी के बाद, भारत का अमेरिका के साथ व्यापार अधिशेष 2019-20 में 17.3 अरब डॉलर से बढ़कर 2023-24 में 35.3 अरब डॉलर हो गया।
- भारतीय इलेक्ट्रॉनिक्स और इंजीनियरिंग उत्पादों का निर्यात बढ़ा, लेकिन रत्न-आभूषण (Gems & Jewellery) और वस्त्र (Garments) का निर्यात स्थिर रहा।
(ii) भारत की अमेरिकी वस्तुओं की आयात वृद्धि धीमी
- पिछले 5 वर्षों में भारत के अमेरिकी उत्पादों के आयात की वृद्धि धीमी रही।
- 2019-20 में भारत ने अमेरिका से 35.81 अरब डॉलर का आयात किया था, जो 2023-24 में 42.19 अरब डॉलर हुआ।
- भारतीय आयात में खनिज ईंधन (Mineral Fuels), रत्न और अर्ध-कीमती पत्थर (Precious Stones), परमाणु रिएक्टर, इलेक्ट्रिकल मशीनरी और विमान (Aircraft & Parts) प्रमुख हैं।
निष्कर्ष
- भारत और अमेरिका के बीच व्यापार बढ़ाने की दिशा में प्रयास हो रहे हैं, लेकिन टैरिफ असमानता, विनिर्माण क्षमता, और अमेरिका की व्यापार नीति बड़ी चुनौतियां बनी हुई हैं।
- भारत को अपने टैरिफ में बदलाव कर अमेरिकी उत्पादों के लिए अधिक बाजार खोलना पड़ सकता है, जिससे घरेलू उद्योग प्रभावित हो सकता है।
- अमेरिका अपनी व्यापार नीतियों में ज्यादा रियायत नहीं देगा, इसलिए भारत को अपने निर्यात को बढ़ाने के लिए उच्च तकनीक और विनिर्माण क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित करना होगा।
- ऊर्जा क्षेत्र में भारत-अमेरिका सहयोग बढ़ रहा है, जो अमेरिकी व्यापार घाटे को कम करने में मदद कर सकता है।
इस व्यापार समझौते के प्रभाव आने वाले वर्षों में स्पष्ट होंगे, लेकिन फिलहाल भारत को अपनी रणनीति सावधानीपूर्वक तय करनी होगी।
Source: Indian Express