वन्यजीव और मानव: बढ़ता संघर्ष और समाधान

हाल ही में केरल में जंगलों के अंदर, जंगल से सटे गांवों और यहां तक कि गांवों के भीतर भी जंगली जानवरों के हमले में कई लोगों की मौत हुई है। यह दिखाता है कि राज्य में मानव-वन्यजीव संघर्ष बढ़ रहा है। केरल का लगभग 29% क्षेत्र जंगलों से घिरा है, और अब जबकि गर्मी अधिक पड़ने की संभावना है, इस संघर्ष को रोकने के लिए तुरंत कदम उठाने की जरूरत है। यह मुद्दा अब सामाजिक, राजनीतिक और पर्यावरणीय समस्या बन चुका है।

राज्य सरकार पर यह आरोप लगाया जा रहा है कि वह वन्यजीवों को सही तरीके से नियंत्रित नहीं कर पा रही है। किसान संगठनों, जैसे कि केरल इंडिपेंडेंट फार्मर्स एसोसिएशन (KIFA), और चर्च के कुछ समूहों का कहना है कि जंगली जानवरों की संख्या बढ़ गई है, इसलिए इन्हें मार देना चाहिए। लेकिन वन विभाग के आंकड़े कुछ और ही बताते हैं।

  • जंगली हाथी (जो 18% मौतों के लिए जिम्मेदार हैं) की संख्या 7% घट गई है।
  • सांपों के काटने से होने वाली मौतें (जो 75% वन्यजीव हमलों में शामिल थीं) 2012 में 113 थीं, जो 2023 में घटकर 34 रह गईं।
  • कुल मिलाकर, 2018 में 146 लोगों की मौत हुई थी, जबकि 2023 में यह संख्या घटकर 57 रह गई।

हालांकि मौतों की संख्या कम हुई है, लेकिन यह संतोषजनक नहीं है। चिंता की बात यह है कि कई पीड़ित आदिवासी समुदायों से हैं, जो परंपरागत रूप से वन्यजीवों के साथ जीना जानते थे। सरकार को इस पर शोध करना चाहिए और आदिवासी समुदायों की पारंपरिक जानकारी को संरक्षित करने के लिए कदम उठाने चाहिए।

संघर्ष के कारण

इस समस्या के पीछे कई मानवीय कारण भी हैं:

  1. जंगलों का टुकड़ों में बंट जाना – हाथी गलियारों जैसे अरालम फार्म (कन्नूर) और चिन्नक्कानाल (इडुक्की) में जंगल कटने से जानवर गांवों की ओर आ रहे हैं।
  2. अनियंत्रित पर्यटन और अतिक्रमण – जंगलों के पास खेती, पर्यटन और कचरा फेंकने से समस्या बढ़ी है।
  3. विदेशी पौधे और एक ही तरह की खेती – जैसे कि सेनना स्पेक्टेबिलिस नामक पौधे और औद्योगिक स्तर पर नीलगिरी (eucalyptus) और बबूल (acacia) के पेड़ उगाने से वन्यजीवों का भोजन प्रभावित हो रहा है।

सरकार के कदम और आगे की राह

  • 2022 में केरल सरकार ने स्थानीय निकायों को जंगली सूअरों को मारने की अनुमति दी, क्योंकि वे खेती को नुकसान पहुंचा रहे थे।
  • 2023 में सरकार ने मानव-वन्यजीव संघर्ष को राज्य-विशेष आपदा घोषित किया ताकि आपदा प्रबंधन प्राधिकरण इस पर ध्यान दे सके।
  • सरकार अब जनभागीदारी वाले वन प्रबंधन को बढ़ावा दे रही है।
  • वन विभाग ने 5,031 हेक्टेयर जंगल को पुनर्जीवित किया और तालाब तथा छोटे बांध बनाए हैं।

हालांकि, औद्योगिक वृक्षारोपण वाले क्षेत्रों को फिर से प्राकृतिक जंगल में बदलना एक बड़ी चुनौती है। सौर बाड़ (solar fencing) से कुछ सफलता मिली है, लेकिन 52 करोड़ रुपये की लागत से बनने वाली हाथी-रोधी दीवार अब भी अधूरी है।

इस समस्या का हल क्षेत्रीय स्तर पर ही निकाला जा सकता है। इसलिए आपदा प्रबंधन, राजस्व, स्थानीय प्रशासन, आदिवासी कल्याण, कृषि, स्वास्थ्य और वन विभागों को मिलकर काम करना होगा ताकि मानव सुरक्षा और वन्यजीवों के संरक्षण के बीच संतुलन बना रहे।

Source: The Hindu