भविष्य के विश्वविद्यालय की रूपरेखा

राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) का उद्देश्य भारत की उच्च शिक्षा प्रणाली को संकीर्ण और एकल-विषयक ढाँचे से बाहर निकालकर, बड़े और बहुविषयक (multidisciplinary) शिक्षण संस्थानों की स्थापना करना है। इसका मुख्य फोकस छात्रों को केवल एक विषय की गहराई में ले जाने के बजाय, विभिन्न विषयों के बीच संवाद, चर्चा, बहस, शोध और सोच को बढ़ावा देना है।

लेकिन सवाल यह है कि हम भारत की मौजूदा विश्वविद्यालय व्यवस्था को कैसे बदलें ताकि हम इस लक्ष्य को हासिल कर सकें?

बदलाव की दिशा क्या हो?

इस बदलाव की प्रक्रिया एक क्रमिक यात्रा है —

  1. बहुविषयक परिसर (Multidisciplinary Campus) से शुरू होकर,

  2. विषयों के बीच सहयोग (Cross-disciplinary Collaboration) की ओर बढ़ती है,

  3. और अंततः समेकित ज्ञान आधारित अंतर्विषयक सोच (Interdisciplinary Thought) तक पहुँचती है।

बहुविषयक क्या है?

बहुविषयकता का मतलब है कि एक ही संस्थान या परियोजना में कई विषय साथ मौजूद हों, लेकिन उनमें आपसी मेलजोल न हो। जैसे किसी संस्थान में विज्ञान, वाणिज्य और मानविकी के विभाग हों, पर वो अपने-अपने ढंग से काम करें।

वहीं, क्रॉस-डिसिप्लिनरी (Cross-disciplinary) दृष्टिकोण में अलग-अलग विषयों के लोग एक साथ काम करते हैं, एक-दूसरे की सोच को समझते हैं, पर अपने विषयों की सीमाएं बनाए रखते हैं। जैसे एक शिक्षक और एक अर्थशास्त्री मिलकर कोई लेख लिखें।

इंटरडिसिप्लिनरी (Interdisciplinary) तरीका इससे भी आगे है। इसमें विभिन्न विषयों के ज्ञान, पद्धतियाँ और सोच को एक साथ मिलाकर कोई समस्या हल की जाती है। इसमें विषयों की सीमाएं धुंधली हो जाती हैं और नया समेकित ज्ञान उभरता है।

बहुविषयक विश्वविद्यालय: कैसे बनाए जाएं?

भारत में आज बहुत से उच्च शिक्षण संस्थान एकल-विषयक हैं। NEP कहती है कि ऐसे संस्थानों को या तो:

  1. नई विभागों को जोड़कर बहुविषयक बनाना होगा (जैसे IITs अब मानविकी और सामाजिक विज्ञान के विभाग जोड़ रहे हैं),
    या फिर

  2. मौजूदा संस्थानों को जोड़कर क्लस्टर यूनिवर्सिटी बनानी होगी। जैसे एक कॉमर्स कॉलेज, एक साइंस कॉलेज और एक आर्ट्स कॉलेज साथ आकर एक नया विश्वविद्यालय बना सकते हैं।

हालांकि, 2020-21 के AISHE रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 35% कॉलेज सिर्फ एक ही विषय पर आधारित हैं, जैसे केवल B.Ed. कॉलेज। ऐसे में पास-पड़ोस में उचित विविध विषय वाले कॉलेज मिलना मुश्किल है।

इसीलिए, हमें नए बहुविषयक विश्वविद्यालय भी बनाने होंगे — और हर ज़िले में कम से कम एक ऐसा विश्वविद्यालय 2030 तक होना चाहिए। बेहतर यही होगा कि एक ही जिले में एक मजबूत बहुविषयक विश्वविद्यालय बनाया जाए, न कि एक संस्थान के कई कैंपस अलग-अलग जिलों में हों। इससे शैक्षणिक और शोध कार्य दोनों में गुणवत्ता बढ़ेगी।

क्रॉस-डिसिप्लिनरी सीख और अभ्यास

भविष्य का विश्वविद्यालय सिर्फ अलग-अलग विभागों का समूह नहीं होगा, बल्कि एक ऐसा स्थान होगा जहाँ शिक्षक और छात्र विभिन्न विषयों के साथ संवाद और सहयोग करने को तैयार हों।

छात्रों को अपने मूल विषय के बाहर भी कोर्स करने का मौका मिलना चाहिए। जैसे कोई इंजीनियरिंग का छात्र, मनोविज्ञान या अर्थशास्त्र का कोर्स करे।

इसके बाद, छात्रों और शिक्षकों को संयुक्त शोध और परियोजनाओं में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। उदाहरण के लिए:
भारतीय सिनेमा में आर्थिक परिवर्तन और वर्ग संरचनाएं’ — यह कोर्स अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र और फिल्म अध्ययन के शिक्षकों द्वारा मिलकर पढ़ाया जा सकता है।

ऐसे प्रयासों को लंबे समय तक चलाने के लिए वित्तीय सहायता भी जरूरी है। अमेरिका की NSF की IGERT योजना इसका अच्छा उदाहरण है, जहाँ छात्रों और शिक्षकों को इस तरह की अंतर्विषयक शिक्षा और शोध के लिए पर्याप्त सहयोग दिया जाता है।

अंतर्विषयक सोच और शोध

क्रॉस-डिसिप्लिनरी शोध जहां अलग-अलग विषयों में संवाद की बात करता है, वहीं इंटरडिसिप्लिनरी शोध उससे भी आगे जाकर विषयों के बीच गहरे संबंध बनाता है और नया संयुक्त ज्ञान उत्पन्न करता है।

IGERT के अनुभव में यह संभव हो सका जब जैवप्रौद्योगिकी, दवा, रसायन विज्ञान और जीवविज्ञान जैसे विषयों ने साथ काम किया। लेकिन इंजीनियरिंग और आर्किटेक्चर जैसे क्षेत्रों में छात्रों को समस्याएं आईं — जैसे, उनके शोध को प्रकाशित करने के लिए उचित जर्नल नहीं मिले, या उन्हें अकादमिक नौकरियों में जगह नहीं मिली, क्योंकि उनका काम किसी एक विशिष्ट विषय के दायरे में नहीं आता था।

इसलिए, अगर हमें इंटरडिसिप्लिनरी शोध को बढ़ावा देना है, तो हमें शोध प्रकाशन, फंडिंग और फैकल्टी की नियुक्ति और पदोन्नति की प्रणालियों को भी बदलना होगा।

लेखक: देवयानी तिर्थाली और पराग वाकनिस

Source: The Hindu

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