शिक्षा प्रणाली में भ्रष्टाचार को रोकना जरूरी

हाल ही में एक कुलपति, NAAC (राष्ट्रीय प्रत्यायन और मूल्यांकन परिषद) के अधिकारी, प्रतिष्ठित संस्थानों के प्रोफेसर और एक “उच्च रैंकिंग” विश्वविद्यालय के पदाधिकारी रिश्वत के आरोप में गिरफ्तार किए गए। आरोप है कि बेहतर रैंकिंग पाने के लिए रिश्वत दी और ली गई। यह न केवल दुखद है बल्कि शिक्षा व्यवस्था के गिरते स्तर को भी दर्शाता है।

पारदर्शिता और जवाबदेही की शुरुआत

  • 13 साल पहले शिक्षा प्रणाली में पारदर्शिता लाने के लिए डिजिटलाइजेशन किया गया।
  • पूरी प्रक्रिया ऑनलाइन की गई – आवेदन, दस्तावेजों की जांच, अंतिम मंजूरी पत्र जारी करना आदि।
  • संस्थानों के प्रबंधन से सीधा संपर्क कम कर दिया गया ताकि किसी भी तरह की अनियमितता रोकी जा सके।
  • विशेषज्ञों के फिजिकल दौरे भी सीमित कर दिए गए और अधिकांश काम ऑनलाइन डेटा अपडेट करने से किया जाने लगा।

भ्रष्टाचार के पीछे कारण

  • किसी भी नियामक संस्था (Regulatory Body) के पास नियम तोड़ने वालों को पकड़ने का अधिकार होता है।
  • लेकिन कई बार, इन्हें पकड़ने या छोड़ने का फैसला रिश्वत के आधार पर लिया जाता है।
  • जब दांव ऊंचे होते हैं, तो भ्रष्टाचार चक्र और मजबूत हो जाता है।

AICTE में सुधार और चुनौतियाँ

  • पहले AICTE (अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद) में भ्रष्टाचार और अनियमितताओं की भरमार थी।
  • अधिकारियों को मनमानी शक्तियाँ मिली हुई थीं, जिससे वे भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे सकते थे।
  • सुधारों के तहत:
    ✔ ई-गवर्नेंस प्रणाली लागू की गई।
    ✔ सभी नियमों और प्रक्रियाओं को डिजिटल रूप में सुरक्षित किया गया।
    ✔ पुराने कर्मचारियों का स्थानांतरण किया गया और अस्थायी कर्मचारियों की जगह स्थायी लोगों को नियुक्त किया गया।
  • यह सुधार आसान नहीं था, क्योंकि इस दौरान निजी और पेशेवर धमकियों का भी सामना करना पड़ा।

क्या भ्रष्टाचार सिर्फ सरकारी संस्थानों तक सीमित है?

  • बिल्कुल नहीं! कई निजी संस्थान भी भ्रष्टाचार में लिप्त हैं।
  • बेहतर रैंकिंग पाने के लिए फीस बढ़ाना, मैनेजमेंट सीट बेचना – ये सब संस्थानों की कमाई का हिस्सा बन चुका है।
  • यह समस्या सिर्फ “सरकार बनाम प्राइवेट” नहीं है, बल्कि यह मूल्यों (Values) की कमी का मामला है।

भविष्य में सुधार के लिए जरूरी कदम

  • भ्रष्टाचार बुरा है, यह समझना पहला कदम है।
  • शिक्षा संस्थानों के नियामकों (NAAC, NBA आदि) को यह समझना होगा कि रैंकिंग से संस्थानों की फीस और कमाई जुड़ी होती है।
  • संस्थानों को किसी भी हाल में बेहतर रैंकिंग पाने की जरूरत होती है, जिससे वे भ्रष्टाचार का सहारा लेते हैं।
  • NAAC की प्रस्तावित “Binary Accreditation” (सिर्फ मान्यता या अमान्यता) इस समस्या का समाधान हो सकता है, लेकिन इसमें गुणवत्ता की सूक्ष्मता खो सकती है।
  • डिजिटल सत्यापन प्रणाली अपनानी चाहिए ताकि रैंकिंग से जुड़ी धांधली रोकी जा सके।
  • DigiLocker का उपयोग अनिवार्य किया जाए, जिसमें सभी शैक्षणिक और प्रशासनिक दस्तावेज सुरक्षित अपलोड किए जाएं।

भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए नैतिकता जरूरी

  • मेक्सिको के अर्थशास्त्री Angel Gurría का कहना है कि “ईमानदारी, पारदर्शिता और भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई हमारी संस्कृति का हिस्सा होनी चाहिए।”
  • यह सिर्फ कुछ व्यक्तियों की जिम्मेदारी नहीं हो सकती। इसके लिए सामूहिक प्रयास करने होंगे।
  • नियामक संस्थानों के प्रमुखों और कुलपतियों को उदाहरण पेश करना चाहिए।

निष्कर्ष

  • शिक्षा प्रणाली को भ्रष्टाचार से मुक्त रखना समाज की जिम्मेदारी है।
  • भ्रष्टाचार का खामियाजा करदाता और सबसे ज्यादा देश के युवा चुकाते हैं।
  • जब तक संस्थानों को बेहतर रैंकिंग से मुनाफा होगा, तब तक भ्रष्टाचार का खतरा बना रहेगा।
  • सरकार और नियामक संस्थाओं को पारदर्शिता और ईमानदारी की मिसाल पेश करनी होगी।
  • शिक्षा सिर्फ डिग्री नहीं, बल्कि सही मूल्यों को अपनाने की प्रेरणा भी होनी चाहिए! 💡📚