सुप्रीम कोर्ट का निर्देश:
सुप्रीम कोर्ट ने 22 मई को सरकार को निर्देश दिया कि वह बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों से निपटने के लिए सर्वोच्च प्राथमिकता पर POCSO कोर्ट बनाए। कोर्ट ने कहा कि कुछ राज्यों में स्पेशल POCSO कोर्ट हैं, लेकिन अधिक अदालतों की आवश्यकता है, विशेष रूप से उन राज्यों में जहां केस पेंडेंसी बहुत ज्यादा है, जैसे तमिलनाडु, बिहार, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, और महाराष्ट्र।
POCSO एक्ट के तहत ट्रायल की समय-सीमा:
सुप्रीम कोर्ट ने POCSO मामलों के लिए निर्धारित डेडलाइन के अंदर ट्रायल पूरा करने और चार्जशीट दाखिल करने का निर्देश दिया। साथ ही, राज्यवार POCSO कोर्ट की स्थिति पर रिपोर्ट देने का भी आदेश दिया।
POCSO एक्ट का उद्देश्य:
POCSO एक्ट, 2012, बच्चों को यौन शोषण से बचाने के लिए बनाया गया था। इसके तहत 18 साल से कम उम्र के बच्चों से यौन शोषण करने पर सजा दी जाती है। इसमें बच्चों को अश्लील चीजें दिखाना, उनका शोषण करना, या उन्हें वेश्यावृत्ति या पोर्नोग्राफी में शामिल करना भी अपराध माना जाता है।
फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट (FTSC):
इंडिया चाइल्ड प्रोटेक्शन फंड (ICPF) की रिपोर्ट के अनुसार, CSA मामलों में वृद्धि के बावजूद इन मामलों को निपटाने की रफ्तार बहुत धीमी है। अक्टूबर 2019 में भारत सरकार ने FTSC बनाने की योजना शुरू की, जिसके तहत 1,023 फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाए गए हैं। हालांकि, 2022 में इन अदालतों ने औसतन केवल 28 मामलों का निपटारा किया।
POCSO मामलों का बैकलॉग:
रिपोर्ट के अनुसार, भारत में POCSO मामलों का बैकलॉग गंभीर स्थिति में है। 31 जनवरी 2023 तक 2.43 लाख मामले पेंडिंग हैं, और यदि कोई नया मामला नहीं आता, तो बैकलॉग खत्म करने में लगभग 9 साल लगेंगे।
POCSO एक्ट की प्रभावशीलता:
रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि 2022 में सिर्फ 3% मामलों में ही दोषियों को सजा मिली। इसका मतलब है कि अधिकांश मामलों में आरोपियों को सजा नहीं मिल पाई।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन:
सुप्रीम कोर्ट ने 2019 में राज्य सरकारों को निर्देश दिया था कि 100 से अधिक पेंडिंग POCSO मामलों वाले जिलों में विशेष अदालतें स्थापित की जाएं। इसके बाद 2020 में बलात्कार और POCSO मामलों के त्वरित निपटान के लिए 1,023 FTSC स्थापित किए गए थे।
न्याय की गति और प्रक्रिया:
रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि पीड़ितों को न्याय मिलने तक की प्रक्रिया लंबी होती है, क्योंकि अपील की प्रक्रिया भी जारी रहती है। इसलिए, ट्रायल और अपील प्रक्रिया को समयबद्ध तरीके से पूरा करने के लिए नीति बनाई जानी चाहिए।
बाल यौन शोषण के बढ़ते मामले:
रिपोर्ट में यह चौंकाने वाली जानकारी दी गई कि 2017 से 2022 के बीच बाल यौन शोषण के मामलों की संख्या दोगुनी हो गई है, और 2022 में 64,469 बच्चे शिकार हुए। यह स्थिति तभी सुधरेगी जब POCSO एक्ट को और प्रभावी और सशक्त किया जाएगा।
Source: नवभारत टाइम्स (हिंदी)