पुतिन की जीत के तरीके से उनके शासन में निहित कमजोरी उजागर होती है
रूस में 15-17 मार्च को हुए चुनाव का नतीजा पहला वोट पड़ने के पहले ही हर किसी को पता था। सिर्फ इस सवाल का जवाब मिलना बाकी था कि लगभग एक चौथाई सदी से देश का नेतृत्व कर रहे राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की जीत का अंतर क्या रहेगा। सोमवार को, रूस के केंद्रीय चुनाव आयोग (सीईसी) ने कहा कि पुतिन ने लगभग 88 फीसदी मत हासिल किये हैं, जबकि उनके निकटतम प्रतिद्वंद्वी, कम्युनिस्ट पार्टी के निकोलाई खारितोनोव को 4.31 फीसदी मत मिले। सीईसी प्रमुख एला पैम्फिलोवा के मुताबिक, देश में 77.44 फीसदी का रिकॉर्ड मतदान देखने को मिला और नतीजों ने यह दिखाया कि रूस लंबे समय से देश की अगुवाई कर रहे नेता के तहत ‘एकजुट है’।
तमाम व्यावहारिक अर्थों में, यह बड़े एहतियात से प्रबंधित चुनाव था जिसका सिर्फ एक संभावित नतीजा आना था। सिर्फ उन्हीं उम्मीदवारों को चुनाव में खड़े होने की इजाजत दी गयी, जिन्हें क्रेमलिन सहन करने को तैयार था। जो पुतिन की नीतियों के आलोचक थे, उन्हें तकनीकी आधार पर रोक दिया गया। रूसी राज्य ने चुनाव से पहले, यूक्रेन युद्ध की किसी आलोचना को अपराध बनाने वाला एक कानून भी पारित किया था। इस युद्ध को लेकर अंतरराष्ट्रीय आलोचना का सामना कर रहे पुतिन के लिए, यह चुनाव दुनिया को यह बताने का मौका था कि देश उनके पीछे एकजुट है।
गुजरते वक्त के साथ, 71 वर्षीय पुतिन ने नियमित चुनाव और थोड़ी असहमति की इजाजत के साथ एक मजबूत पकड़ वाले राज्य के जटिल मॉडल में विशेषज्ञता हासिल कर ली है। कम-से-कम इस बात के लिए उनकी तारीफ बनती है कि वह एक लोकप्रिय नेता बने हुए हैं। बहुत से रूसियों की नजर में, सोवियत संघ के पतन से शुरू हुए 1990 के ‘अपमान के दशक’ के बाद, उन्होंने 2000 के दशक के शुरुआती सालों में राज्य का पुनर्निर्माण किया। ‘ऑर्थोडॉक्स’ ईसाई धर्म के पारंपरिक मूल्यों में समाये राज्यवाद ने सोवियत दौर के राज्य-स्वीकृत साम्यवाद (कम्युनिज्म) की जगह ले ली। रूस की महान शक्ति का गौरव लौटाने की कोशिश में, वह पश्चिम के खिलाफ खड़े हुए। उन्होंने रूसी सरजमीन पर चल रही जंगों का खात्मा किया, आर्थिक एवं राजनीतिक स्थिरता सुनिश्चित की और 2014 में क्रीमिया पर कब्जे के साथ देश की सीमाओं का विस्तार किया। लेकिन उन्होंने राज्य को एक ऐसे सैन्यवादी, सत्तावादी तंत्र में भी बदल दिया जो घरेलू मोर्चे पर पूरा दबदबा और विदेश में पश्चिम के खिलाफ प्रति-संतुलन चाहता था।
उनके सबसे मुखर राजनीतिक विरोधियों में से दो, बोरिस नेमत्सोव और एलेक्सी नवेलनी, दुनिया से जा चुके हैं, जबकि कई अन्य जेल में हैं। मीडिया के मुंह पर ताला लगा दिया गया है। और राज्य की संस्थाएं व्यावहारिक तौर पर क्रेमलिन की शाखाएं बन गयी हैं। अपनी एकतरफा जीत के साथ, पुतिन शायद आगे भी ताकत दिखायेंगे और यथास्थिति बनाये रखेंगे। लेकिन यह चुनाव (जिसका लक्ष्य पुतिन का संख्याबल मजबूत करना था) कराने के उनके शासन के सूक्ष्म-प्रबंधित तरीके, और छोटी से छोटी असहमति को भी कुचलने की उसकी अतिरिक्त-उत्साही कोशिश ने पुतिन द्वारा निर्मित शासन-व्यवस्था की दबंग छवि को पुष्ट करने के बजाय उसमें निहित कमजोरियों को ही उजागर किया है।