झुड़पी जंगल की जमीनें अब ‘वन भूमि’ मानी जाएंगी।
इन जमीनों को बिना केंद्र सरकार की अनुमति के अन्य कार्यों के लिए प्रयुक्त नहीं किया जा सकता।
अदालत ने विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन बनाए रखने की कोशिश की।
झुड़पी जंगल क्या है?
‘झुड़पी’ शब्द का अर्थ है झाड़ियां या झाड़ीदार भूमि।
यह जमीनें विदर्भ के नागपुर, चंद्रपुर, गढ़चिरोली, भंडारा, वर्धा और गोंदिया जिलों में पाई जाती हैं।
ये जमीनें मुख्यतः चराई, सार्वजनिक सुविधाओं (जैसे स्कूल, अस्पताल, कब्रिस्तान आदि) और विकास परियोजनाओं में प्रयुक्त होती रही हैं।
कानूनी स्थिति का इतिहास
1980 में आए Forest (Conservation) Act के बाद इन जमीनों के उपयोग पर रोक लगी।
1987 में महाराष्ट्र सरकार ने इन्हें “scrub forest” घोषित कर राजस्व विभाग को सौंपा।
1992 में केंद्र सरकार ने स्पष्ट किया कि झुड़पी जंगल वन भूमि हैं और किसी भी गैर-वन उपयोग के लिए केंद्र की अनुमति जरूरी है।
1996 में सुप्रीम कोर्ट के TN Godavarman फैसले में भी इन्हें वन भूमि माना गया।
सरकार और पर्यावरणविदों की दलीलें
सरकार: झुड़पी जमीनें कभी वन नहीं थीं, और उन्हें वन भूमि मानने से विकास रुक जाएगा।
पर्यावरणविद: इन जमीनों को डीनोटिफाई करने से वन्यजीव गलियारों और पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुंचेगा।
सुप्रीम कोर्ट के निर्देश
12 दिसंबर 1996 से पहले यदि जमीन गैर-वन उपयोग में थी, तो केंद्र की अनुमति के बाद ही डीनोटिफाई की जा सकती है।
ऐसे मामलों में मुआवजा वसूलने की आवश्यकता नहीं (जैसे NPV या compensatory afforestation)।
12 दिसंबर 1996 के बाद किए गए आवंटनों की जांच होगी और दोषी अधिकारियों पर कार्रवाई होगी।
1980 के बाद किए गए अतिक्रमण को दो वर्षों के भीतर हटाने का निर्देश।
1989 के बाद की व्यावसायिक आवंटन को अतिक्रमण माना जाएगा।
शेष झुड़पी जमीनें वन विभाग को हस्तांतरित की जाएंगी।
राज्य की विकास योजनाओं को राहत
निर्णय से कुछ विकास परियोजनाओं को राहत मिलेगी, बशर्ते केंद्र से अनुमति ली जाए।
मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने इसे विदर्भ के विकास के लिए सकारात्मक कदम बताया।
यह निर्णय पर्यावरण संरक्षण और विकास आवश्यकताओं के बीच संतुलन स्थापित करने की कोशिश करता है, जिसमें कानूनी स्पष्टता, सरकारी नियंत्रण और पारिस्थितिक संतुलन का ध्यान रखा गया है।
Source: Indian Express