व्यापार की पहेली: निर्यात और वैश्विक व्यापार

माल निर्यात में बढ़ोतरी सुखद है, लेकिन इसे कायम रखना मुश्किल है

उतार-चढ़ाव भरे व्यापारिक वर्ष के अंत में, फरवरी महीने के दौरान भारत का माल निर्यात 11.9 फीसदी बढ़ गया, जोकि पिछले 20 महीनों में हुई सबसे अच्छी वृद्धि है। कुल 41.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर का आंकड़ा बीते 11 महीनों में सबसे ज्यादा है और पिछले दो सालों में यह सिर्फ तीसरी मर्तबा है जब भारतीय निर्यात ने 40 बिलियन अमेरिकी डॉलर के आंकड़े को पार किया है। उल्लेखनीय है कि यह उछाल इस साल के पहले दस महीनों में 35.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर के औसत निर्यात से काफी ज्यादा है और लाल सागर एवं सूखा प्रभावित पनामा नहर में व्याप्त व्यवधानों से जुड़ी चिंताओं के बीच आया है। लाल सागर और पनामा नहर के व्यवधानों ने इन महत्वपूर्ण व्यापारिक मार्गों को अवरुद्ध कर दिया है और इसके चलते खेपों को ले जाने में लगाने वाले समय और लागत में बढ़ोतरी हो गई है।

 

अब जबकि पिछले दो महीनों के व्यापार के आंकड़े यह बताते हैं कि भारत को अभी भी यूरोप और अमेरिका के प्रमुख बाजारों में पहुंचने में आने वाली रसद (लॉजिस्टिक्स) संबंधी चुनौतियों का पूरा असर महसूस नहीं हुआ है, लिहाजा इस किस्म का निष्कर्ष कुछ ज्यादा ही सरल साबित हो सकता है। यह सुखद है कि फरवरी के कुछ आंकड़े उन खेपों को दर्शाते हैं जो शायद पहले भेजे गए थे और लंबे मार्गों का इस्तेमाल करके पिछले महीने ही अपने गंतव्य पर पहुंचे। अर्थशास्त्रियों का मानना है कि लंबित ऑर्डरों के पूरा होने और मांग में सुधार का संयुक्त असर हुआ है। हालांकि, ब्याज दरों के अभी भी ऊंची रहने के चलते वैश्विक मांग में वह उछाल नहीं दिख पाया है जिसकी विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) ने 2024 में होने की उम्मीद की थी।

 

डब्ल्यूटीओ को उम्मीद है कि 2023 में 0.8 फीसदी की गिरावट के बाद इस साल वैश्विक व्यापार में 3.3 फीसदी की बढ़ोतरी होगी। लेकिन उसके अपने हिसाब से, गुड्स ट्रेड बैरोमीटर नाम के पैमाने के आधार पर, चीजें अभी भी बेहतर नहीं हुई हैं। बीते 8 मार्च तक उक्त बैरोमीटर की रीडिंग महज 100.6 थी। इस बैरोमीटर पर 100 से ज्यादा की रीडिंग ऊपर की ओर रूझान वाले आयात-निर्यात (एक्जिम) की मात्रा को दर्शाती है। निर्यात के ऑर्डर का पैरामीटर जहां बस थोड़ा सा ही ऊपर चढ़कर 101.7 पर रहा, वहीं कंटेनर का लदान लुढ़कर 98.6 पर आ गया। डब्ल्यूटीओ ने चेतावनी दी है कि 2023 के कमजोर आधार प्रभावों की वजह से 2024 की पहली तिमाही में कुछ मामूली बढ़त दिख सकती है, लेकिन क्षेत्रीय संघर्षों और भू-राजनैतिक तनावों की वजह से ऐसी कोई भी बढ़त आसानी से बेपटरी हो सकती है।

 

नीति-निर्माता पिछले साल के समग्र निर्यात (माल और सेवाओं को मिलाकर) के रिकॉर्ड को पार करने को लेकर उत्साहित हो सकते हैं, लेकिन उन्हें माल ढुलाई के भाड़े में होने वाली बढ़ोतरी के प्रभाव सहित मौजूदा जोखिमों और चुनौतियों को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। जहां 2023-24 के निर्यात की कमजोर कहानी (अब तक -3.5 फीसदी) से इलेक्ट्रॉनिक्स सामान का निर्यात बाहर बना रहा है, वहीं इलेक्ट्रॉनिक घटकों के व्यापार से संबंधित डब्ल्यूटीओ की ताजा बैरोमीटर रीडिंग गिरकर 95.6 पर आ गई है। इसकी झलक फरवरी के आंकड़ों में दिखाई देती है क्योंकि इलेक्ट्रॉनिक्स आयात और निर्यात, दोनों में आंशिक रूप से एक फीसदी से थोडा ज्यादा की वृद्धि हुई है। फिलहाल, महंगे सोने की आवक की वजह से पिछले महीने आयात के 17 महीने की उच्च गति पर पहुंच जाने के बावजूद व्यापार घाटा चिंता का सबब नहीं होना चाहिए। निर्यातकों, खासतौर पर बुरी तरह से प्रभावित कपड़ा और रत्न एवं आभूषण जैसे रोजगार प्रदान करने वाले क्षेत्रों से जुड़े व्यापारियों, को समर्थन प्रदान करने के लिए बेहतर तरीके ढूंढना महत्वपूर्ण बना हुआ है।

 

Source: The Hindu