भारत–ब्रिटेन मुक्त व्यापार समझौता (FTA): आर्थिक लाभ बनाम सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट

24 जुलाई 2025 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ब्रिटेन यात्रा के दौरान भारत और यूनाइटेड किंगडम के बीच मुक्त व्यापार समझौता (FTA) पर हस्ताक्षर किए गए। केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल और ब्रिटेन के व्यापार मंत्री जोनाथन रेनॉल्ड्स ने इस समझौते को अंतिम रूप दिया। इससे पहले 22 जुलाई को भारत सरकार की केंद्रीय कैबिनेट ने इस समझौते को मंजूरी दी थी। इस एफटीए को औपचारिक रूप से “समग्र आर्थिक और व्यापार समझौता (Comprehensive Economic and Trade Agreement)” कहा गया है, जिसकी बातचीत 6 मई 2025 को पूरी हुई थी।

यह समझौता आर्थिक दृष्टिकोण से दोनों देशों के लिए एक सकारात्मक कदम माना जा रहा है। लेकिन, भारत के लिए यह सार्वजनिक स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से एक बड़ी चुनौती भी बन सकता है।

एफटीए और भारत में HFSS उत्पादों की बाढ़

इस समझौते के तहत ब्रिटेन में बने बिस्कुट, चॉकलेट, सॉफ्ट ड्रिंक जैसे कई High Fat, Sugar and Salt (HFSS) उत्पाद अब शून्य शुल्क (टैरिफ-फ्री) के साथ भारत में प्रवेश करेंगे। इससे न केवल ये उत्पाद सस्ते होंगे, बल्कि इनके आक्रामक विज्ञापन और बाजार रणनीतियां भारत में इनकी खपत को और बढ़ावा देंगी। यह दीर्घकालिक रूप से मोटापा, मधुमेह और हृदय रोग जैसी बीमारियों को बढ़ा सकते हैं।

मेक्सिको का अनुभव: एक चेतावनी

एफटीए के दुष्परिणाम केवल सिद्धांत नहीं हैं। मेक्सिको इसका उदाहरण है। जब 1992 में NAFTA (North American Free Trade Agreement) पर अमेरिका, कनाडा और मेक्सिको ने हस्ताक्षर किए, तो मेक्सिको ने पर्याप्त स्वास्थ्य सुरक्षा उपाय लागू नहीं किए।
इसके बाद:

  • सस्ते, मीठे पेय और जंक फूड का आयात और खपत दोनों बढ़ गई।
  • मोटापा और मधुमेह जैसे जीवनशैली संबंधी रोगों में तेज़ वृद्धि हुई।

मेक्सिको को 2014 में ‘सोडा टैक्स’, चेतावनी लेबल जैसे कड़े कदम उठाने पड़े, तब जाकर स्थिति कुछ हद तक नियंत्रित हुई।

भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य ढांचा कमज़ोर

ब्रिटेन में HFSS उत्पादों के टीवी और ऑनलाइन विज्ञापन पर 1 अक्टूबर 2025 से प्रतिबंध लागू हो जाएगा। साथ ही वहां ट्रैफिक लाइट फ्रंट-ऑफ-पैक लेबलिंग (FOPNL) प्रणाली है, जो उपभोक्ता को उत्पाद के पोषण संबंधी पहलुओं की जानकारी देती है (जैसे लाल – अधिक फैट/शुगर, हरा – कम)।

भारत में इस तरह की कोई बाध्यकारी व्यवस्था नहीं है:

  • बच्चों को लक्षित HFSS विज्ञापनों पर कोई ठोस प्रतिबंध नहीं।
  • भारत में विज्ञापन की स्व-नियामक प्रणाली (Advertising Standards Council of India) लागू है, जो अक्सर अप्रभावी साबित होती है।
  • सेलेब्रिटी एंडोर्समेंट और कार्टून कैरेक्टर के ज़रिए बच्चों को आकर्षित करना आम बात है — जबकि ये हस्तियां खुद ऐसे उत्पादों का सेवन नहीं करतीं।

 भारत का स्टार रेटिंग विवाद

FOPNL प्रणाली के तहत भारत में “स्टार रेटिंग” को अपनाने की योजना है, जो भ्रामक और कम प्रभावशाली मानी जा रही है। विशेषज्ञ मानते हैं कि स्पष्ट चेतावनी लेबल (जैसे चिली का ब्लैक ऑक्टागन लेबल) कहीं अधिक प्रभावी हैं।

  • सितंबर 2022 में चेतावनी लेबल को अनिवार्य बनाने के प्रस्ताव लाए गए थे, लेकिन तीन साल बाद भी कोई कार्रवाई नहीं हुई।
  • अप्रैल 2025 में सुप्रीम कोर्ट ने एक जनहित याचिका के बाद सरकार को निर्देश दिया कि इस पर समयबद्ध निर्णय लें।
  • विशेषज्ञ मानते हैं कि यह उद्योग लॉबिंग का प्रभाव है, जिसने प्रभावशाली चेतावनी लेबल के प्रस्तावों को कमजोर किया।

 डेटा और रोगों की बढ़ती लहर

  • द लांसेट ने मार्च 2025 में प्रकाशित अपनी रिपोर्ट में बताया कि भारत सहित दुनिया के कई हिस्सों में मोटापा तेजी से बढ़ रहा है।
  • 2011–21 के दौरान Ultra Processed Food (UPF) और HFSS उत्पादों की वृद्धि दर 13.3% रही।
  • बच्चों और किशोरों में मोटापा, डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर तेजी से बढ़ रहे हैं।

 वर्तमान नीतियों की स्थिति

  • जून 2025 में 29 संगठनों द्वारा एक ‘पोजीशन स्टेटमेंट’ जारी किया गया जिसमें HFSS/UPF उत्पादों पर चेतावनी लेबल अनिवार्य करने की वकालत की गई।
  • मई 2024 की राष्ट्रीय पोषण संस्थान (NIN) की ‘भारतीय आहार दिशा-निर्देश’ और आर्थिक सर्वेक्षण 2024–25 ने भी HFSS नियंत्रण पर सिफारिशें की हैं।

क्या किया जा सकता है?

अब जबकि India–UK FTA पर हस्ताक्षर हो चुके हैं, इसका कानूनी मसौदा अगले कुछ सप्ताहों में तैयार होगा। यह भारत के पास उचित सार्वजनिक स्वास्थ्य संरक्षण उपायों को शामिल करने का अंतिम मौका है।

अनुशंसित कदम:

  1. HFSS उत्पादों के विज्ञापन पर तत्काल प्रतिबंध लागू हो।
  2. चेतावनी लेबल वाली FOPNL प्रणाली को बाध्यकारी किया जाए।
  3. स्कूलों में ‘HFSS बोर्ड’ लगाकर जागरूकता बढ़ाई जाए।
  4. स्कूल-कॉलेजों की कैंटीनों में जंक फूड की बिक्री रोकी जाए।
  5. ‘शुगर बोर्ड’ और ‘ऑयल बोर्ड’ की जगह व्यापक स्वास्थ्य पहल की जाए।

भविष्य के समझौतों में स्वास्थ्य को नज़रअंदाज़ न करें

अक्टूबर 2025 में प्रस्तावित India–European Free Trade Agreement (TEPA) के साथ-साथ भारत कुछ और देशों से FTA पर हस्ताक्षर कर सकता है। इन समझौतों में सार्वजनिक स्वास्थ्य पहलू को शामिल करना अनिवार्य होना चाहिए, वरना ये समझौते गैर-संक्रामक रोगों के ट्रोजन हॉर्स बन सकते हैं।

  • डॉ. चंद्रकांत लहरिया: प्रैक्टिसिंग चिकित्सक और पूर्व WHO अधिकारी, जिन्होंने 17 वर्षों तक संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों के साथ कार्य किया है।
  • डॉ. अरुण गुप्ता: बाल रोग विशेषज्ञ और Nutrition Advocacy in Public Interest–India (NAPi) के प्रमुख।

Source: The Hindu

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