राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने आज नई दिल्ली में राष्ट्रपति भवन सांस्कृतिक केंद्र में साहित्य सम्मेलन का उद्घाटन किया। राष्ट्रपति मुर्मू ने कहा कि देश में कई भाषाएं और अनगिनत बोलियां हैं जो भारतीयता की भावना को प्रकट करती हैं।
उन्होंने कहा कि साहित्य की पहचान समय के बदलते संदर्भों के बीच स्थायी मानव मूल्यों की स्थापना करना है। राष्ट्रपति ने यह भी कहा कि आज का साहित्य उपदेशात्मक नहीं हो सकता; यह उपदेश या नैतिक किताब नहीं हो सकती। हालांकि, साहित्य के संदर्भ में प्यार और सहानुभूति बदलते रहते हैं, लेकिन उनका भावनात्मक मूल स्थिर रहता है।
राष्ट्रपति मुर्मू ने विश्वास व्यक्त किया कि यह साहित्यिक सम्मेलन वक्ताओं और प्रतिभागियों के बीच रचनात्मक संवाद को बढ़ावा देगा। सम्मेलन में कल विभिन्न सत्रों पर चर्चा की जाएगी, जिनमें कविता संगोष्ठी, भारत का स्त्रीवादी साहित्य, साहित्य में परिवर्तन बनाम परिवर्तन का साहित्य, और वैश्विक दृष्टिकोण में भारतीय साहित्य की नई दिशा शामिल हैं।
राष्ट्रपति ने संस्कृति मंत्रालय और साहित्य अकादमी का आभार व्यक्त किया, जिन्होंने इस दो दिवसीय कार्यक्रम का आयोजन किया। राष्ट्रपति मुर्मू ने थाईलैंड, कोस्टा रिका, सेंट किट्स और नेविस, तुर्की, बांग्लादेश और कजाकिस्तान के राजदूतों से परिचय पत्र प्राप्त किए।
सम्मेलन का समापन देवी अहिल्याबाई होलकर की गाथा के साथ होगा।
Source: NewsOnAir