संख्याओं से आगे: भारत की शिक्षा नीति को केवल पहुंच नहीं, बल्कि सीखने पर केंद्रित होना चाहिए

पाँच साल पहले, भारत ने दशकों में सबसे महत्वाकांक्षी शिक्षा सुधार की शुरुआत की। राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 ने रटकर याद करने की पद्धति से वास्तविक समझ की ओर, केवल सामग्री प्रदान करने से दक्षता की ओर, और मानकीकृत शिक्षण से व्यक्तिगत सीखने की ओर जाने के लिए एक सशक्त रोडमैप प्रस्तुत किया। लेकिन इस पहल की सफलता या विफलता इस बात से नहीं मापी जाएगी कि हम कितने बच्चों तक पहुँच पाए, बल्कि इस बात से मापी जाएगी कि उन्होंने कितना और कैसे सीखा। इस नीति की सच्ची कसौटी केवल पहुँच नहीं, बल्कि परिणाम हैं।

इसके लागू होने के बाद से हमनें उत्साहजनक प्रगति की है। ASER 2024 रिपोर्ट के अनुसार, ग्रामीण भारत में विभिन्न आयु वर्गों और क्षेत्रों में नामांकन स्तर में महत्वपूर्ण सुधार देखा गया है। 2018 में छात्रों की उपस्थिति जहाँ 72.4% थी, वहीं 2024 में बढ़कर 75.9% हो गई। स्कूल शिक्षा के लिए राष्ट्रीय पाठ्यचर्या ढांचा (NCF-SE) शुरू किया गया है। यह जागरूकता बढ़ी है कि शिक्षा को छात्र-केंद्रित, अनुप्रयोग-आधारित और समावेशी होना चाहिए। लेकिन जब ये ढांचागत बदलाव जड़ें जमाने लगे हैं, तब भी मूल समस्या अनसुलझी बनी हुई है: क्या शिक्षा तक यह बढ़ी हुई पहुँच प्रभावी सीखने में परिवर्तित हो रही है?

वर्षों में थोड़े बहुत सुधार दिखाने वाले आँकड़ों के बावजूद, यह स्पष्ट होता है कि हमें अभी लंबा रास्ता तय करना है। ASER रिपोर्ट दर्शाती है कि जहाँ अब 84% ग्रामीण घरों में स्मार्टफोन हैं, वहीं केवल 42% कक्षा 5 के छात्र कक्षा 2 का पाठ पढ़ सकते हैं, और लगभग 30% छात्र ही बुनियादी भाग करने की समस्याओं को हल कर पाते हैं। राष्ट्रीय उपलब्धि सर्वेक्षण (2023), जो भाषा, गणित, पर्यावरण अध्ययन, विज्ञान और सामाजिक अध्ययन में दक्षता की जाँच करता है, के परिणाम बताते हैं कि केवल 42% कक्षा 3, 33% कक्षा 5, 27% कक्षा 8, और 22% कक्षा 10 के छात्र दक्षता और उन्नत स्तर पर हैं।

नामांकन में सुधार और सीखने के परिणामों में अंतर यह दर्शाता है कि भारत की शिक्षा संबंधी चुनौती अब केवल पहुँच तक सीमित नहीं है। यह अब प्रभावशीलता की समस्या बन चुकी है। डिजिटल बुनियादी ढांचे, ऑनलाइन शिक्षण सामग्री, और विकसित हो रहे पाठ्यक्रम और शिक्षण पद्धतियों की बढ़ती उपलब्धता के बावजूद, यह स्पष्ट नहीं है कि छात्र का अधिगम अपेक्षित स्तर तक क्यों नहीं बढ़ रहा।

निजी क्षेत्र में भी ऐसा ही रुझान देखने को मिल रहा है। एजटेक कंपनियों ने दूरस्थ क्षेत्रों तक पाठ्यक्रम पहुँचाया है, बड़े पैमाने पर ट्यूटरिंग की सुविधा दी है, और परीक्षा की तैयारी को अधिक सुलभ बनाया है। लेकिन सफलता को अभी भी डेली एक्टिव यूज़र, सेशन टाइम, और कोर्स पूर्णता जैसी मीट्रिक्स से आँका जा रहा है। यह मापन और मूल्य के बीच का असंतुलन एक पूरी पीढ़ी को सामग्री से अधिक भरा हुआ लेकिन संज्ञानात्मक रूप से कमज़ोर बना रहा है।

मीट्रिक्स से परिणामों की ओर
धीमी प्रगति नीति की समस्या नहीं है। यह तकनीकी समस्या भी नहीं है। यह क्रियान्वयन की समस्या है। हमने डिजिटल पहुँच को सीखने की प्रगति समझ लिया, और अब हमें यह पुनः परिभाषित करना होगा कि तकनीकी माध्यम से उपलब्ध शिक्षण की उपलब्धियों को हम कैसे मापते हैं।

शैक्षिक परिणामों को मापने के लिए उपयोगकर्ता जुड़ाव की माप से भिन्न उपकरणों की आवश्यकता होती है। इसके लिए ऐसे परिष्कृत मूल्यांकन ढांचे की ज़रूरत होती है जो केवल तथ्यात्मक याददाश्त नहीं, बल्कि वैचारिक समझ को माप सके। इसके लिए दीर्घकालिक ट्रैकिंग की आवश्यकता है जो महीनों और वर्षों में छात्रों के बौद्धिक विकास को देख सके। और ऐसे निदान उपकरणों की ज़रूरत है जो यह इंगित कर सकें कि छात्र कहाँ अटक गए हैं, न कि केवल यह कि वे क्या गलत कर रहे हैं।

NEP 2020 पहले ही एक व्यावहारिक खाका प्रस्तुत करता है जो दक्षता आधारित शिक्षण, फॉर्मेटिव मूल्यांकन, और लचीले शिक्षण डिज़ाइन पर ज़ोर देता है। अब आवश्यकता उन प्रणालियों और उपकरणों की है जो इस दृष्टिकोण को प्रभावी ढंग से, बड़े पैमाने पर, और बिना शिक्षकों पर अधिक भार डाले लागू कर सकें।

यहीं पर सही तरीके से इस्तेमाल किया गया AI रूपांतरकारी हो सकता है
केवल पाठ्यपुस्तकों को डिजिटाइज़ करने या व्याख्यान रिकॉर्ड करने के बजाय, अब हम ऐसे प्लेटफ़ॉर्म बना सकते हैं जो छात्र की गति के अनुसार अनुकूलित हो सकें, भ्रम के क्षेत्रों की पहचान कर सकें, और लक्षित हस्तक्षेप प्रदान कर सकें। ये प्रणालियाँ समय बिताने के बजाय प्राप्त दक्षता के आधार पर सीखने को ट्रैक कर सकती हैं।

उदाहरण के लिए, छोटे, विषय-विशिष्ट एआई मॉडल जो वास्तविक पाठ्यक्रम डेटा और छात्र प्रदर्शन प्रवृत्तियों पर प्रशिक्षित हों, बड़े और सामान्य मॉडलों से बेहतर प्रदर्शन कर सकते हैं, और सटीक प्रतिक्रिया, सुधार, और पुनरावृत्ति समर्थन प्रदान कर सकते हैं। प्रतिस्पर्धात्मक परीक्षाओं में, जहाँ त्रुटि की गुंजाइश बहुत कम होती है, ऐसे मॉडल प्रारंभिक रूप से यह दर्शा चुके हैं कि वे वैचारिक अंतराल को तेज़ी से और प्रभावी ढंग से पाट सकते हैं।

उपकरणों का उपयोग शिक्षकों को इन-क्लास पोल लेने, उपस्थिति ट्रैक करने, और वास्तविक समय में क्विज़ कराने की सुविधा देने के लिए किया जा सकता है। ये रीयल-टाइम डायग्नोस्टिक्स शिक्षकों को तुरंत यह अंतर्दृष्टि देते हैं कि छात्र कहाँ संघर्ष कर रहे हैं, बिना अतिरिक्त मूल्यांकन या कागजी कार्य की आवश्यकता के।

लेकिन सीखने को मापने के लिए केवल तकनीक पर्याप्त नहीं है। इसके लिए सोच का बदलाव आवश्यक है।
हमें गतिविधि को ट्रैक करने से आगे बढ़कर प्रगति की निगरानी की ओर जाना होगा। यही कारण है कि हम एक ऐसे मॉडल का प्रस्ताव रखते हैं जिसे ‘लर्निंग आउटकम्स एज़ ए सर्विस’ कहा जा सकता है — जहाँ सामग्री, शिक्षण, मूल्यांकन और हस्तक्षेप को स्पष्ट शिक्षण लक्ष्यों के इर्द-गिर्द बनाया गया हो। ऐसे सिस्टम मौजूदा और नए मूल्यांकन ढांचे का उपयोग करके विषय में दक्षता की जाँच कर सकते हैं, अनुकूलन तकनीक के माध्यम से अधिगम को वैयक्तिकृत कर सकते हैं, और सतत विश्लेषण के ज़रिए सुनिश्चित कर सकते हैं कि लक्षित लक्ष्य पूरे हों।

इसे लागू करने के लिए शिक्षा पारिस्थितिकी तंत्र में भागीदारी आवश्यक होगी। स्कूलों, गैर-सरकारी संगठनों, नीति विशेषज्ञों, और तकनीकी कंपनियों को मिलकर ऐसे समाधान तैयार करने होंगे जो वैचारिक स्पष्टता, पार्श्व सोच, और रचनात्मक समस्या समाधान को प्राथमिकता दें। कक्षा के प्रदर्शन, परीक्षा प्रवृत्तियों, और छात्र व्यवहार जैसे मौजूदा फॉर्मेटिव डेटा का अधिक बुद्धिमानी से उपयोग किया जा सकता है ताकि सुधार की दिशा तय हो। लेकिन यह तभी संभव होगा जब हम सार्वजनिक और निजी शैक्षिक संस्थानों व संगठनों के लिए एक नया मानक स्थापित करें।

लेकिन क्या परिणामों को दिखावे से ऊपर, और अधिगम को विरासत से ऊपर रखने की सामूहिक इच्छा है?
भारत एक चौराहे पर खड़ा है। हम या तो मामूली सुधारों और केवल पायलट परियोजनाओं तक सीमित नवाचार में आशा ढूँढते रह सकते हैं। या फिर हम उस कठिन रास्ते पर चल सकते हैं जो प्रणालीगत परिवर्तन की मांग करता है — ऐसा शैक्षिक पारिस्थितिकी तंत्र बनाना जो वास्तव में छात्र के सीखने को प्राथमिकता देता हो। दांव बहुत ऊँचे हैं। एक वैश्विक अर्थव्यवस्था जो नवाचार और समस्या समाधान से संचालित होती है, उसमें हम केवल शिक्षा की बात नहीं कर रहे — हम भारत की ज्ञान-आधारित अर्थव्यवस्था में प्रतिस्पर्धा की क्षमता की बात कर रहे हैं।

Source: The Hindu