थाईलैंड और अन्य एशियाई पड़ोसियों की तुलना में भारत LGBTQIA+ अधिकारों के मामले में पीछे क्यों है?

परिचय

LGBTQIA+ अधिकारों को मानवाधिकार और सामाजिक न्याय के महत्वपूर्ण हिस्से के रूप में देखा जाता है। भारत ने 2018 में समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर कर ऐतिहासिक कदम उठाया, लेकिन समान-लिंग विवाह (Same-Sex Marriage) को मान्यता देने के मामले में यह थाईलैंड और ताइवान जैसे एशियाई देशों से पीछे है। यह भारत के लोकतांत्रिक मूल्यों और संवैधानिक समानता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कमी को दर्शाता है।

मुख्य भाग

1. अन्य एशियाई देशों में LGBTQIA+ अधिकारों की प्रगति

थाईलैंड:

2024 में थाईलैंड ने संसद में भारी समर्थन के साथ समान-लिंग विवाह को वैध कर दिया। यह अब एशिया का सबसे बड़ा देश है जिसने LGBTQIA+ समुदाय को यह अधिकार दिया है।

ताइवान:
ताइवान 2019 में समलैंगिक विवाह को वैध बनाने वाला पहला एशियाई देश बना। इसके साथ ही 2023 में LGBTQIA+ जोड़ों को संयुक्त रूप से बच्चों को गोद लेने की अनुमति दी गई।

नेपाल:
2023 में नेपाल ने सुप्रीम कोर्ट के एक अंतरिम आदेश के बाद समान-लिंग विवाह का पंजीकरण शुरू किया। हालांकि, अभी भी वहां LGBTQIA+ जोड़ों के अधिकार सीमित हैं।


भारत की प्रगति

समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से हटाना:
2018 में सुप्रीम कोर्ट ने धारा 377 को रद्द किया, यह LGBTQIA+ अधिकारों के लिए एक ऐतिहासिक कदम था।

सामाजिक और सांस्कृतिक स्वीकृति:
भारत में 1987 से ही हिंदू रीति-रिवाजों से समलैंगिक जोड़ों की शादियां होती रही हैं। अदालतों ने भी इस तथ्य को स्वीकार किया है कि समलैंगिक रिश्ते भारतीय समाज और संस्कृति का हिस्सा हैं।


भारत में चुनौतियां

कानूनी मान्यता का अभाव:
भारत में समान-लिंग विवाह को अभी तक कानूनी मान्यता नहीं मिली है। हिंदू विवाह अधिनियम और विशेष विवाह अधिनियम जैसे कानूनों में LGBTQIA+ जोड़ों के लिए कोई प्रावधान नहीं है।

सामाजिक रूढ़िवादिता:
गहरी सामाजिक और धार्मिक रूढ़िवादिता LGBTQIA+ अधिकारों के लिए एक बड़ी बाधा है।

न्यायपालिका की सीमा:
सुप्रीम कोर्ट ने 2023 में समान-लिंग विवाह को वैध करने से इनकार कर इसे संसद पर छोड़ दिया।

राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी:
LGBTQIA+ अधिकारों को लेकर सरकार या राजनीतिक दलों की ओर से सक्रिय कदम उठाने की कमी है।


थाईलैंड और ताइवान से तुलना

राजनीतिक और सामाजिक समर्थन:
थाईलैंड और ताइवान में न्यायपालिका और विधायिका ने LGBTQIA+ अधिकारों को बढ़ावा देने में अहम भूमिका निभाई।

सांस्कृतिक स्वीकृति:
थाईलैंड जैसे देशों में ऐतिहासिक रूप से लैंगिक विविधता और LGBTQIA+ समुदाय को अधिक स्वीकृति मिली है।

विधायी सुधार:
इन देशों ने कानूनों में बदलाव कर LGBTQIA+ समुदाय को समान अधिकार दिए।

निष्कर्ष

भारत ने LGBTQIA+ अधिकारों के क्षेत्र में प्रगति की है, लेकिन समान-लिंग विवाह को कानूनी मान्यता न देना संवैधानिक समानता और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मूल्यों का उल्लंघन है। भारत को थाईलैंड और ताइवान जैसे देशों से प्रेरणा लेकर समाज में LGBTQIA+ समुदाय की स्वीकृति बढ़ाने, राजनीतिक इच्छाशक्ति को मजबूत करने और कानूनी सुधार लाने की जरूरत है। यह संविधान के अनुच्छेद 14, 19, और 21 में दिए गए समानता, स्वतंत्रता, और गरिमा के अधिकारों को सुनिश्चित करेगा और भारत को एक समावेशी लोकतंत्र बनाने में मदद करेगा।


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