सुप्रीम कोर्ट का फैसला और राज्यों की चिंताएँ
सुप्रीम कोर्ट ने अपने हालिया फैसले में कहा है कि पीजी (पोस्ट ग्रेजुएट) मेडिकल पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए निवास (डोमिसाइल) के आधार पर आरक्षण नहीं दिया जा सकता। यह फैसला संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत कानून के समक्ष समानता के सिद्धांत के अनुरूप है, लेकिन इससे राज्यों की प्राथमिकताओं और उनकी स्वास्थ्य संबंधी आवश्यकताओं पर असर पड़ सकता है।
राज्यों द्वारा अपनाई गई प्रवेश प्रक्रिया और उसका औचित्य
अब तक अधिकांश राज्य, अखिल भारतीय कोटा (All India Quota) के अंतर्गत आरक्षित सीटों को छोड़कर, अपने सरकारी मेडिकल कॉलेजों की पीजी सीटों को केवल अपने राज्य के उम्मीदवारों के लिए आरक्षित रखते थे। इसी तरह, निजी मेडिकल कॉलेजों में भी वे उन सीटों पर प्राथमिकता देते थे, जो उनके राज्य के लिए उपलब्ध होती थीं। इसका मतलब यह था कि दूसरे राज्यों के विद्यार्थी सिर्फ राष्ट्रीय कोटा के माध्यम से ही उन राज्यों के मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश ले सकते थे।
इस व्यवस्था का एक ठोस आधार था। पीजी मेडिकल छात्र किसी भी सरकारी अस्पताल में स्वास्थ्य सेवाओं की रीढ़ होते हैं। चूंकि सरकारी अस्पतालों में पर्याप्त चिकित्सक नहीं होते, इसलिए पीजी मेडिकल छात्र वहां सेवा देकर इस कमी को पूरा करने में सहायक होते हैं। इसके अतिरिक्त, राज्य सरकारें अपने मेडिकल छात्रों को इस आधार पर प्रोत्साहित करती थीं कि यदि वे सरकारी सेवा में योगदान देते हैं, तो उन्हें ‘सर्विस कैंडिडेट’ के रूप में पीजी पाठ्यक्रमों में प्रवेश में प्राथमिकता दी जाएगी।
दक्षिणी राज्यों की चिंता
विशेष रूप से दक्षिणी राज्यों—जैसे तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और केरल—ने मेडिकल शिक्षा के क्षेत्र में भारी निवेश किया है। इन राज्यों ने लगभग हर जिले में एक मेडिकल कॉलेज स्थापित करने की दिशा में काम किया है, ताकि चिकित्सा सुविधाओं को मजबूत किया जा सके और उनकी स्वास्थ्य सेवाएं सुचारू रूप से चलती रहें। इन राज्यों की सरकारों का मानना है कि यदि वे पीजी मेडिकल सीटों पर अपने ही राज्य के छात्रों को प्राथमिकता नहीं देंगे, तो उनके अस्पतालों को आवश्यक चिकित्सकीय स्टाफ मिलने में कठिनाई होगी।
इसके अलावा, ये राज्य अपनी भविष्य की चिकित्सा जनशक्ति (मेडिकल मैनपावर) को सुरक्षित रखना चाहते हैं, ताकि उनके अपने डॉक्टर उनकी जरूरतों को पूरा कर सकें। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद, इन राज्यों को यह चिंता है कि यदि दूसरे राज्यों के छात्र बड़ी संख्या में उनके कॉलेजों में प्रवेश लेने लगेंगे, तो स्थानीय उम्मीदवारों को नुकसान होगा और राज्य की स्वास्थ्य सेवाओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
राज्यों की संभावित प्रतिक्रिया और केंद्र सरकार की भूमिका
संभावना है कि इस फैसले के खिलाफ कई राज्य पुनर्विचार याचिका (Review Petition) दाखिल कर सकते हैं या केंद्र सरकार से इसमें हस्तक्षेप करने की मांग कर सकते हैं। इस फैसले का एक अन्य संभावित परिणाम यह हो सकता है कि केंद्र सरकार मेडिकल दाखिलों में राज्यों की भूमिका को और सीमित करने के लिए इसका उपयोग करे।
अभी तक, अखिल भारतीय कोटा केवल एक सीमित संख्या की सीटों पर लागू होता था, लेकिन यदि केंद्र सरकार इस फैसले को आधार बनाकर सभी पीजी मेडिकल सीटों को राष्ट्रीय स्तर पर खोलने की दिशा में बढ़ती है, तो राज्यों के पास अपनी नीति लागू करने की शक्ति सीमित हो जाएगी। इससे राज्यों और केंद्र सरकार के बीच अधिकारों को लेकर नया विवाद भी खड़ा हो सकता है।
यूजी और पीजी मेडिकल पाठ्यक्रमों में अंतर की ओर इशारा
सुप्रीम कोर्ट ने यूजी (अंडरग्रेजुएट) और पीजी (पोस्टग्रेजुएट) पाठ्यक्रमों में स्थानीय जरूरतों को प्राथमिकता देने के मामले में अंतर किया है। कोर्ट का मानना है कि यूजी स्तर पर प्रवेश में निवास आधारित प्राथमिकता दी जा सकती है, क्योंकि इससे स्थानीय चिकित्सा जरूरतों को पूरा करने में मदद मिलती है। इसके पीछे यह तर्क दिया जाता है कि जब किसी राज्य में पढ़ने वाले विद्यार्थी वहीं से एमबीबीएस (MBBS) पूरा करेंगे, तो वे उसी राज्य में डॉक्टर बनकर सार्वजनिक सेवा में योगदान देंगे।
लेकिन पीजी स्तर पर, सुप्रीम कोर्ट का मानना है कि यह प्रवेश केवल योग्यता (Merit) के आधार पर होना चाहिए, ताकि सर्वश्रेष्ठ प्रतिभाओं को मौका मिले। कोर्ट के अनुसार, पीजी पाठ्यक्रमों में किसी भी प्रकार की निवास आधारित प्राथमिकता से समझौता करने का मतलब होगा कि श्रेष्ठ उम्मीदवारों को वंचित करना, जो संविधान के समक्ष समानता के सिद्धांत के खिलाफ होगा।
यूजी दाखिलों के केंद्रीकरण की प्रवृत्ति पर सवाल
सुप्रीम कोर्ट का यह तर्क अन्य स्ट्रीम्स (Streams) के यूजी दाखिलों के केंद्रीकरण (Centralization) पर भी सवाल खड़ा कर सकता है। यदि यूजी मेडिकल पाठ्यक्रमों में निवास आधारित प्राथमिकता को सही ठहराया जा सकता है, तो क्या यह अन्य व्यावसायिक पाठ्यक्रमों, जैसे इंजीनियरिंग, लॉ, मैनेजमेंट आदि में भी लागू होना चाहिए?
यदि सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला पीजी मेडिकल पाठ्यक्रमों में राज्यों की भूमिका को सीमित कर सकता है, तो क्या यह तर्क अन्य पाठ्यक्रमों पर भी लागू होगा? यह बहस का विषय हो सकता है और भविष्य में इसका असर अन्य पेशेवर शिक्षा प्रणाली पर भी पड़ सकता है।
संभावित समाधान: समान शैक्षणिक बुनियादी ढांचा
इस पूरे विवाद का दीर्घकालिक समाधान यह हो सकता है कि हर जिले में समान गुणवत्ता का शैक्षणिक बुनियादी ढांचा तैयार किया जाए। यदि सभी राज्यों में मेडिकल कॉलेजों और अस्पतालों की गुणवत्ता समान हो और पर्याप्त संख्या में सीटें उपलब्ध कराई जाएं, तो इस तरह के विवादों की संभावना कम हो जाएगी।
इसका अर्थ यह है कि मेडिकल शिक्षा के बुनियादी ढांचे में एक समान निवेश किया जाए, ताकि किसी भी राज्य को अपनी स्वास्थ्य सेवाओं के लिए दूसरे राज्यों के छात्रों पर निर्भर न रहना पड़े। जब सभी राज्यों में गुणवत्तापूर्ण मेडिकल कॉलेज और पीजी सीटें पर्याप्त मात्रा में होंगी, तो फिर राज्यों और केंद्र सरकार के बीच अधिकारों को लेकर टकराव की स्थिति भी नहीं बनेगी।
Source: The Hindu