मेघालय का सोहरा, जिसे दुनिया का सबसे अधिक वर्षा वाला स्थान माना जाता है, अब जलवायु परिवर्तन के गंभीर प्रभावों का सामना कर रहा है। इस वर्ष जून महीने में यहाँ केवल 1,095.4 मिमी वर्षा दर्ज की गई, जबकि पिछले साल इसी महीने में यह आंकड़ा 3,041.2 मिमी था। यह गिरावट लगभग दो-तिहाई की है और भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के अनुसार यह क्षेत्र में अब तक की सबसे बड़ी वार्षिक गिरावटों में से एक है। विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि सोहरा में वर्षों से अनियमित वर्षा देखी जा रही है, लेकिन जून में इतनी तेज़ गिरावट पहली बार देखी गई है। मई माह में भी लगभग 400 मिमी वर्षा की कमी रही थी।
पिछले 15 वर्षों में सोहरा की वार्षिक औसत वर्षा में निरंतर गिरावट आई है। वर्ष 2005 के बाद से, यहाँ हर साल केवल 8,000 से 9,000 मिमी बारिश हो रही है, जबकि सामान्य औसत 11,000 मिमी है। यह आंकड़ा भी 1970 के दशक की तुलना में बहुत कम है, जब यहां लगभग दोगुनी वर्षा हुआ करती थी। वर्ष 1974 में सोहरा में 24,555 मिमी वर्षा दर्ज की गई थी, जो आज भी एक विश्व रिकॉर्ड है। अब की औसत वर्षा उस रिकॉर्ड का केवल एक-तिहाई रह गई है।
विशेषज्ञ इस गिरावट के कई कारण बता रहे हैं—मानसून के बदलते पैटर्न, वनों की कटाई, समुद्री सतह के बढ़ते तापमान, और शहरीकरण। इसके अलावा, सोहरा की जनसंख्या में भी पिछले दशकों में भारी वृद्धि हुई है। 1961 में जहां केवल 7,000 लोग रहते थे, आज यह संख्या दस गुना से अधिक हो चुकी है। पर्यटन के बढ़ने से भी स्थानीय संसाधनों पर दबाव बढ़ा है। इस जनसंख्या वृद्धि और पर्यटकों की संख्या ने जल संसाधनों पर जबरदस्त बोझ डाला है।
विडंबना यह है कि इतनी अधिक वर्षा के लिए प्रसिद्ध सोहरा अब जल संकट से जूझ रहा है। गर्मियों में या सूखे के समय यहां के ग्रामीण अब कमज़ोर झरनों पर निर्भर हो गए हैं और कई क्षेत्रों में टैंकरों से पानी पहुंचाना पड़ता है। टैंकर व्यवसायियों के लिए यह कमाई का मौका बन गया है, लेकिन स्थानीय जनता के लिए यह संकट बन चुका है।
स्थानीय पर्यावरण कार्यकर्ताओं और संरक्षणवादियों ने चेतावनी दी है कि यदि समय रहते कदम नहीं उठाए गए तो यह संकट और गंभीर हो जाएगा। उन्होंने वनों की पुनर्स्थापना, जल संरक्षण और निर्माण कार्यों को नियंत्रित करने जैसे उपाय सुझाए हैं। उनका कहना है कि यह अब सिर्फ वर्षा के आंकड़ों की बात नहीं रही, बल्कि यह सोहरा के अस्तित्व का सवाल बन चुका है। अधिकारी मानते हैं कि मानसून की स्थिति पर निगरानी रखी जाएगी, लेकिन यह गिरती प्रवृत्ति आने वाले वर्षों के लिए क्षेत्र के लिए गहरी चिंता का विषय बन चुकी है।
Source: The Hindu