भारत और यूरोपीय संघ (EU) एक लंबे समय से प्रतीक्षित मुक्त व्यापार समझौते (FTA) की ओर तेजी से बढ़ रहे हैं। ब्रिटेन के फाइनेंशियल टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, यह ऐतिहासिक समझौता वर्ष के अंत तक तय हो सकता है — और इसके पीछे भारत की एक बड़ी कूटनीतिक जीत है: EU ने भारत के संवेदनशील कृषि और डेयरी क्षेत्रों को वार्ता से बाहर रखने पर सहमति दे दी है।
लंबे गतिरोध के बाद उम्मीद की किरण
सालों की गतिरोध के बाद अब इस समझौते के लिए दरवाज़ा खुलता नजर आ रहा है। हालांकि, अंतिम चरण की वार्ताओं में अब भी कुछ कठिन मसलों को सुलझाना बाकी है।
EU की तरफ से भारत के कृषि और डेयरी क्षेत्रों को वार्ता से बाहर रखने की मंजूरी, भारत के लिए एक बड़ा रोडब्लॉक हटाने जैसा है। भारत वैश्विक कृषि क्षेत्र में एक ताकतवर देश है — यह दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक है (210 मिलियन टन सालाना से अधिक), जो अमेरिका से दोगुना है, और यह दुनिया का सबसे बड़ा चावल उत्पादक भी है।
कृषि और डेयरी को बाहर रखना: भारत के लिए बड़ी जीत
यह निर्णय भारत के लिए इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि अमूल जैसे शक्तिशाली डेयरी लॉबी समूह लंबे समय से विदेशी प्रतिस्पर्धा का विरोध कर रहे हैं। यही लॉबी समूह 2020 में भारत के RCEP (चीन समर्थित क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी) समझौते से बाहर रहने के लिए भी जिम्मेदार रहे थे।
अब EU शराब और लक्ज़री कारों पर सख्त मोलभाव कर रहा है
लेकिन मामला अभी पूरी तरह से सुलझा नहीं है। EU अब शराब और लक्ज़री गाड़ियों पर कम टैरिफ (शुल्क) की मांग कर रहा है और वे भारत-UK समझौते से भी बेहतर शर्तें चाहते हैं।
भारत-UK समझौते के तहत, भारत ने स्कॉच व्हिस्की और जिन जैसी शराब पर शुल्क 150% से घटाकर 75% किया है, जो आगे 10 वर्षों में 40% तक लाया जाएगा। लेकिन ब्रसेल्स को इससे ज्यादा रियायतें चाहिए।
अब तक 20 में से 8 अध्यायों पर सहमति
फाइनेंशियल टाइम्स के अनुसार, 20 “समझौता अध्यायों” में से 8 पर सहमति बन चुकी है। 12वां दौर जुलाई की शुरुआत में संभावित है, जहां बाकी जटिल मसलों पर चर्चा होगी।
भारत और EU ने 2007 में BTIA (Broad-based Trade and Investment Agreement) पर वार्ता शुरू की थी, लेकिन 2013 में 16 दौर के बाद वार्ता विफल हो गई। मुख्य मतभेद थे:
- यूरोपियन कारों, शराब और स्पिरिट्स पर कम टैरिफ की EU की मांग
- भारत की कुशल पेशेवरों की आवाजाही और सेवा क्षेत्र को अधिक पहुंच की मांग
- पेटेंट, डेटा प्राइवेसी और सतत विकास के नियमों पर भी विवाद
वार्ता का दोबारा आरंभ और रणनीतिक बदलाव
वार्ता लगभग एक दशक तक बंद रही। 2021 में दोनों पक्षों ने अपनी रणनीतियों पर पुनर्विचार किया:
- भारत पारंपरिक व्यापार साझेदारों से आगे बढ़ना चाहता था।
- EU ब्रेक्सिट और ट्रंप-युग के वैश्विक व्यापार अविश्वास से उबर रहा था।
- 2022 के मध्य में औपचारिक वार्ताएं फिर से शुरू हुईं, और इस बार दोनों पक्ष समझौता पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध नजर आ रहे हैं। EU पहले ही भारत का तीसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है।
वैश्विक परिदृश्य और अमेरिका की भूमिका
डोनाल्ड ट्रंप की व्हाइट हाउस में वापसी और उनके वैश्विक व्यापार पर हमलों ने भारत और EU को वैकल्पिक आर्थिक गठजोड़ की जरूरत और तेज कर दी है। ऐसे में यह समझौता दोनों पक्षों के लिए रणनीतिक रूप से बेहद अहम बन गया है।
हाल की उच्च स्तरीय बैठकों से संकेत
फरवरी में यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयेन दिल्ली आईं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की। दोनों ने इस वर्ष के भीतर समझौता पूरा करने की प्रतिबद्धता जताई।
इस सप्ताह, वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने पेरिस में EU ट्रेड कमिश्नर मारोस सेफकोविच से मुलाकात की ताकि वार्ता को गति मिल सके। EU के प्रवक्ता के अनुसार, जुलाई की बातचीत से पहले भी “गहन बातचीत जारी” है।
अब भी टेबल पर क्या है?
EU की मांग है कि भारत आयातित लक्ज़री गाड़ियों पर इंजन साइज आधारित शुल्क को कम करे। UK-India डील में कुछ उच्च स्तरीय ब्रिटिश कारों पर शुल्क 100% से घटाकर 10% कर दिया गया था लेकिन यह कोटा आधारित था।
यह एक संकेत हो सकता है कि भारत EU के साथ कुछ हद तक समझौता कर सकता है लेकिन पूरी तरह से नहीं।
Source: The Telegraph