आर्कटिक में तेजी से बढ़ता तापमान: एक गंभीर चेतावनी

आर्कटिक में तापमान में अभूतपूर्व वृद्धि
2 फरवरी को, उत्तरी ध्रुव पर तापमान औसत से 20 डिग्री सेल्सियस से अधिक बढ़ गया, जो बर्फ के पिघलने के लिए आवश्यक सीमा को पार कर गया। 1 फरवरी को नॉर्वे के स्वालबार्ड के उत्तर में पारा 1991–2020 के औसत से 18 डिग्री सेल्सियस अधिक था और अगले दिन यह 20 डिग्री सेल्सियस से अधिक हो गया।

आर्कटिक में तेज़ गर्मी के पीछे के कारण

  • कम दबाव प्रणाली: आइसलैंड के ऊपर एक गहरी निम्न-दबाव प्रणाली बनने के कारण गर्म हवा निचले अक्षांशों से उत्तरी ध्रुव तक पहुँच गई, जिससे क्षेत्र में तापमान में तेजी से वृद्धि हुई।
  • समुद्री सतह का तापमान: उत्तर-पूर्व अटलांटिक में समुद्री सतह का अत्यधिक गर्म होना भी तापमान वृद्धि का एक प्रमुख कारण रहा, जिसने हवा के माध्यम से और अधिक गर्मी को उत्तरी क्षेत्रों तक पहुँचाया।

आर्कटिक का वैश्विक तापमान पर प्रभाव

  • आर्कटिक पृथ्वी के लिए एक रेफ्रिजरेटर की तरह काम करता है, जो ग्रह को ठंडा रखने में मदद करता है। यदि तापमान इसी दर से बढ़ता रहा, तो यह समुद्र स्तर में वृद्धि और मौसम के पैटर्न में गंभीर व्यवधान ला सकता है।
  • 1979 से आर्कटिक वैश्विक औसत से चार गुना तेजी से गर्म हुआ है। यह असमान तापमान वृद्धि पृथ्वी के संतुलन के लिए खतरनाक है।

आर्कटिक के तेज़ गर्म होने के पीछे के वैज्ञानिक कारण

  • अल्बेडो प्रभाव: समुद्री बर्फ सूर्य की रोशनी को वापस अंतरिक्ष में परावर्तित करती है, जिससे तापमान कम रहता है। जैसे-जैसे बर्फ पिघलती है, ज़्यादा भूमि और पानी सूर्य के संपर्क में आते हैं और अधिक गर्मी अवशोषित होती है, जिससे तापमान बढ़ता है।
  • संवहन (Convection) की कमी: आर्कटिक में ऊँचाई पर संवहन कमजोर होता है, जिससे ग्रीनहाउस गैसों से उत्पन्न अतिरिक्त गर्मी सतह के पास केंद्रित रहती है। इसके विपरीत, उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में मजबूत संवहन के कारण गर्म हवा ऊपर उठती है और गर्मी वातावरण में फैल जाती है। आर्कटिक में यह प्रक्रिया कमजोर होने के कारण तापमान तेजी से बढ़ता है।

वैश्विक तापमान वृद्धि और आर्कटिक

  • 1850-1900 के आधार वर्ष की तुलना में वैश्विक तापमान में लगभग 1.3 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है। लेकिन यह वृद्धि समान रूप से नहीं हो रही है। 2022 के एक अध्ययन के अनुसार, आर्कटिक 1970 के दशक के अंत से वैश्विक औसत से 3.8 गुना तेजी से गर्म हुआ है।

आर्कटिक तापमान वृद्धि के संभावित प्रभाव

  • समुद्र स्तर में वृद्धि: पिघलती बर्फ के कारण समुद्र का स्तर बढ़ेगा, जिससे तटीय क्षेत्रों में बाढ़ का खतरा बढ़ेगा।
  • मौसम के पैटर्न में बदलाव: मौसम चक्रों में असंतुलन आने से बेमौसम बारिश, सूखा और तूफान जैसी घटनाओं में वृद्धि हो सकती है।
  • पारिस्थितिक तंत्र पर प्रभाव: आर्कटिक में रहने वाले जीव-जंतुओं और पौधों के प्राकृतिक आवास नष्ट हो सकते हैं, जिससे जैव विविधता पर खतरा मंडरा सकता है।

आर्कटिक में तेजी से बढ़ता तापमान एक गंभीर वैश्विक चेतावनी है। यह न केवल स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र के लिए खतरनाक है, बल्कि पूरे ग्रह के मौसम और जलवायु प्रणाली पर भी इसका गहरा प्रभाव पड़ सकता है। यदि तत्काल कदम नहीं उठाए गए, तो इसके परिणाम विनाशकारी हो सकते हैं।

Source: Indian Express

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