दिल्ली हाई कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश और वर्तमान में इलाहाबाद हाई कोर्ट में कार्यरत न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के सरकारी आवास से आंशिक रूप से जली हुई बड़ी मात्रा में नकदी मिलने के मामले ने देश की न्यायिक व्यवस्था को झकझोर कर रख दिया है। यह मामला अब न्यायाधीशों की जवाबदेही, न्यायिक स्वतंत्रता, और प्रणालीगत पारदर्शिता पर गंभीर बहस का केंद्र बन गया है।
घटनाक्रम की समयरेखा
14 मार्च 2025:
रात को दिल्ली के लुटियंस ज़ोन स्थित 30 तुगलक क्रेसेंट स्थित न्यायमूर्ति वर्मा के सरकारी आवास के स्टोररूम में आग लग गई। उस समय वर्मा भोपाल में थे। उनकी बेटी और माँ घर में मौजूद थीं। फायर ब्रिगेड को बुलाया गया। आग बुझाते समय फायरफाइटरों को जूट के बोरे में बंद जली हुई करेंसी दिखाई दी। रिपोर्ट्स में अनुमानित राशि लगभग 15 करोड़ रुपये बताई गई, हालांकि इसकी आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई।
15 मार्च 2025:
आग लगने के बाद मलबा और जली सामग्री को स्टोररूम से हटा दिया गया। इसने सबूतों के साथ छेड़छाड़ की आशंका को जन्म दिया। पुलिस आयुक्त संजय अरोड़ा ने दिल्ली हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को वीडियो और फोटो भेजे।
20 मार्च 2025:
सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम ने न्यायमूर्ति वर्मा को उनके मूल स्थान इलाहाबाद हाई कोर्ट में स्थानांतरित करने की सिफारिश की, जिसे “रूटीन ट्रांसफर” बताया गया।
21–22 मार्च 2025:
मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने वर्मा से सफाई मांगी। सुप्रीम कोर्ट ने तीन सदस्यीय जांच समिति गठित की:
- न्यायमूर्ति शील नागू (पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट)
- न्यायमूर्ति जीएस संधावालिया (हिमाचल हाई कोर्ट)
- न्यायमूर्ति अनु शिवरामन (कर्नाटक हाई कोर्ट)
24 मार्च 2025:
दिल्ली हाई कोर्ट ने न्यायमूर्ति वर्मा से तत्काल प्रभाव से सभी न्यायिक कार्य वापस ले लिए।
25 मार्च 2025:
जांच समिति ने दिल्ली स्थित उनके आवास पर现场 जांच की। इसी दौरान इलाहाबाद हाई कोर्ट बार एसोसिएशन ने विरोधस्वरूप अनिश्चितकालीन हड़ताल की।
28 मार्च 2025:
सुप्रीम कोर्ट ने एक याचिका खारिज कर दी जिसमें एफआईआर दर्ज करने की मांग की गई थी। कोर्ट ने कहा कि जब तक इन-हाउस जांच पूरी नहीं होती, कोई आपराधिक प्रक्रिया नहीं चलाई जा सकती।
5 मई 2025:
जांच समिति ने अपनी रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को सौंपी।
8 मई 2025:
रिपोर्ट को राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को अग्रेषित कर दिया गया।
28 मई 2025:
रिपोर्ट के निष्कर्ष सार्वजनिक हुए जिसमें इंपीचमेंट (महाभियोग) प्रक्रिया शुरू करने की सिफारिश की गई। रिपोर्ट में कहा गया कि स्टोररूम न्यायमूर्ति वर्मा और उनके परिवार के “सक्रिय नियंत्रण” में था और वे नकदी के स्रोत की स्पष्ट जानकारी देने में विफल रहे।
मुख्य आरोप
- जली हुई नकदी की बरामदगी, जिसकी ऊंचाई ढाई फुट तक बताई गई।
- न्यायमूर्ति वर्मा द्वारा आरोपों से इनकार और पूरे मामले को षड्यंत्र करार देना।
- CBI द्वारा 2018 के सिम्भौली शुगर मिल धोखाधड़ी मामले में वर्मा का नाम (पूर्व में निदेशक के तौर पर), जो बाद में बंद हो गया।
कानूनी प्रक्रिया और चुनौतियां
- सुप्रीम कोर्ट के K. Veeraswami बनाम भारत सरकार (1991) फैसले के अनुसार, हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के किसी जज के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने से पहले मुख्य न्यायाधीश की अनुमति अनिवार्य है।
- इन-हाउस जांच प्रक्रिया (Ravichandran Iyer बनाम Justice A.M. Bhattacharjee, 1995) के तहत पहले आंतरिक जांच होती है, फिर आवश्यक हो तो संसद में महाभियोग प्रक्रिया चलाई जाती है।
- महाभियोग के लिए संसद में विशेष बहुमत आवश्यक होता है।
विवाद और विरोधाभासी बिंदु
- दिल्ली अग्निशमन सेवा प्रमुख अतुल गर्ग का बयान कि नकदी नहीं मिली थी – बाद में उन्होंने अपना बयान वापस ले लिया।
- पहली प्रतिक्रिया में सबूत मिटाने की आशंका – फायर ब्रिगेड कर्मियों द्वारा शूट किया गया वीडियो कथित तौर पर सीनियर अधिकारियों के कहने पर डिलीट कराया गया।
- न्यायिक विशेषाधिकार बनाम जवाबदेही – आलोचकों का कहना है कि इन-हाउस प्रक्रिया न्याय की गति को धीमा करती है और लोगों के विश्वास को चोट पहुंचाती है।
- सोशल मीडिया पर अतिरंजित दावे, जैसे “100 गुना ज्यादा उनकी कुल सैलरी से”, जो बिना सबूत वायरल हो रहे हैं।
न्यायमूर्ति वर्मा की पृष्ठभूमि
- जन्म: 6 जनवरी 1969, प्रयागराज
- शिक्षा: हंसराज कॉलेज (बीकॉम ऑनर्स), अवधेश प्रताप सिंह यूनिवर्सिटी से LLB
- 1992 में वकील के तौर पर नामांकन, 2014 में जज नियुक्त
- 2021 में दिल्ली हाई कोर्ट स्थानांतरित, 2025 में वापस इलाहाबाद हाई कोर्ट
- उल्लेखनीय निर्णय: डॉ. कफील खान बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2018), निधि कपूर बनाम प्रिंसिपल कमिश्नर (2023)
निष्कर्ष और आगे की संभावनाएं
अब जबकि जांच समिति ने महाभियोग की सिफारिश कर दी है, यह मामला राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के विचाराधीन है। संसद में विशेष प्रक्रिया के बाद ही न्यायमूर्ति वर्मा के खिलाफ कोई अंतिम निर्णय लिया जा सकता है। वर्तमान में वे न्यायिक कार्य से वंचित हैं।
यह मामला भारतीय न्यायपालिका की संवेदनशीलता और जवाबदेही दोनों को एक साथ दर्शाता है। इससे यह स्पष्ट होता है कि जहां न्यायिक स्वतंत्रता आवश्यक है, वहीं पारदर्शिता और जिम्मेदारी भी उतनी ही जरूरी है, ताकि जनता का विश्वास न्याय व्यवस्था में बना रहे।
Sources
The Hindu, India Today, The Indian Express, NDTV, and the Supreme Court of India’s press release.