बजट 2024: क्या यह आर्थिक चुनौतियों का समाधान कर पाएगा?

 

1 फरवरी 2025 को केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने केंद्रीय बजट 2025-26 पेश किया। यह बजट ऐसे समय में आया है जब भारतीय अर्थव्यवस्था कई गंभीर चुनौतियों का सामना कर रही है—उच्च कर दरें, बढ़ती बेरोजगारी, कमजोर निजी निवेश, बाहरी आर्थिक दबाव और राजकोषीय घाटे की चिंताएं। वित्त मंत्री ने ‘विकसित भारत’ के दृष्टिकोण को साकार करने के लिए कृषि, विनिर्माण, एमएसएमई, सामाजिक कल्याण और बुनियादी ढांचे जैसे क्षेत्रों पर जोर दिया। लेकिन क्या यह बजट वाकई आर्थिक विकास की दिशा में ठोस कदम है, या केवल आंकड़ों का खेल? आइए, इस पर विस्तार से चर्चा करते हैं।

1. राजकोषीय लक्ष्य: क्या सरकार की उम्मीदें ज़्यादा ऊंची हैं?

बजट में सबसे प्रमुख घोषणा वित्तीय घाटे (Fiscal Deficit) को FY26 तक GDP के 4.4% तक सीमित रखने का लक्ष्य है। सरकार का मानना है कि यह लक्ष्य कर संग्रह में 11.2% और आयकर राजस्व में 14.4% वृद्धि से पूरा किया जा सकता है। लेकिन यह अनुमान शायद बहुत आशावादी है, क्योंकि—

  •  इस बजट में व्यक्तिगत कर दरों में कटौती की गई है, जिससे सरकार को लगभग 1 लाख करोड़ रुपये का प्रत्यक्ष कर राजस्व नुकसान होगा।
  • भारतीय अर्थव्यवस्था अभी कमजोर घरेलू खपत और वैश्विक बाजार में सुस्ती के दौर से गुजर रही है, जिससे कर संग्रह उम्मीद के मुताबिक नहीं बढ़ सकता।
  • सरकार ने 2025-30 के लिए नई संपत्ति मुद्रीकरण योजना (Asset Monetization Plan) की घोषणा की है, लेकिन पहले वाले कार्यक्रम की असफलता को देखते हुए इस पर संदेह बना हुआ है।
  • ₹11.54 लाख करोड़ की सरकारी उधारी निजी निवेश को हतोत्साहित कर सकती है, जिससे बैंकिंग प्रणाली में ऋण की उपलब्धता प्रभावित होगी।

निष्कर्ष: अगर सरकार को वित्तीय घाटा कम करना है, तो उसे केवल कर संग्रह पर निर्भर नहीं रहना चाहिए। उसे संपत्ति मुद्रीकरण और सरकारी खर्च को प्रभावी ढंग से नियंत्रित करने की जरूरत होगी।

2. आयकर में राहत: मध्यम वर्ग को राहत, लेकिन विकास योजनाओं पर असर?

नई कर व्यवस्था के तहत ₹12 लाख तक की आय को कर मुक्त कर दिया गया है। इससे वेतनभोगी और मध्यम वर्ग के लोगों को काफी राहत मिलेगी। लेकिन इसका एक दूसरा पहलू भी है सरकार को 1 लाख करोड़ रुपये के राजस्व की हानि होगी।

इस राजस्व की भरपाई कहां से होगी? क्या यह बुनियादी ढांचे, स्वास्थ्य और शिक्षा पर होने वाले खर्च को प्रभावित करेगा?

  • भारत में घरेलू बचत दर पहले ही FY23 में GDP के 18.4% तक गिर चुकी है, और कर में कटौती से बचत और अधिक घट सकती है।

निष्कर्ष: टैक्स कटौती से उपभोक्ता खर्च बढ़ेगा, लेकिन सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि इससे अर्थव्यवस्था में असंतुलन न पैदा हो।

3. विनिर्माण क्षेत्र: क्या भारत वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा कर सकता है?

भारत विनिर्माण (Manufacturing) क्षेत्र को मजबूत करके वैश्विक औद्योगिक हब बनना चाहता है। लेकिन इकोनॉमिक सर्वे 2024-25 के अनुसार, विनिर्माण अभी भी GDP का केवल 17% ही योगदान देता है।

बजट में MSME सेक्टर के लिए क्रेडिट स्कीम और नेशनल मैन्युफैक्चरिंग मिशन जैसी योजनाओं की घोषणा की गई है।

MSME की परिभाषा बदली गई है—निवेश सीमा 2.5 गुना बढ़ाई गई और टर्नओवर सीमा दोगुनी की गई, जिससे छोटे उद्योगों को बढ़ने में मदद मिलेगी।

लेकिन रिसर्च और डेवलपमेंट (R&D) में निवेश अभी भी केवल 0.64% GDP के बराबर है, जो चीन और जर्मनी जैसी अर्थव्यवस्थाओं से बहुत पीछे है।

उद्योगों के लिए नियामक बाधाएं और आधारभूत संरचना की कमी अब भी बनी हुई हैं।

निष्कर्ष: सिर्फ इंसेंटिव देने से विनिर्माण क्षेत्र मजबूत नहीं होगा, सरकार को नई तकनीक, R&D और लॉजिस्टिक्स सुधारों पर ध्यान देना होगा।

4. कृषि क्षेत्र: समर्थन तो बढ़ा, लेकिन क्या समस्याएं हल हुईं?

प्रधानमंत्री धन-धान्य कृषि योजना और नेशनल मिशन ऑन हाई-यील्डिंग सीड्स जैसी योजनाएं किसानों की उत्पादन क्षमता बढ़ाने में मदद करेंगी।

किसान क्रेडिट कार्ड (KCC) की ऋण सीमा ₹3 लाख से बढ़ाकर ₹5 लाख कर दी गई है, जिससे किसानों को वित्तीय लचीलापन मिलेगा।

लेकिन बजट में बाज़ार सुधार, कीमत स्थिरता, और कृषि निर्यात को बढ़ावा देने पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया।

सिर्फ कर्ज़ देने से किसानों की समस्याएं हल नहीं होंगी—जरूरी है कि उन्हें बेहतर कीमत और बाज़ार तक पहुंच मिले।

निष्कर्ष: यह बजट कृषि क्षेत्र में सुधार के संकेत देता है, लेकिन इसमें बाज़ार सुधार और निर्यात को बढ़ावा देने के ठोस उपायों की कमी है।

5. वैश्विक व्यापार और निर्यात: क्या यह भारत को वैश्विक मंच पर मजबूत करेगा? 

IT और BPO सेक्टर का निर्यात 10.5% CAGR की दर से बढ़ रहा है।Bharat Trade Net (BTN) और MSME एक्सपोर्ट क्रेडिट स्कीम अच्छी पहलें हैं। लेकिन व्यापार घाटा अब भी एक बड़ी समस्या है।

  • रुपया लगातार कमजोर हो रहा है और विदेशी मुद्रा भंडार घट रहा है।
  • फार्मास्युटिकल्स, इलेक्ट्रॉनिक्स, और अक्षय ऊर्जा जैसे उच्च-मूल्य वाले क्षेत्रों को प्रोत्साहित करने पर जोर देना चाहिए था।

निष्कर्ष: भारत को अपने निर्यात रणनीति को और अधिक आक्रामक बनाना होगा ताकि वह वैश्विक प्रतिस्पर्धा में बना रह सके।

6. जलवायु और स्वच्छ ऊर्जा: क्या यह बजट पर्याप्त है?

  • लीथियम-आयन बैटरी रीसाइक्लिंग, सौर ऊर्जा और बैटरी निर्माण के लिए इंसेंटिव दिए गए हैं।
  • लेकिन बिना ऊर्जा ग्रिड आधुनिकीकरण और उद्योगों के डीकार्बोनाइजेशन के, यह पहल अधूरी रह सकती है।

निष्कर्ष: सरकार ने कुछ पहल की हैं, लेकिन जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए व्यापक रणनीति की जरूरत है।

अमरेंदु नंदी भारतीय प्रबंधन संस्थान (आईआईएम) रांची में सहायक प्रोफेसर (अर्थशास्त्र क्षेत्र) हैं। व्यक्त किए गए विचार व्यक्तिगत हैं

Source: The Hindu