भारतीय विदेश सचिव विक्रम मिस्री की बीजिंग यात्रा और भारत-चीन संबंधों की वर्तमान स्थिति पर विस्तृत विश्लेषण

भारत और चीन के बीच संबंधों का इतिहास जटिल और बहुआयामी रहा है। हालिया वर्षों में सीमा विवाद और व्यापार असंतुलन जैसे मुद्दों ने इन संबंधों को प्रभावित किया है। ऐसे में भारतीय विदेश सचिव विक्रम मिस्री की बीजिंग यात्रा को सकारात्मक कदम माना जा सकता है, लेकिन इसे सतही सफलता मानने के बजाय दीर्घकालिक कूटनीतिक प्रयासों के संदर्भ में समझने की आवश्यकता है।

यात्रा की प्रमुख उपलब्धियां

मिस्री की यात्रा के दौरान भारत और चीन ने “जन-केंद्रित कदमों” पर सहमति जताई, जो संबंध सुधार की दिशा में महत्वपूर्ण पहल हैं।

सीधी उड़ानों का पुनः संचालन:

    • भारत और चीन के बीच सीधी उड़ानों को फिर से शुरू करने का सैद्धांतिक समझौता किया गया। यह निर्णय दोनों देशों के व्यापार और सांस्कृतिक संबंधों को मजबूत करेगा।
    • महामारी के बाद संपर्क की कमी को लेकर यह पहल जरूरी थी, क्योंकि दोनों देश वैश्विक अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

कैलाश मानसरोवर यात्रा का पुनः आरंभ:

    • इस यात्रा का पुनः आरंभ धार्मिक और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देगा। यह भारतीय तीर्थयात्रियों के लिए विशेष महत्व रखता है और चीन के साथ विश्वास निर्माण में सहायक हो सकता है।

सीमा पार नदियों पर विशेषज्ञ-स्तरीय बैठकें:

    • सीमा पार नदियों जैसे ब्रह्मपुत्र और सतलुज पर सहयोग के लिए तंत्र की बहाली की गई है।
    • हालांकि, 2020 और 2023 में हाइड्रोलॉजिकल डेटा साझा करने के समझौते की समाप्ति और तिब्बत में चीन के बांध निर्माण जैसे मुद्दों पर अभी भी स्पष्टता की कमी है।

पत्रकारों का आदान-प्रदान:

    • संवाद की खाई को पाटने और पारदर्शिता बढ़ाने के लिए यह कदम स्वागतयोग्य है।

द्विपक्षीय संबंधों की 75वीं वर्षगांठ का उत्सव:

    • दोनों देशों के साझा इतिहास और सांस्कृतिक संबंधों को उजागर करने का यह अवसर पारस्परिक सम्मान बढ़ाने में मददगार हो सकता है।

समस्याएं और चुनौतियां

हालांकि कुछ क्षेत्रों में प्रगति हुई है, लेकिन महत्वपूर्ण कूटनीतिक और रणनीतिक चुनौतियां बनी हुई हैं:

सीमा विवाद:

    • लद्दाख के देपसांग और डेमचोक क्षेत्रों में सीमा पर तनाव का समाधान नहीं हुआ है।
    • सीमा विवाद न केवल द्विपक्षीय संबंधों में तनाव का कारण है, बल्कि क्षेत्रीय स्थिरता के लिए भी एक चुनौती है।
    • विशेष प्रतिनिधियों (SR) के बीच बैठकें इस दिशा में महत्वपूर्ण हैं, लेकिन अब तक ठोस प्रगति का अभाव है।

आर्थिक और व्यापारिक असंतुलन:

    • भारत-चीन व्यापार में भारी असंतुलन है, जिसमें चीन का निर्यात भारत से कई गुना अधिक है।
    • चीन द्वारा हाल ही में भारत में आईफोन निर्माण में उपकरण और श्रमिकों के हस्तांतरण पर रोक और सुरंग बोरिंग मशीनों की बिक्री पर प्रतिबंध ने आर्थिक तनाव बढ़ाया है।
    • भारतीय पक्ष ने इन मुद्दों पर चर्चा की, लेकिन चीनी बयान में इनका उल्लेख नहीं होना चिंता का विषय है।

जल विवाद:

    • चीन की तिब्बत में यारलुंग त्सांगपो नदी पर बांध निर्माण की योजनाओं को लेकर भारत में जल सुरक्षा संबंधी चिंताएं हैं।
    • हाइड्रोलॉजिकल डेटा साझा करने की प्रक्रिया को फिर से शुरू करना इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम होगा।

क्वाड और अमेरिका से भारत के संबंध:

    • चीन, भारत के अमेरिका और क्वाड (Quad) के साथ बढ़ते सहयोग को एक चुनौती के रूप में देखता है।
    • हाल ही में क्वाड की बैठकों पर चीन की कड़ी प्रतिक्रिया से यह स्पष्ट है कि बीजिंग इस क्षेत्रीय समूह को “गुटबाजी” और अपने हितों के लिए खतरे के रूप में देखता है।
    • वांग यी ने “आपसी समझ और सहयोग” बढ़ाने की बात कही, लेकिन इस बयान को परखने के लिए ठोस कार्रवाई की जरूरत होगी।

चीन का दृष्टिकोण और भारत की रणनीति

चीन ने भारत के साथ संबंध सुधार की इच्छा व्यक्त की है, लेकिन व्यवहार में उसके कदम भारत की आर्थिक और रणनीतिक चिंताओं को हल करने में विफल रहे हैं।

चीन का कूटनीतिक संदेश: वांग यी के बयान में आपसी समझ और सहयोग की बात कही गई है।

भारत का रुख: भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि संबंध सुधार की प्रक्रिया केवल पारस्परिक सम्मान और ठोस कार्रवाई पर आधारित हो सकती है।

भविष्य के लिए संभावनाएं और रणनीतियां

भारत और चीन के बीच विश्वास बहाली और स्थिर संबंधों के लिए निम्नलिखित कदम आवश्यक हैं:

सीमा विवाद का समाधान:

    • सीमा प्रबंधन को प्राथमिकता देकर स्थायी समाधान की ओर बढ़ने की आवश्यकता है।
    • SR स्तर की बैठकों को नियमित और परिणाम-उन्मुख बनाना चाहिए।

व्यापार संतुलन:

    • चीन को भारत के साथ व्यापार घाटे को कम करने के लिए ठोस उपाय करने चाहिए।
    • आर्थिक नीतियों में पारदर्शिता और सहयोग बढ़ाना आवश्यक है।

जल सुरक्षा पर ठोस कदम:

    • हाइड्रोलॉजिकल डेटा साझा करने के पुराने समझौतों को पुनर्जीवित करना और जल प्रबंधन पर स्पष्ट सहमति बनाना महत्वपूर्ण है।

क्वाड और रणनीतिक चिंताएं:

    • भारत को अपने राष्ट्रीय और क्षेत्रीय हितों को ध्यान में रखते हुए स्वतंत्र विदेश नीति अपनानी होगी।

संवाद और कूटनीति:

    • पत्रकारों, विशेषज्ञों और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देकर विश्वास निर्माण पर जोर देना होगा।

निष्कर्ष

मिस्री की यात्रा से यह स्पष्ट है कि भारत और चीन के संबंध धीरे-धीरे सामान्य होने की दिशा में बढ़ रहे हैं। हालांकि कुछ पहलुओं में प्रगति हुई है, लेकिन जटिल रणनीतिक और आर्थिक मुद्दों पर अभी भी ठोस समाधान की आवश्यकता है। यदि दोनों देश सहयोग और परस्पर सम्मान के आधार पर ठोस कदम उठाते हैं, तो वे न केवल आपसी तनाव कम कर सकते हैं, बल्कि वैश्विक स्थिरता और विकास में भी योगदान दे सकते हैं।