भारत ने पिछले दशक में स्वच्छ ऊर्जा (क्लीन एनर्जी) की ओर बढ़ने के लिए बड़े कदम उठाए हैं। इस बदलाव को समझने के लिए, सरकार द्वारा नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (MNRE) को दिए गए बजट को देखा जा सकता है। 2015 में इस मंत्रालय को ₹1,535 करोड़ मिले थे, जबकि 2025 में यह बढ़कर ₹32,626 करोड़ हो गया। लेकिन दिक्कत यह रही कि, 2015 और 2023 को छोड़कर, सरकार द्वारा आवंटित बजट पूरी तरह से खर्च नहीं किया गया।
हालांकि, केवल बजट खर्च से भारत की स्वच्छ ऊर्जा यात्रा का पूरा आकलन नहीं किया जा सकता। इसमें कई महत्वपूर्ण योजनाएँ और नीतियाँ शामिल हैं, जिन्होंने भारत को हरित ऊर्जा (ग्रीन एनर्जी) की ओर बढ़ने में मदद की है।
PM-KUSUM योजना: किसानों को सौर ऊर्जा से जोड़ने की कोशिश
2019 में, सरकार ने PM-KUSUM योजना की शुरुआत की, जिसका बजट ₹34,422 करोड़ रखा गया। इस योजना का मकसद था:
1. बिजली से चलने वाले सिंचाई पंपों को सौर ऊर्जा से चलाना ताकि किसानों को मुफ्त और पर्यावरण के अनुकूल बिजली मिले।
2. खाली पड़ी कृषि भूमि पर सौर ऊर्जा संयंत्र (सोलर प्लांट) लगाना, जिससे किसान अपनी जमीन का बेहतर उपयोग कर सकें और अतिरिक्त बिजली ग्रिड को बेची जा सके।
लेकिन इस योजना को उम्मीद के मुताबिक सफलता नहीं मिली। अब तक केवल आधा गीगावॉट (0.5 GW) क्षमता के सौर संयंत्र ही लगाए जा सके हैं।
कोविड-19 और ऊर्जा संकट से मिली सीख
2020-21 के कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान, भारत को कोयला, तेल और गैस की सप्लाई चेन में रुकावट का सामना करना पड़ा। इससे यह अहसास हुआ कि ऊर्जा का भविष्य नवीकरणीय स्रोतों (सौर और पवन ऊर्जा) पर निर्भर करना चाहिए। इसी के तहत, भारत ने COP26 (2021 ग्लासगो जलवायु सम्मेलन) में वादा किया कि पांच साल में अपनी आधी ऊर्जा जरूरतों को नवीकरणीय ऊर्जा से पूरा करेगा।
2021 के बजट में सरकार ने ₹18,100 करोड़ की PLI (Production Linked Incentive) योजना की घोषणा की, जिससे बैटरी भंडारण (battery storage) तकनीक को बढ़ावा दिया जाए, ताकि ग्रिड में ज्यादा सौर और पवन ऊर्जा जोड़ी जा सके।
इसके अलावा, सोलर पैनल बनाने के लिए ₹4,500 करोड़ की PLI योजना 2022 में बढ़ाकर ₹19,500 करोड़ कर दी गई।
चीन पर निर्भरता कम करने के लिए सख्त कदम
भारत अभी तक सोलर पैनल और सौर सेल के लिए चीन पर बहुत ज्यादा निर्भर था। इसे कम करने के लिए सरकार ने 40% बेसिक कस्टम ड्यूटी (BCD) सोलर मॉड्यूल्स पर और 25% सोलर सेल्स पर लगा दी।
लेकिन इस फैसले का एक नकारात्मक असर भी हुआ है। सोलर पैनल की कीमतें बढ़ गईं, जिससे सौर ऊर्जा परियोजनाओं की लागत बढ़ गई। नए सौर ऊर्जा संयंत्र लगाने की गति धीमी पड़ गई।
आज भले ही भारत की कुल स्थापित बिजली उत्पादन क्षमता का 46% नवीकरणीय ऊर्जा से आता हो (अक्टूबर 2024 के आंकड़े), लेकिन अब भी 70% बिजली कोयले से ही बनाई जा रही है।
समस्या: बैटरी स्टोरेज और सप्लाई चेन
सौर और पवन ऊर्जा लगातार नहीं बनती—धूप और हवा के अनुसार इनका उत्पादन बदलता रहता है। इसीलिए, बैटरी स्टोरेज तकनीक (battery storage technology) बहुत जरूरी है, ताकि सूरज या हवा न होने पर भी बिजली का भंडारण किया जा सके और जरूरत के समय इस्तेमाल किया जा सके। लेकिन बैटरी बनाने के लिए जरूरी खनिजों (लिथियम, कोबाल्ट आदि) की सप्लाई चेन में भारत चीन पर निर्भर है।
सरकार का नया कदम: कस्टम ड्यूटी छूट
सरकार को यह अहसास हुआ कि बैटरी उत्पादन पर ज्यादा टैक्स लगाना महंगा और नुकसानदायक हो सकता है। इसलिए, 12 महत्वपूर्ण खनिजों और 35 पूंजीगत उपकरणों को बेसिक कस्टम ड्यूटी (BCD) से छूट दी गई।
भारत की नई चुनौती: ऊर्जा बदलाव में नेतृत्व कैसे करें?
स्वच्छ ऊर्जा के लिए जरूरी खनिजों की खुदाई और वितरण को न्यायसंगत और पर्यावरण के अनुकूल बनाना जरूरी है।
चीन पर निर्भरता घटाने के लिए भारत को अपनी खुद की आपूर्ति श्रृंखला (supply chain) बनानी होगी।
अमेरिका अब इन क्षेत्रों में नेतृत्व की भूमिका से पीछे हट रहा है, ऐसे में भारत को वैश्विक ऊर्जा बदलाव में बड़ा रोल निभाने का मौका मिला है।
निष्कर्ष
भारत ने स्वच्छ ऊर्जा की दिशा में कई ठोस कदम उठाए हैं, लेकिन चुनौतियाँ अभी भी बनी हुई हैं:
1. PM-KUSUM योजना को सफल बनाना होगा ताकि किसान सौर ऊर्जा का अधिक उपयोग कर सकें।
2. सोलर पैनल और बैटरियों के लिए चीन पर निर्भरता कम करनी होगी।
3. ग्रिड-स्केल बैटरी स्टोरेज को मजबूत करना होगा, जिससे सौर और पवन ऊर्जा का बेहतर उपयोग हो सके।
4. महत्वपूर्ण खनिजों की खुदाई और उपयोग को सामाजिक और पर्यावरणीय दृष्टि से संतुलित बनाना होगा।
भारत के पास स्वच्छ ऊर्जा के वैश्विक नेता बनने का अवसर है, लेकिन इसके लिए नवाचार (innovation), निवेश (investment) और दूरदृष्टि (visionary policies) की जरूरत होगी।
Source: The Hindu