महिलाओं की अदृश्य श्रम शक्ति और विकसित भारत के सपने

समय उपयोग सर्वेक्षण 2024 के निष्कर्ष

हाल ही में सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय द्वारा जारी समय उपयोग सर्वेक्षण 2024 (जनवरी-दिसंबर) ने फिर से एक स्पष्ट सच्चाई को उजागर किया है:
👉 महिलाओं द्वारा घर में बिना वेतन वाले कार्यों में बिताया गया समय पुरुषों की तुलना में कहीं अधिक है।

मुख्य आंकड़े

घरेलू कार्य (Unpaid Domestic Work):

  • 2024 में महिलाएं 289 मिनट प्रतिदिन बिना वेतन वाले घरेलू कार्यों में व्यतीत कर रही हैं।
  • 2019 की तुलना में यह 10 मिनट कम है, लेकिन फिर भी यह पुरुषों की तुलना में 201 मिनट अधिक है।

देखभाल कार्य (Unpaid Caregiving Work):

  • 2024 में महिलाएं 137 मिनट प्रतिदिन देखभाल कार्यों में लगाती हैं, जो 2019 के 134 मिनट से 3 मिनट अधिक है।
  • कुल मिलाकर, महिलाएं प्रतिदिन 140 मिनट देखभाल में लगाती हैं, जबकि पुरुष केवल 75 मिनट
  • 15-59 वर्ष की आयु के 41% महिलाएं और 21.4% पुरुष देखभाल गतिविधियों में भाग लेते हैं।

इस श्रम विभाजन का प्रभाव

👉 यह लिंग आधारित श्रम विभाजन (Gendered Division of Labour) महिलाओं के दीर्घकालिक आर्थिक अवसरों और कार्यस्थल में समानता को प्रभावित करता है।
👉 घर के कार्यों में अधिक समय देने के कारण, महिलाओं के पास पेड जॉब (वेतनभोगी कार्य) के लिए कम समय और ऊर्जा बचती है।
👉 वे अतिरिक्त शैक्षिक योग्यताओं (Higher Education/Skills) को हासिल करने में पिछड़ जाती हैं।
👉 अधिकतर महिलाएं कम वेतन वाले, अंशकालिक (part-time) या अनौपचारिक (informal) नौकरियों में काम करने को मजबूर होती हैं, जिनमें लाभ (benefits) और नौकरी की सुरक्षा (job security) कम होती है।
👉 यह वेतन असमानता (Wage Gap) को बढ़ाता है, क्योंकि समान कार्य के लिए महिलाओं को पुरुषों की तुलना में काफी कम वेतन मिलता है।

अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) की रिपोर्ट – अक्टूबर 2024

ILO की रिपोर्ट “महिलाओं की श्रम भागीदारी पर देखभाल जिम्मेदारियों का प्रभाव” ने यह बताया कि:

  • भारत में 53% महिलाएं अभी भी श्रम बल से बाहर हैं।
  • महिलाओं की श्रम भागीदारी दर (Labour Force Participation Rate – LFPR) 41.7% तक पहुंच गई है (PLFS 2023-24 के अनुसार)।
  • लेकिन फिर भी, कुल कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी पुरुषों की तुलना में काफी कम है।
  • पुरुषों की श्रम भागीदारी दर 78% है, जो महिलाओं से लगभग दोगुनी है।

विकसित भारत और महिला-नेतृत्व विकास (Women-Led Development)

  • भारत एक “विकसित भारत” के लक्ष्य की ओर बढ़ रहा है, जिसमें महिला-नेतृत्व विकास (Women-led Development) को एक महत्वपूर्ण स्तंभ माना गया है।
  • लेकिन यदि महिलाओं की घरेलू जिम्मेदारियां और देखभाल कार्यों की असमानता बनी रहती है, तो यह न केवल आर्थिक बल्कि सामाजिक विकास को भी बाधित करेगा।

महिलाओं के अदृश्य श्रम का आर्थिक योगदान

मार्च 2024 में Karmannaya Counsel, CII और Nikore Associates द्वारा प्रकाशित अध्ययन के अनुसार:

  • महिलाएं पुरुषों की तुलना में 8 गुना अधिक बिना वेतन वाला काम करती हैं।
  • यह भारत के GDP का 15% से 17% तक के मूल्य के बराबर होता है।

सामाजिक दृष्टिकोण में बदलाव की जरूरत

👉 महिलाओं की घरेलू जिम्मेदारियों को सामाजिक और आर्थिक रूप से मान्यता देने की आवश्यकता है।
👉 अक्सर घर में पुरुषों द्वारा किए गए छोटे-छोटे कार्यों की भी प्रशंसा की जाती है, जबकि महिलाओं द्वारा किए गए अनगिनत कार्यों को सामान्य समझा जाता है।
👉 महिलाओं से अपेक्षा की जाती है कि वे घर का पूरा काम करें और फिर भी “कमाने वाली” (breadwinner) न होने के लिए आलोचना झेलें।
👉 इस सोच को बदलने और बराबरी के कार्य-विभाजन को बढ़ावा देने की जरूरत है।

निष्कर्ष

✅ महिलाओं की अदृश्य श्रम शक्ति (Invisible Labour) को पहचानना और उसे सम्मान देना आवश्यक है।
सरकारी नीतियों और सामाजिक जागरूकता के माध्यम से महिलाओं के घरेलू कार्यों को औपचारिक रूप से मान्यता दी जानी चाहिए।
कामकाजी महिलाओं के लिए बेहतर अवसंरचना (जैसे – किफायती चाइल्ड केयर, फ्लेक्सिबल वर्किंग, माता-पिता दोनों के लिए अवकाश) की जरूरत है।
“विकसित भारत” का सपना तभी पूरा होगा जब महिलाओं और पुरुषों के बीच श्रम-विभाजन संतुलित होगा और महिलाएं भी समान अवसरों के साथ अर्थव्यवस्था में भाग ले सकेंगी।

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