विश्वविद्यालय बनाम संवैधानिक रूप से संरक्षित भाषण

स्वतंत्र अभिव्यक्ति और विश्वविद्यालयों में विचारों की स्वतंत्रता पर आधारित मुख्य बिंदु:

स्वतंत्र अभिव्यक्ति का महत्व

जॉन मिल्टन ने कहा था कि विचार प्रकट करने और विवेक के अनुसार तर्क करने की स्वतंत्रता, सभी स्वतंत्रताओं से ऊपर है।

विश्वविद्यालय शिक्षक कोई रोबोट नहीं हैं; उन्हें भी समसामयिक मुद्दों पर अपनी राय व्यक्त करने का अधिकार है।

अनुमति प्रणाली (Licensing System) की आलोचना

1644 में मिल्टन ने Areopagitica में ‘इम्प्रिमाटर’ प्रणाली का विरोध किया, जिसमें प्रकाशन से पहले सरकारी अनुमति आवश्यक थी।

क्या भारत को दोबारा उस पुराने दौर में लौट जाना चाहिए जहां बोलने से पहले सरकारी या संस्थागत अनुमति लेनी पड़े?

अभिव्यक्ति को ‘एक्टिविज्म’ बताना अनुचित

किसी विचार को रखना एक्टिविज्म नहीं है।

यदि किसी लेखक के विचार निजी हैं, तो उसे संस्था की राय न मानते हुए भी उसके विचारों को स्वतंत्र रूप से रखने देना चाहिए।

न्यायपालिका की भूमिका

सुप्रीम कोर्ट को अपने पूर्व के निर्णयों की तरह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा करनी चाहिए।

Texas vs. Johnson (1989) में अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय ध्वज जलाने को भी अभिव्यक्ति माना।

भारत की प्रेस स्वतंत्रता में गिरावट

वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में भारत की रैंकिंग 151 है, जो चिंताजनक है।

विचारों की विविधता ही लोकतंत्र की आत्मा है।

स्वतंत्रता का उद्देश्य और मर्यादा

स्वतंत्रता का उद्देश्य है — सत्य की खोज और जनता को सरकार के कार्यों पर राय बनाने में मदद करना।

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर केवल संविधान द्वारा अनुमत ‘उचित प्रतिबंध’ (reasonable restrictions) ही लगाए जा सकते हैं।

संविधान के अनुच्छेद 19(2) के अंतर्गत प्रतिबंध

यह प्रतिबंध संप्रभुता, राज्य की सुरक्षा, सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता, शालीनता, विदेशी देशों से मित्रता, मानहानि या अपराध के लिए उकसावे के आधार पर लगाए जा सकते हैं।

‘Proportionality’ का सिद्धांत

प्रतिबंध आवश्यक, वैध और न्यूनतम हस्तक्षेप करने वाला होना चाहिए।

Anuradha Bhasin बनाम भारत सरकार (2020) केस में सुप्रीम कोर्ट ने यही दृष्टिकोण अपनाया था।

निजी विश्वविद्यालय भी ‘राज्य’ की श्रेणी में

Dr. Janet Jeyapaul vs SRM University (2015) में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि निजी विश्वविद्यालय भी सार्वजनिक कार्य करते हैं, इसलिए उन पर संविधान लागू होता है।

विश्वविद्यालयों में स्वतंत्रता जरूरी

शैक्षणिक माहौल में विचारों की विविधता होनी चाहिए।

अत्यधिक नियंत्रण वाले माहौल में मौलिक सोच और शोध असंभव है।

इतिहास से सीख

प्राचीन भारत के महान विद्वान जैसे आर्यभट्ट, चाणक्य, गार्गी आदि खुले विचारों वाले गुरुकुलों से निकले थे, न कि नियंत्रित शिक्षा संस्थानों से।

Source: The Hindu