प्रस्तावना
बांग्लादेश में 1971 के मुक्ति संग्राम के बाद एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र-राज्य की स्थापना हुई, जो भाषायी राष्ट्रवाद (linguistic nationalism) पर आधारित था। यह पाकिस्तान के धार्मिक राष्ट्रवाद को नकारने का प्रतीक था, जिसने खुद को इस्लामी पहचान के आधार पर स्थापित किया था। हालाँकि, स्वतंत्रता के बाद से ही बांग्लादेश ने दोहरे पहचान संकट का सामना किया है—एक ओर बंगाली भाषायी राष्ट्रवाद, और दूसरी ओर रूढ़िवादी इस्लामी प्रभाव, जो राजनीतिक संस्कृति में अपनी जगह बनाता रहा है।
शेख हसीना के सत्ता से हटने के बाद इस्लामी ताकतों का पुनरुत्थान
अगस्त 2024 में जब शेख हसीना को सत्ता से हटा दिया गया, तो इस्लामी राष्ट्रवाद (Islamic nationalism) को फिर से बल मिलने लगा। इसका एक स्पष्ट उदाहरण जनवरी में तब देखने को मिला जब एक महिला फुटबॉल मैच को उस समय रद्द करना पड़ा, जब एक मदरसे के छात्रों ने खेल स्थल पर तोड़फोड़ की। इसी तरह, नवंबर 2023 में एक रहस्यवादी संप्रदाय (mystic sect), जो धार्मिक समावेशिता (religious inclusivity) को बढ़ावा देता था, को इस्लामवादियों की धमकियों के कारण अपना संगीत महोत्सव रद्द करना पड़ा।
शेख हसीना के शासनकाल के दौरान इस्लामी समूहों पर कड़ी कार्रवाई की गई थी, जिससे वे हाशिए पर चले गए थे। लेकिन उनके पदच्युत होने के बाद, ये इस्लामी समूह फिर से मुख्यधारा में लौट रहे हैं और राजनीतिक परिदृश्य में प्रभाव बढ़ा रहे हैं। इस संदर्भ में, बांग्लादेश की वर्तमान स्थिति नाजुक बनी हुई है, क्योंकि धार्मिक राष्ट्रवाद और लोकतांत्रिक मूल्यों के बीच एक नया संघर्ष उभर रहा है।
छात्र आंदोलन से नई पार्टी का उदय
इसी उथल-पुथल के बीच, उसी छात्र-नेतृत्व वाले आंदोलन ने, जिसने शेख हसीना की सत्ता को गिराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, अब औपचारिक रूप से “जातीय নাগরিক পার্টি” (Jatiya Nagorik Party – NCP) या “नेशनल सिटिजन्स पार्टी” का गठन कर लिया है। इस नई पार्टी की घोषणा ऐसे समय में हुई है जब बांग्लादेश में चुनाव होने की संभावना जताई जा रही है। NCP की नीति “द्वितीय गणराज्य” (Second Republic) की स्थापना की दिशा में काम करने की है, जिसका अर्थ है कि यह बांग्लादेश के राजनीतिक ढांचे में एक बड़ा परिवर्तन लाने का प्रयास करेगी।
चुनौतियाँ और लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा
बांग्लादेश के सामने सबसे महत्वपूर्ण चुनौती लोकतांत्रिक सिद्धांतों की रक्षा करना है। इसमें सबसे प्रमुख मुद्दा निष्पक्ष और स्वतंत्र चुनाव कराना है। शेख हसीना की पार्टी, आवामी लीग, अब राजनीतिक रूप से अलग-थलग पड़ चुकी है। हालाँकि, जो अंतरिम सरकार शुरू में जनता का समर्थन पा रही थी, अब उसकी लोकप्रियता भी गिरने लगी है।
नोबेल पुरस्कार विजेता मुहम्मद यूनुस, जो अंतरिम सरकार में एक प्रमुख भूमिका निभा रहे हैं, अब जनता की बढ़ती अपेक्षाओं के दबाव में हैं। हसीना के जाने के बाद से, बांग्लादेश में राजनीतिक अस्थिरता, आर्थिक कठिनाइयाँ और बिगड़ती कानून-व्यवस्था ने लोगों की परेशानियाँ बढ़ा दी हैं। NCP ऐसे समय में राजनीति में प्रवेश कर रही है, जब स्थिति पूरी तरह स्थिर नहीं हुई है और जनता को एक मजबूत तथा स्थायी सरकार की आवश्यकता है।
विरोध आंदोलन से मुख्यधारा की राजनीति तक का कठिन सफर
किसी भी विरोध आंदोलन (anti-establishment movement) को एक मजबूत राजनीतिक ताकत में बदलना आसान नहीं होता। लेकिन NCP ने एक मजबूत शुरुआत की है। इसका उदाहरण धार्मिक समावेशिता (religious inclusivity) का प्रदर्शन है, जो इस पार्टी की पहली सार्वजनिक रैली में देखा गया। इस रैली में कुरान और भगवद गीता दोनों से पाठ किया गया, जिससे यह संदेश देने की कोशिश की गई कि यह पार्टी बांग्लादेश के सभी समुदायों के लिए है।
यह कदम विशेष रूप से महत्वपूर्ण था, क्योंकि शेख हसीना के बाद हिंदू अल्पसंख्यकों की सुरक्षा को लेकर चिंता बढ़ गई है। यदि NCP अपने विचारों में बहुसंस्कृतिवाद (multiculturalism) और धर्मनिरपेक्षता (secularism) को प्रमुखता देती है, तो यह दक्षिणपंथी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) के लिए एक गंभीर चुनौती बन सकती है।
NCP की असली परीक्षा
NCP की असली परीक्षा अब यह होगी कि क्या वह बांग्लादेश को एक न्यायसंगत, समावेशी और लोकतांत्रिक देश बनाने के लिए अपनी लड़ाई को जारी रख सकेगी।
- क्या यह पार्टी अपने आदर्शों और सिद्धांतों पर कायम रह पाएगी?
- क्या यह धार्मिक अतिवाद और असहिष्णुता के बढ़ते प्रभाव के खिलाफ मजबूती से खड़ी रह सकेगी?
- क्या यह स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त दबाव बना पाएगी?
अगर NCP इन चुनौतियों का सामना कर लेती है, तो यह बांग्लादेश की राजनीति में एक महत्वपूर्ण बदलाव ला सकती है। लेकिन अगर यह पार्टी केवल विरोध आंदोलन के स्तर तक सीमित रह जाती है और प्रशासनिक क्षमता नहीं दिखा पाती, तो यह भी अन्य असफल राजनीतिक प्रयोगों की तरह समाप्त हो सकती है।
निष्कर्ष
बांग्लादेश इस समय एक महत्वपूर्ण मोड़ पर खड़ा है। शेख हसीना के जाने के बाद जहाँ एक ओर इस्लामी राष्ट्रवाद (Islamic nationalism) की वापसी दिख रही है, वहीं दूसरी ओर NCP जैसी नई पार्टी धर्मनिरपेक्षता और बहुसंस्कृतिवाद की ओर बढ़ने का दावा कर रही है।
आने वाले महीनों में यह स्पष्ट होगा कि बांग्लादेश किस दिशा में जाएगा—क्या यह धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र बना रहेगा, या फिर धार्मिक राष्ट्रवाद हावी होगा। NCP की सफलता या विफलता इस प्रश्न का उत्तर देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।
Source: Indian Express