फ्लिपकार्ट के संस्थापकों के खिलाफ FEMA केस: मद्रास हाईकोर्ट ने खारिज की याचिकाएं

मद्रास हाईकोर्ट ने फ्लिपकार्ट के सह-संस्थापकों सचिन बंसल और बिन्नी बंसल समेत कुछ अन्य लोगों द्वारा दायर कई रिट याचिकाओं को खारिज कर दिया है। यह मामला ₹23,451 करोड़ के विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (FDI) नीति के उल्लंघन से जुड़ा हुआ था।

न्यायमूर्ति एस. सौनथर ने इन सभी याचिकाओं को खारिज करते हुए याचिकाकर्ताओं को यह स्वतंत्रता दी कि वे 30 दिनों के भीतर प्रवर्तन निदेशालय (ED) के विशेष निदेशक को स्पष्टीकरण प्रस्तुत करें। ये शो-कॉज़ नोटिस पहले ही जारी किए जा चुके थे।

कोर्ट का तर्क

कोर्ट ने अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एस.वी. राजू और ED के विशेष लोक अभियोजक एन. रमेश की दलील को सही माना कि याचिकाकर्ताओं को बिना जवाब दिए सीधे हाईकोर्ट नहीं आना चाहिए था। विशेष निदेशक, जो कि विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (FEMA) 1999 के तहत निर्णय लेने वाले अधिकारी हैं, उन्हें पहले स्पष्टीकरण प्रस्तुत करना चाहिए था।

न्यायमूर्ति सौनथर ने यह भी स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ताओं को अपना पक्ष प्रस्तुत करने का पूरा अवसर दिया जाएगा। यदि स्पष्टीकरण के बाद अधिकारी को उचित लगे, तो वह FEMA की धारा 16 के तहत औपचारिक कार्रवाई शुरू कर सकते हैं।

FEMA के तहत कानूनी प्रक्रिया

यदि कोई अंतिम आदेश पारित होता है, तो याचिकाकर्ता इसे विशेष FEMA ट्रिब्यूनल में चुनौती दे सकते हैं। यदि वे ट्रिब्यूनल के फैसले से संतुष्ट नहीं होते, तो FEMA की धारा 35 के तहत हाईकोर्ट में दूसरी अपील दायर कर सकते हैं।

मामले की पृष्ठभूमि

यह मामला 28 जून 2021 को प्रवर्तन निदेशालय (ED) के उप-निदेशक राहुल सिन्हा द्वारा दर्ज की गई शिकायत से शुरू हुआ था। उन्होंने FEMA की धारा 16(3) के तहत चेन्नई में विशेष निदेशक को एक औपचारिक शिकायत भेजी थी।

कैसे हुआ था फ्लिपकार्ट का निर्माण?

फ्लिपकार्ट की शुरुआत एक स्वामित्व फर्म (Proprietorship Firm) के रूप में हुई थी, जिसे सचिन बंसल के पिता सत प्रकाश अग्रवाल ने शुरू किया था।

अक्टूबर 2008 में, सचिन और बिन्नी बंसल ने Flipkart Online Services Private Limited (FOL) की स्थापना की, जो कंपनी अधिनियम के तहत पंजीकृत थी।

FOL का प्राथमिक उद्देश्य थोक व्यापार (B2B) करना और तकनीकी सेवाएं प्रदान करना था, जिससे किताबों की ऑनलाइन बिक्री को बढ़ावा मिले।

लेकिन, FOL ने अपने 100% उत्पाद सिर्फ WS Retail को बेचे, जो कि सचिन और बिन्नी बंसल द्वारा ही संचालित थी।

FDI नीति के उल्लंघन का आरोप

भारत में उस समय खुदरा क्षेत्र (Retail Sector) में विदेशी निवेश (FDI) की अनुमति नहीं थी।

सचिन और बिन्नी बंसल ने FOL के शेयर विदेशी निवेशकों को स्थानांतरित कर दिए लेकिन यह सुनिश्चित किया कि कंपनी के सभी उत्पाद सिर्फ WS Retail को ही बेचे जाएं।

WS Retail ने ये उत्पाद फ्लिपकार्ट वेबसाइट के माध्यम से आम ग्राहकों को बेचे, जिससे प्रत्यक्ष रूप से खुदरा क्षेत्र में FDI प्रतिबंधों को दरकिनार कर दिया गया।

सिंगापुर में कंपनी की स्थापना और निवेश

अक्टूबर 2011 में, सचिन और बिन्नी बंसल ने Flipkart Pte Limited (FPLS) नाम की एक कंपनी सिंगापुर में रजिस्टर कराई।

यह कंपनी केवल किताबों तक सीमित न रहकर विभिन्न उत्पादों की थोक बिक्री करने लगी।

FPLS की कई सहायक कंपनियां सिंगापुर, अमेरिका और भारत में खोली गईं।

2011 से 2014 के बीच, FPLS ने विदेशी निवेशकों से ₹6,353.76 करोड़ का फंड प्राप्त किया, जिसमें अमेरिका, नीदरलैंड, मॉरीशस और अन्य देशों के निवेशक शामिल थे।

FDI नीति में सरकार का संशोधन

1 अप्रैल 2010 से, केंद्र सरकार ने नियम लागू किया कि कोई भी थोक कंपनी (B2B) अपने 25% से अधिक उत्पाद किसी भी ग्रुप कंपनी को नहीं बेच सकती।

WS Retail को एक अलग कंपनी दिखाने के लिए, सचिन और बिन्नी बंसल ने फरवरी 2011 में अपने शेयर अपने करीबी रिश्तेदारों और कर्मचारियों को बेच दिए।

लेकिन ED का आरोप है कि ये रिश्तेदार कंपनी के संचालन में कोई भूमिका नहीं निभा रहे थे।

ED का आरोप: एक नकली कंपनी बनाई गई

ED के मुताबिक:

1. WS Retail केवल एक डमी कंपनी थी, जिसका उपयोग केवल FDI नियमों को दरकिनार करने के लिए किया गया।

2. B2C (Business to Consumer) ट्रांजैक्शन को पहले B2B (Business to Business) बनाया गया, फिर उसे दोबारा B2C में बदल दिया गया।

3. इसका मकसद केवल विदेशी निवेश नियमों से बचना था।

शो-कॉज़ नोटिस और हाईकोर्ट में याचिका

1 जुलाई 2021 को, ED के विशेष निदेशक ने सचिन और बिन्नी बंसल समेत अन्य संबंधित कंपनियों को शो-कॉज़ नोटिस जारी किया।

इसमें Accel India Ventures, Subrata Mitra, Tiger Global Five FK Holdings, WS Retail आदि भी शामिल थे।

इन सभी ने मद्रास हाईकोर्ट में 11 अलग-अलग याचिकाएं दायर कीं और शिकायत व नोटिस को चुनौती दी।

हाईकोर्ट का अंतिम निर्णय

मद्रास हाईकोर्ट ने इन याचिकाओं को खारिज कर दिया और कहा कि याचिकाकर्ताओं को पहले नियमानुसार जवाब देना चाहिए था।

उन्हें 30 दिनों के भीतर जवाब देने का अवसर दिया गया।

यदि जवाब संतोषजनक नहीं होता, तो ED FEMA की धारा 16 के तहत कार्यवाही शुरू कर सकता है।

अंतिम आदेश के खिलाफ FEMA ट्रिब्यूनल और हाईकोर्ट में अपील की जा सकती है।

Source: The Hindu