यह लेख भारत की तेज़ जीडीपी वृद्धि और इसके सामाजिक-आर्थिक प्रभावों की गहरी समीक्षा करता है, जिसमें यह बताया गया है कि केवल आर्थिक वृद्धि का महत्व नहीं है, बल्कि वह वृद्धि किस तरह से नागरिकों के जीवन में वास्तविक लाभ पहुंचाती है, यह अधिक महत्वपूर्ण है। लेख में निम्नलिखित महत्वपूर्ण बिंदुओं पर ध्यान केंद्रित किया गया है:
भारत की जीडीपी वृद्धि
- आर्थिक दृष्टि से भारत का स्थान: भारत की जीडीपी 2025 में USD 4.19 ट्रिलियन तक पहुँचने की उम्मीद है, जो उसे चौथा सबसे बड़ा अर्थव्यवस्था बना देगा।
- सापेक्ष तुलना: जापान जैसे छोटे देश के मुकाबले भारत की जीडीपी का आकार अधिक है, लेकिन भारत का मानव विकास सूचकांक (HDI) बहुत पीछे है (130वीं रैंक पर) जबकि जापान 23वें स्थान पर है।
प्रति व्यक्ति आय
- भारत की प्रति व्यक्ति आय $2800 है, जो वैश्विक स्तर पर 140वें स्थान पर है।
- ब्रिक्स देशों में भी भारत का प्रदर्शन कमजोर है, जैसे ब्राजील ($10,296), रूस ($14,953), चीन ($12,969) और दक्षिण अफ्रीका ($6,377) से कम है।
- आय का असमान वितरण: भारत के शीर्ष 1% के पास 40% से अधिक संपत्ति है, और अगर शीर्ष 5% को हटा दिया जाए, तो प्रति व्यक्ति आय घटकर $1,130 रह जाती है, जो कई अफ्रीकी देशों से भी कम है।
आर्थिक असमानता और उसकी समस्या:
- आर्थिक शक्ति का संकेंद्रण: भारत में कुछ ही बड़े कॉर्पोरेट्स की पकड़ है, जो विभिन्न महत्वपूर्ण क्षेत्रों में दबदबा रखते हैं, जैसे टेलीकॉम, इन्फ्रास्ट्रक्चर, डिजिटल पेमेंट्स, आदि। यह बेजा संपत्ति संकेंद्रण, मुनाफे की अपार क्षमता और राजनीतिक स्थिरता के लिए खतरा हो सकता है।
- संरचनात्मक और संस्थागत समस्याएँ: भारत में विकास के परिणामस्वरूप आर्थिक असमानताएँ बढ़ रही हैं, और सरकार का इसके समाधान के लिए पर्याप्त प्रयास नहीं दिखाई दे रहा है।
मानव विकास सूचकांक (HDI)
- भारत का HDI स्कोर 2023 में 0.685 है, जो 130वीं रैंक पर है। जबकि BRICS देशों जैसे चीन, ब्राजील और रूस का प्रदर्शन बेहतर है, जो न केवल आर्थिक विकास में बल्कि शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक सुरक्षा में भी सुधार कर रहे हैं।
- भारत में आंतरिक असमानताएँ: भारत में दक्षिणी और पश्चिमी राज्य आमतौर पर बेहतर HDI स्कोर और प्रति व्यक्ति आय दर्शाते हैं, जबकि मध्य और पूर्वी राज्यों में विकास में पिछड़ापन जारी है।
आकांक्षा और अवसर के बीच अंतर
- भारत दुनिया का सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश है, लेकिन इसके लिए जरूरी निवेश, जैसे शिक्षा, कौशल प्रशिक्षण और रोजगार सृजन में भारी कमी है।
- महिला श्रमिकों की भागीदारी: महिलाओं में श्रम बल में भागीदारी का स्तर बहुत कम है, और हजारों युवा हर साल कामकाजी जीवन में प्रवेश करते हैं, लेकिन औपचारिक क्षेत्र में पर्याप्त रोजगार के अवसर नहीं मिल रहे हैं।
- अवसर की असमानता: गरीबों के वास्तविक वेतन में 2014-15 के बाद कोई वृद्धि नहीं हुई है, जबकि जीडीपी लगातार बढ़ रही है। इससे यह संकेत मिलता है कि रोजगार के अवसर और वास्तविक आय वृद्धि में असंतुलन है।
विकास और समावेशीता की आवश्यकता
- भारत का विकास असमान और कमजोर है – यह भौगोलिक, सामाजिक और क्षेत्रीय रूप से असंतुलित है।
- ग्रामीण-शहरी अंतर: शहरी क्षेत्रों में समृद्धि बढ़ी है, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में संकट जारी है। उच्च तकनीकी सेवाएँ चमक रही हैं, जबकि विनिर्माण क्षेत्र ठप पड़ा है।
- स्मॉल और मीडियम एंटरप्राइजेस (MSMEs) को समर्थन: भारत को केवल बड़े कॉर्पोरेट्स के बजाय छोटे और मझोले उद्योगों को भी पर्याप्त क्रेडिट और समर्थन प्रदान करने की आवश्यकता है।
सुधार की आवश्यकता
- भारत को केवल जीडीपी के आंकड़ों पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय यह देखना चाहिए कि वह जीडीपी वास्तविक नागरिकों के लिए किस प्रकार के लाभ प्रदान कर रही है।
- संस्थागत सुधार: शिक्षा, श्रम कानूनों और रोजगार सृजन में संरचनात्मक सुधारों की आवश्यकता है, ताकि भारत की बढ़ती युवा जनसंख्या का लाभ उठाया जा सके।
इस लेख में यह कहा गया है कि केवल जीडीपी वृद्धि से वास्तविक समृद्धि का कोई मतलब नहीं है जब तक वह नागरिकों की गरिमा, अच्छे स्वास्थ्य, शिक्षा और बुनियादी सेवाओं तक समान पहुँच नहीं सुनिश्चित करती है। भारत को आर्थिक विकास के साथ-साथ मानव विकास की दिशा में भी निवेश करना होगा, ताकि यह वृद्धि समावेशी और दीर्घकालिक हो सके।
एजाज अय्यूब (लेखक राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान-श्रीनगर के मानविकी, सामाजिक विज्ञान और प्रबंधन विभाग में अर्थशास्त्र के क्षेत्र में शोधार्थी हैं।)
Source: Indian Express