नया शोध क्या कहता है?
दुनिया की प्रतिष्ठित मेडिकल जर्नल “द लांसेट” में प्रकाशित दो नए शोधों के अनुसार, 2050 तक दुनिया की आधी से ज्यादा वयस्क आबादी (लगभग 380 करोड़ लोग) और एक तिहाई बच्चे (लगभग 74.6 करोड़) अधिक वजन या मोटापे से ग्रस्त हो सकते हैं।
2021 में, करीब 211 करोड़ लोग (दुनिया की 45% आबादी) मोटापे या अधिक वजन के शिकार थे। इनमें से आधे से ज्यादा लोग सिर्फ 8 देशों में पाए गए: चीन (40.2 करोड़), भारत (18 करोड़), अमेरिका (17.2 करोड़), ब्राजील (8.8 करोड़), रूस (7.1 करोड़), मैक्सिको (5.8 करोड़), इंडोनेशिया (5.2 करोड़) और मिस्र (4.1 करोड़)।
भारत में मोटापे की स्थिति
वयस्कों में मोटापा:
भारत में 1990 से 2021 के बीच 25 वर्ष से अधिक उम्र के वयस्कों में मोटापा और अधिक वजन बढ़ा है। 2050 तक, भारत दुनिया में दूसरी सबसे बड़ी मोटे लोगों की आबादी वाला देश बन सकता है।
किशोरों में मोटापा:
2021 तक, भारत 15-24 वर्ष के किशोरों में मोटापा और अधिक वजन के मामले में चीन को पछाड़कर पहले स्थान पर आ गया था। शोध के अनुसार, 2050 तक यह संख्या और अधिक बढ़ेगी।
बच्चों में मोटापा:
भारत में मोटे बच्चों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। इस मामले में चीन पहले और भारत दूसरे स्थान पर है। 2050 तक यह अंतर कम हो जाएगा क्योंकि चीन में बच्चों में मोटापा स्थिर हो जाएगा, लेकिन भारत में यह लगातार बढ़ेगा।
मोटापा किसे कहते हैं?
मोटापे और अधिक वजन को मापने के लिए बॉडी मास इंडेक्स (BMI) का उपयोग किया जाता है।
- अगर किसी व्यक्ति का BMI 30 से अधिक है, तो उसे मोटा (Obese) माना जाता है।
- अगर किसी का BMI 25 से 30 के बीच है, तो उसे अधिक वजन (Overweight) माना जाता है।
बच्चों और किशोरों के लिए इंटरनेशनल ओबेसिटी टास्क फोर्स (IOTF) के मानकों के अनुसार वजन का निर्धारण किया जाता है।
2024 में नई मोटापा परिभाषा के अनुसार, मोटापा मापने के लिए अब सिर्फ BMI को नहीं देखा जाएगा। डॉक्टर अब कमर की चौड़ाई, हिप-टू-वेस्ट अनुपात और अन्य शारीरिक कारकों को भी देखेंगे। यदि व्यक्ति को मोटापे के लक्षण नहीं हैं, तो उसे पूर्व-मोटापा (Pre-clinical Obesity) माना जाएगा।
मोटापे के बढ़ने से क्या प्रभाव पड़ेगा?
1. अधिक मोटे बच्चे और वयस्क:
आज मोटापे से ग्रस्त बच्चे बड़े होकर मोटे वयस्क बन सकते हैं, जिससे आने वाले वर्षों में यह समस्या और गंभीर होगी।
2. जीवनशैली संबंधी बीमारियाँ:
मोटे बच्चों और किशोरों को टाइप 2 डायबिटीज, हृदय रोग और कैंसर जैसी बीमारियों का खतरा जल्दी हो सकता है।
3. बुजुर्गों में मोटापा:
बुजुर्गों में मोटापा कई स्वास्थ्य समस्याएं बढ़ा सकता है, जैसे कि जोड़ों का दर्द, हार्ट फेलियर और अधिक सर्जरी की आवश्यकता। 2050 तक दुनिया में हर चार में से एक मोटा व्यक्ति 65 वर्ष से अधिक उम्र का होगा।
4. स्वास्थ्य सेवा पर असर:
मोटापे से ग्रस्त लोगों को संक्रमण और गंभीर बीमारियां होने का खतरा अधिक होता है। इससे अस्पताल और स्वास्थ्य सेवाओं पर भार बढ़ सकता है।
5. कुपोषण और मोटापा दोनों एक साथ:
कम आय वाले देशों में कुपोषण और मोटापा दोनों मौजूद हैं। कुपोषित बच्चों में शरीर वसा संचित करने की प्रवृत्ति होती है, जिससे वे आगे चलकर मोटापे और जीवनशैली रोगों के शिकार हो सकते हैं।
मोटापा क्यों बढ़ रहा है?
शोध के अनुसार, अधिक कैलोरी वाले और उच्च चीनी, नमक और वसा युक्त खाद्य पदार्थ खाने की प्रवृत्ति बढ़ रही है। पहले पारंपरिक आहार अधिक पौष्टिक होते थे, लेकिन अब बड़ी खाद्य कंपनियां कम गुणवत्ता वाले अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड को बाज़ार में बेच रही हैं।
कम आय वाले देशों में, बड़ी खाद्य कंपनियां अपनी बिक्री बढ़ा रही हैं क्योंकि यहाँ जनसंख्या अधिक है और खाद्य सुरक्षा नियम कमजोर हैं। भारत, कैमरून और वियतनाम में पैकेज्ड और प्रोसेस्ड फूड की बिक्री सबसे तेज़ी से बढ़ी है।
मोटापा रोकने के लिए क्या किया जाना चाहिए?
1. स्थानीय खाद्य प्रणाली को मजबूत करना:
बड़ी कंपनियों से मुकाबला करने के लिए स्थानीय कृषि और पारंपरिक खाद्य उत्पादों को बढ़ावा देना ज़रूरी है। साथ ही, मीठे पेय पदार्थों पर कर लगाने से कुछ देशों में मोटापा कम हुआ है।
2. स्वास्थ्य सेवाओं में निवेश:
मोटापा और संबंधित बीमारियों के इलाज में सुधार के लिए सरकारों को अस्पताल, दवाओं और डॉक्टरों पर अधिक ध्यान देना होगा।
3. राष्ट्रीय स्तर पर नीति बनाना:
मोटापे को नियंत्रित करने के लिए सरकारों को नीति और योजनाएँ बनानी चाहिए। आज भी केवल 40% देशों के पास मोटापे से निपटने की कोई नीति है, और कम आय वाले देशों में यह आंकड़ा सिर्फ 10% है।
4. गरीब देशों में शोध की जरूरत:
मोटापा कम करने के तरीकों पर अधिकतर शोध अमीर देशों में हुए हैं। लेकिन अब कम आय वाले देशों में भी इन उपायों को लागू करने के लिए अध्ययन करने की ज़रूरत है।
5. नई मोटापा दवाओं का उपयोग:
नए GLP-1 रिसेप्टर एगोनिस्ट दवाओं जैसे सेमाग्लूटाइड और टेर्जापेटाइड का उपयोग मोटापे के इलाज में किया जा सकता है। हालांकि, इन दवाओं के कुछ साइड इफेक्ट हो सकते हैं, जैसे मानसिक समस्याएं और हृदय रोगों से जुड़ी जटिलताएँ।
निष्कर्ष
2050 तक भारत में मोटापे की समस्या गंभीर हो सकती है। अगर इसे अभी नियंत्रित नहीं किया गया, तो आने वाले वर्षों में स्वास्थ्य सेवाओं, अर्थव्यवस्था और समाज पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है। सरकारों और लोगों को मिलकर संतुलित आहार, व्यायाम और स्वास्थ्य नीतियों पर ध्यान देना होगा ताकि इस समस्या को रोका जा सके।
Source: Indian Express